पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/९३

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फाहिया-फिटकिरी भारत के पूर्वतन इतिहास, भूगोल ओर बौद्धकीर्ति जन- फिकई (हिं स्त्री०) चेनेकी तरहका एक मोटा अन्न जो पवादिके स्थाननिर्णयमें बहुत कुछ सुबिधा हुई है। बुंदेलखण्डमें होता है। फाहियान पश्चिम भारतवर्षसे क्रमागत पूर्वको ओर फिकार ( हि पु० ) फिई देखो। कपिलवस्तु, राजगृह और गयादि बौद्धक्षेत्रोंके दर्शन करते फिक्र ( अ० स्त्री० ) १ चिन्ता, सोच । २ उपायकी उद्भा- हुए चम्पाराजधानीमें उपस्थित हुए। पीछे वहांसे वना, उपायका विचार । ३ ध्यान, विचार। समुद्रकी ओर ताम्रलिप्ति नगरमें पहुँच कर उन्होंने फिक्रमंद (फा०वि०) चिन्ताग्रस्त। सैकड़ों सूत्र-ग्रन्थादिकी नकल कर ली। इस स्थानसे फिङ्गक ( स० पु० ) फिङ्ग इति शब्देन कायति शब्दायते जहाज पर चढ़ कर वे सिंहलद्वीप गये। यहां उन्होंने इति के क । फिंगा नामक पक्षी । पर्याय --कुलिङ्ग, कलिङ्ग, विनयपिटक, दीर्घागम और संयुक्तागम आदि संग्रह कर धूम्याट, भृङ्ग । फिरसे समुद्रको राहसे पूर्वकी ओर यात्रा की। कुछ फिङ्ग श्वर - मध्य प्रदेशके रायपुर जिलान्तर्गत एक सामन्त- दिन तूफानमें समुद्रको राहसे विचरण कर कमण्डलुके राज्य। भूपरिमाण २०८ वर्ग मील है। यहांके सरदार साथ वे जलमें कूद पड़े। आखिर यवद्वीप ( ये-पो-ति)- अपनेको राजगोंड़ वतलाते हैं । १५७९ ई०में दी हुई सनदके में उत्तीर्ण हो वहां उन्होंने ब्राह्मण्यधर्मका विस्तार देखा। अनुसार ये राज्यसम्पदका भोग करते आ रहे हैं ! फिङ्ग- पोछे वहांसे वे चीनदेशके कङ्ग चाउ नगरमें पहुंचे। श्वर ग्राम यहांका प्रधान स्थान है। चाङ्ग-अन राजधानीका परित्याग कर ५ वर्ष परि- फिचकुर (हि० पु०) वह फेन जो मूर्छा या बेहोशी आने भ्रमण करने के बाद वे मध्य भारतमें उपस्थित हुए। यहां पर मुंहसे निकलता है। प्रायः ६ वर्ष तक रह कर उन्होंने करीब ३० विभिन्न फिट ( हि अध्य० ) छिक, छी। राज्यों में परिभ्रमण किया था। चौदह वर्षके बाद वे फिटकरी ( हिं० स्त्री० ) फिटकिरी देखो। स्वदेशके सिङ्ग-चाऊ नगरमें पहुचे। पीछे नांकि शहर- फिटकार ( हिं० पु० ) १ धिक्कार, लानत । २ शाप, बद- वासी भारतीय बौद्ध श्रमण बुद्धभद्रकी सहायतासे उन्होंने दुआ। ३ हलकी मिलावट, भावना। अनेक धर्म ग्रन्थों का अनुवाद और निज भ्रमण-विवरण फिटकिरी --खनामख्यात खनिज पदार्थ विशेष जो सल- प्रकाशित किया। ८६ वर्ष की उमरमें उनकी मृत्यु हुई।। फेट आफ पोटाश और सलफेट आफ अलमोनियमके फाहिशा ( अ०वि० ) पुश्चली, छिनाल । पानीमें जमनेसे बनता है। भारतवर्ष में विहार, सिन्ध, फिकरना (हिं० क्रि० ) फेंकरना देखो। कच्छ और पञ्जाबमें फिटकिरी पाई जाती है। मैलके या फिंकवाना (हिं० क्रि०) फेंकनेका प्रेरणार्थक रूप, फेंकनेका अन्यान्य द्रष्योंके योगसे यह लाल पीली और काली भी काम कराना। होती है। भिन्न भिन्न देशोंमें यह भिन्न भिन्न नामोंसे फिगा (हिं० पु०) एक प्रकारका पक्षी जो सिन्धुसे आसाम प्रसिद्ध है, यथा बङ्गाल ---फटकिरि, संस्कृत-स्फटि तकके बड़े बड़े मैदानोंमें पाया जाता है। इसके पर कारी, अरब--सिव, जाज; पारसा ---जाक, जाके-सफेद भूरे, चोंच पोलो और पंजे लाल होते हैं। ये छोटे छोटे महाराष्ट-फकटी, तुर्ति, पटकि, तामिल-पटिकारम, मुंडोंमें इधर उधर उड़ते हैं। विशेषतः ये हरियालीमें | तेलगु-पटिकराम ; मलयालम्-पटिक्कारम; ब्रह्म- चरना पसन्द करते हैं। इसके झुण्डमेंसे जहाँ एक पक्षी किऔखिन् । उड़ता है वहां बाकी सब भी उसीका अनुसरण करते हैं। पर्वतके मध्यस्थित किसी स्थानमें यह मिट्टीके साथ इसकी लम्बाई प्रायः डेढ़ बालिश्त होती है। वर्षाऋतुमें मिलो देखी जाती है। उस समय इसका रंग कृष्णधूसर इसकी मादा एक साथ तीन अण्डे देती है। वर्णकी मछलीके छिलकेके जैसा रहता है। वैज्ञानिकोंने फि (स.पु.) १ पाप। २ निष्फल वाक्य । ३ इसे अग्निप्रस्तरसम्बन्धीय निरूपण किया है। उसमें सव कोप। नान्मुलिटिक ( Sub-nummulitic group )-की जगह