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फिरङ्ग
पर और एक भुजदण्ड पर हो, तब एक हाथ जोड़की फिरङ्गियों के देशमें यह रोस बहुत होता है, इसीसे
गर्दन पर रख कर दूसरे हाथसे उसके लंगोटको पकड़े : इस रोगको फिरङ्ग कहते हैं। इस रोगका दूसरा नाम
और उसे सामने झोंका देते हुए बाहरी टांग मार कर गन्धरोग भी है।
गिरा दे। चमड़े का गोल टुकड़ा जो तकयेमें लगा फिरङ्गरोगग्रस्त व्यक्तिका गावस्पर्श करनेसे, विशे-
कर चरखेमें लगाया जाता है। चरग्वेमें जब सूत कातते ' पतः फिरङ्गरोगग्रस्ता फिरङ्गिनीके साथ संसर्ग करनेसे यह
हैं, तब उसके लच्छेको इसीके दूसरे पार लपेटते हैं। ७, रोग उत्पन्न होता है। इस आगन्तुक रोगमें पश्चात्
वह गोल या चक्राकार पदार्थ जो बीचकी कीलीको एक दोषादिके लक्षण दिखाई परते हैं। अतएव सब टोष
स्थान पर हिला कर घूमता हो।
देख कर वात, पित्त और कफका विषय स्थिर करना
फिरङ्ग ( म० पु.) १ स्वनामख्यात यूरोपीयभेद। २ होगा। दोषमें वायुका लक्षण रहनेसे वातज फिरङ्ग,
यूरोपका देश, गोरोंका मुल्क, फिरंगिस्तान ।
इसो प्रकार पित्त और कफके सम्बन्धमें भी जानना
___ फ्रान्क नामका जर्मन जातियोंका एक जत्था था।
चाहिये। फिरङ्गिणीका संसर्ग हो इस रोगका प्रधान
वह जत्था ईसाकी ३री शताब्दीमें तीन दलोंमें विभक्त
कारण है। यह रोग तीन प्रकारका होता है । बाह्यफिरङ्ग,
हुआ। इनमेंसे एक दल दक्षिणकी ओर बढ़ा और गाल !
आभ्यन्तर फिरङ्ग और बहिरन्तर्भवफिरङ्ग।
(फ्रान्मका पुराना नाम )-से रोमकराज्य उठा कर उसने
___ वाह्यफिरंग विस्कोटकके समान शरीरमें फूट फूट कर
वहां अपनी गोटी जमाई। तभोसे फ्रान्स नाम पड़ा।
निकलता है और घाव या व्रण हो जाते हैं। यह वाह्य-
१०६६ और २५० ई० के मध्य यूरोपके ईसाइयों ने ईसा-
फिरङ्ग सुखसाध्य है अर्थात् अल्प आयाससे ही यह
को जन्मभूमिको तुर्कोके हाथसे निकालनेके लिये कई
। दूर हो जाता है। आभ्यन्तर फिरङ्गमें सन्धि स्थानों में
बार आक्रमण किये। फ्रान्क शब्दका परिचय तभोसे
ग किय। फ्रान्क शब्दका पारचय तभास आमवातके समान शोथ और वेदना होती है। यह कष्ट
तुर्कोको हुआ और वे यूरोपसे आनेवालोंको फिरङ्गी ! साध्य है। जो बाहर और भीतर दोनों ही जगह होता
कहने लगे। क्रमशः यह शब्द अरब, फारस आदि होता है उसे वहिरन्तर्भव फिरङ्ग कहते हैं। यह भी दुःख-
हुआ भारतवर्ष में आया। भारतवर्षमें पहले पहल पुर्त-
।। भारतवषम पहल पहल पुत्त साध्य है। इस रोगमें कृशता, बलक्षय, नाशाभङ्ग, अग्नि-
गाल आये, इससे इम शब्दका प्रयोग बहुत दिनों तक मान्य, अस्थिशोष और अस्थिको वक्रता आदि उपद्रव
उन्होंके लिये हाता रहा । फिर यूरोपियन मात्रको फिरङ्गी
होते हैं।
कहने लगे। .
३ रोगविशेष, गरमी, आतशक। केवल भावप्रकाश
___वाह्यफिरङ्ग नवोत्थित और उपद्रवरहित होनेसे सुख-
में ही इस रोगका विवरण देखने में आता है। चरक,
. साध्य, आभ्यन्तर फिरङ्ग कष्टसाध्य और वहिरन्तर्भव
सुश्रुत, हारीत आदि प्राचीन किसी भी प्रन्थमें इस रोगका
फिरङ्ग उपत्वयुक्त तथा अधिक दिनका होनेसे असाध्य
उल्लेख नहीं है। अतः यह निःसन्देह कहा जा सकता है, :
होता है।
कि पहले इस देशमें इस रोगका नाम निशान भी न था,
___चिकित्सा । -रसकर्पूर फिरङ्गरोगको एक उत्कृष्ट
पीछे फिरङ्गियों के इस देशमें वस जानेसे फिरंग रोगको
औषध है। इसके सेवनसे फिरङ्गरोग निश्चय ही आरोग्य
सृष्टि हुई है। यह भा स्पष्ट कहा गया है, कि फिरङ्ग रोग
होता है।
फिरङ्गो स्त्रोके साथ संभोग करनेसे हो जाता है। इसका
___ रसकपूरका निम्नलिखित प्रकारसे सेवन करना पड़ता
f:र" "गी शब्दमें देखो। इस रोगकी नामनिरुक्ति-
है। विहित विधानसे यदि सेवन किया जाय, तो मुखशोथ
के स्थलमें लिखा है-
नहीं होता।
"फिल्डसंज्ञके देशे बाहुल्य नैव यशवेन।
पहले गोधूम चूर्ण द्वारा एक छोटी कूपिका प्रस्तुत
तस्मात् फिरङ्ग इत्युक्तो व्याधिया॑धिविशारदः॥" कर उसमें ४ रत्ती शोधित पारा डाल दे। पीछे उस
। भावप्र०)। कूपिका द्वारा पारदके आवरक स्वरूप एक ऐसा गोल-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/९६
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