पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१०

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अगूर अँगुरी-(हि० स्त्री० ) उँगली। । हिन्दी में इसे दाख कहते हैं। दाख शब्द अंगुल-(सं० अङ्गुल ) अङ्गल देखी। संस्कृत द्राक्षा शब्दका अपभ्रश है । बंगला में रसभरे फलको आंगूर और सूखे फल को किश- अंगुलित्राण-(सं० अङ्गुलित्राण ) अङ्क लिखाण देखो। अंगुलितोरण-(सं० अङ्गुलितोरण) अङ्ग लितोरण देखो। मिश या मुनक्का कहते हैं। अंगूर के संस्कृत अंगुलिपंचक-(सं० अङ्गुलिपञ्चक ) अङ्ग लिपञ्चक देखो। पाय-ट्राक्षा, मृद्दीका, गोस्तनी, स्वाही, मधुरसा, अंगुलिपर्व-(सं० अङ्गलिपर्व ) अङ्गा लिपर्व देखो। चारफला, कृष्णा, प्रियाला, तापस-प्रिया, गुच्छपला, अंगुलिमुद्रा-(सं० अङ्गुलिमुद्रा) अङ्ग लिमुद्रा देखो । रसाला, अमला, रमा। अंगुलिवेष्टन- (सं० अङ्गुलिवेष्टन ) अङ्ग लिवेष्टन देखो। अंगूरको लता भारतक उत्तरपश्चिमप्रदेश, अंगुली-(सं० अङ्गुलि ) अङ्ग लि देखो। पञ्जाव तथा कश्मीर आदि प्रदेशों में बहुत लगाया अंगुल्यादेश-(सं• अङ्गुल्यादेश) अङ्ग ल्यादेश देखी। जाती है। हिमालयके उत्तरपश्चिम ओर यह लता अंगुल्यानिर्देश-(सं० अङ्गुल्यानिर्देश ) अङ्ग ल्यानिश देखो। आपसे आप उत्पन्न होती है। मंयुक्तप्रान्तकं कमाऊ, अंगुप्तनुमाई–(फा० स्त्री०) बदनामी। कलङ्क । कनाबर और देहरादून तथा मुम्बई प्रान्तके अंगुश्तरी–(फा० स्त्री० ) अँगूठी। मुद्रिका । नासिक, अहमदनगर, औरंगाबाद, पूना आदि स्थानों अंगुश्ताना—(फा० पु०) उँगली पर पहिनने को पीतल में इसकी लता लगाने पर उपज होती हैं। बङ्गाल, की बनी हुई एक टोपी जिसमें बहुतसे गड़हे बने और भारतवर्ष के दक्षिणप्रान्त तथा मिहल में इसकी रहते हैं। दरजी इसको विशेष काम में लाते हैं। लता विशेष नहीं बढ़ती और न फलही अच्छे होते वे सीते समय इसे पहिन कर इसीसे सुईको पिछली है। काबुल और पारस्य का अगर बहुतही अच्छा नोक को जिसमें डोरा पिरोया रहता है आगे बढ़ाने होता है। के लिये दबाते हैं। इससे सुई गड़ने का भय नहीं अंगूरको लता पृथ्वीपर नहीं फन्नती। उमर्क रहता। आरसी। लिये बांसका एक मण्डप मा बनाते हैं। इस मण्डप अंगुष्ठ-(सं० अङ्गुष्ठ ) अङ्क ४ देखो। को हिन्दी में मड़वा या टट्टी कहते हैं। टही शब्द ही अँगुसा-(हि. पु० ) अङ्कुर, अखुआ। विशेष प्रचलित है। इसको पनियां मुन्दर परन्तु अँगुसाना—(हि. क्रि० ) जमना। अङ्गुरित होना। कुम्हड़े या तेतुएस कुछ मिलती जुलती होती हैं। अँगुसी-( हि० स्त्री० ) सोनारों को वकनाल या टेढ़ी फल इसके छोटे, बड़े, गोल, लम्बे कितने ही आकार नली जिससे दिये के सामने फेंक कर टांका जोड़ते हैं। के होते हैं। ये फल लतामें गुच्छे गुच्छ होकर लगते अँगूठा (हि.पु.) अंगुष्ठ। मनुष्य के हाथ को सबसे हैं। इसके फल कच्ची अवस्था में हर, देवदारुक फलक छोटी और सबसे मोटी उँगली तर्जनी की बगल के समान और पकने पर कुछ पौले हो जाते हैं। पक्के छोर पर की उँगली जिसका जोड़ हथेली पर हो फलका स्वाद अम्बमधुर है। वैद्यक शास्त्रक मत अर्थात् कलाईके नीचे की सबसे मोटी उँगली। से अंगूर बहुत ही मधुर, अम्ल, रुचिकर, स्निग्ध होता किसी वस्तु के पकड़ने में इसकी सहायता प्रधान है। इसके सेवनसे शीत, पित्त, दाह, मूत्रदोष, तृष्णा, रहती है। वायु घाव, क्षीणता आदि नष्ट होते हैं अँगूठा चूमना-खुशामद करना। अँगूठा दिखाना पहिले भारतवर्षमें इसकी खेती बहुत कम होती धोखा देना। अँगूठे पर मारना तुच्छ समझना। थी। ये, अफगानिस्थान, काबुल से यहां आते थे ; अँगूठी-(हि० स्त्री० ) मुंदरौ। मुद्रिका । परन्तु मुसलमानी बादशाहत के समय मुसलमान अंगूर-(फा. पु०) दाख। द्राक्षा। एक प्रकार की बादशाही का इधर ध्यान गया और तबसे ही भारत- लता और उसका फल । यह फ़ारसी भाषा का शब्द के किसी किसी प्रान्तमें इसकी उपज होने लगी। । 1