पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/८९

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देनकी जरूरत हो क्या" वस्तुतः इसो कारण कोई फालिज (अ० पु० ) पक्षाघात रोग। इसमें प्राणीका ब्रह्मोत्तर निर्दिष्ट नहीं है। जयन्तीके पतनके साथ ही : आधा अडा सुन्न या बेकार हो जाता है। पक्षाघात देखो। साथ इस पीठको भी दुरवस्था हो गई है। अभी देवी फालिया-पञ्जाबके गुजरात जिलेकी तहसील । यह अक्षा एक जोर्ण कुटीरमै विराजती हैं। ३२१०३० तथा देशा० ७३१७ पू० के मध्य अवस्थित फालतू (हिं० वि०) १ आवश्यकतासे अधिक, जमरतसे है। भूपरिमाण ७२२ बर्ग मील है। झेलम नदा इसके ज्यादा। २जो किसी कामके लायकन हो, निकम्मा। उत्तर-पश्चिम और चनाव दक्षिण-पूर्व में बह गई है। जन- फालदती (सं. स्त्री०) कालकी तरह दन्तयुक्ता एक सख्या दो लाखके करीब है। इसमें कालिया नामका राक्षसी। एक शहर और ३१० ग्राम लगते हैं। लार्ड गफ और फालसई ( फा० वि०) फालसेके रंगका, ललाई लिये हुए सिखका विलियनवालाका युद्ध इसी तहसीलमें हुआ हलका ऊदा। इस रंगके लिये कपड़े को तीन बार देने : था। पड़ते हैं। पहले तो कपड़े को नील रंगमें रंगते हैं, फिर फालूदा (फा० पु०) पीनेके लिये बनाई हुई एक चीज । कसमके पहले उतारकेरंगमें रंगते हैं जो जेठा रंग होता इसका व्यवहार प्रायः मुसलमान लोग करते हैं। गेहूँ के है। फिर फिटकरी या खटाई मिले पानीमें बोर कर सत्त से बने हुए नशास्तेको बारीक काट कर शरबतमें निखार देनसे रंग साफ निकल आता है। मिला कर रखते हैं और ठण्डा हो जाने पर पोते हैं। यह फालसा (फा० पु०) एक छोटा पेड़ । इसका धड़ अपर गरमीके दिनों में पिया जाता है। नहीं जाता और इसमें छड़ीके आकारको सीधी सीधी फाल्गुन ( स० पु० ) फलति निष्पादयतीति फल ( फले.. डालियाँ चारों ओर निकलती हैं। डालियोंके दोनों गुग च । ६ण ३।५६) इति उनन् ततो गुक् ततः प्रज्ञादि- तरफ सात आठ अङ्गल लम्बे चौड़े गोल पतं लगते त्वादण वा फल्गुन्यां फल्गुनी । फल्गुनी नक्षत्रे जातः अण हैं। इन पत्तों पर महीन लोइयाँसी होती हैं। पत्ते के १ अर्जुन । अर्जुनके दश नाम हैं जिनमें फागुन एक है। उपरी तलको अपेक्षा पीछेके तलका रंग हलका होता! अर्जुनने फल्गुनीनक्षत्र में जन्म ग्रहण किया था, इस कारण है। डालियोंमें फूल लगते हैं। जब ये सब फूल झड़ उनका फाल्गुन नाम पड़ा है। जाते, तब मोतीके दानेके बराबर छोटे छोटे फल लगते "उत्तराभ्याञ्च पूर्वाभ्यां फल्गुनीयभामहं दिवा। है। लोका गललाई लिए उदा और स्वाद जातो हिमवतः पृष्ठे तेन मां फाल्गुनं विदः॥" खटमीठा होता है। बीज एक या दो होते हैं। फालसेको (भारत ४/४२११६) तासीर ठंडी है। इस कारण गरमीके दिनों में लोग इसका २ नदीजवृक्ष। ३ अर्जुनवृक्ष । ४ तपस्यमास । ५ शरबत बना कर पीते हैं। पर देखो। . वैशाखादि द्वादश माशके अन्तर्गत एकादश मास । इस २शिकारियोंकी बोलीमें वह जगली जानवर जो | मासकी पूर्णिमा फल्गुनी नक्षत्र होता है, इसीसे इस जंगलसे निकाल कर मैदान में चरनेको आये। मासका नाम फाल्गुन पड़ा है। यह तोन प्रकारका है। फाला ( स० पु. ) फालयन्तीति फल-णि। जम्बीर मुख्यचान्द्र, गौणचान्द और सौर अर्थात् मुख्यचान्द्र वृक्ष, गंभीरी नीबूका पेड़। फाल्गुन, गौणचान्द्र फाल्गुन तथा सौर फाल्गुन । सूर्य- पालाकात-उत्तर बङ्गाल प्रदेशके जलपाईगुड़ी जिलेके के कुम्भराशिमें आनेसे शुक्ल प्रतिपद्से ले कर अमावस्या मन्तर्गत अलीपुर उपविभागका एक प्राम । यह तक जो मास पड़ता है, उसे मुख्यचान्द फाल्गुन और मक्षा० २६३६ उ तथा देशा• ८६१३ पू० भुजनैय नदी- कृष्णप्रतिपद्से ले कर मुख्यचान्द्र फाल्गुनमासीय पौर्ण के पूर्वी किनारे पर अवस्थित है। जनसंख्या तीन सौके मासी पर्यन्तको गौणचान्द फाल्गुन तथा कुम्भराशिस्थ करोषाहै। यहां फरवरी मासमें एक मदीना तक मेला रविभोगोपलक्षित कालात्मक मासको ही सौर फाल्गुन कहते हैं। मासके मुखाचान्द्र और गौणचान्दादि