पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१०५

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अगरसार-अगल-बगल ६ दलाली, मुनौबी, सुनारके व्यवसाय या कोई दूसरे भद्रो अगरु-निर्यासको बड़े आदरको सामग्री समझते थे। चित व्यवसायको अवलम्बन किया करते हैं। किन्तु भारतवर्ष में देवार्चनाके समय चन्दनके साथ अगर कोई किसी क्रमसे कृषिकार्य नहीं करता। पश्चिमौय काष्ठ और अगरु-रसको कितने ही लोग व्यवहार अगरवालोंमें सभी और पूर्वीय अगरवालोंमें अधिकांश करते हैं। सिवा इसके, पूर्व कालके लोग इत्र, गुलाब, यज्ञोपवीत धारण करते हैं। समाजमें ब्राह्मणों और लेवेण्डर आदि न पहचानते थे। उस समय मातायें कायस्थोंके पौछ ही इनका स्थान है। यह सभी निरा. बालक बालिकाओंको ललाटमें अगरुको अलकावली मिष भोजी होते हैं। जैन अगरवाल इसीसे सन्ध्याके लगाकर सजातो थीं। अभिसारिका कामिनियां भी “पहिले भोजन कर लेते हैं, जिसमें कोई क्षुद्र कौट-पतङ्ग अगरुसे वेशविन्यास करतो थीं। खाद्यके साथ मुख में चला न जाय, यह कभो रातको कोचीन देशमें अगरुके बकलेसे एक तरहका मोटा भोजन नहीं करते। काग़ज़ तय्यारहोता और लकड़ीसे चन्दनकै तेल जैसा अगरसार (हिं० पु०) अगरका बुरादा या सत । खुशबूदार तेल निकाला जाता है। मेहरोग और अगरी (सं० स्त्रो०) न-गर-डोष्। नास्ति गरः विषं उदरामानमें यह तेल महोपकारी है। लकड़ीका यस्मात्। देवदारु वृक्ष। (त्रि.) मूषिक-विषहारी। काढा ज्वर रोगमें प्रयोग करनेसे प्यास और हिचको चूहेका जहर उतारनेवाली। बन्द हो जाती है। शिरके घूमने और पक्षाघातको पौड़ा- अगरीया-ठगोंका एक वंश । यह दाक्षिणात्यसे निकाले में इस काढ़ेको सेवन करनेसे थोड़े परिणाममें उपकार जानेपर कुछ दिन आगरेके पास रहा था। बङ्गालमें दिखाई देता है। वैद्यक-ग्रन्थमें अगरुके कई एक सब लोग इसे 'हा-घर' कहते हैं। इस जातिको गुण लिखे हैं-खानेमें तोता, गर्म और कड़ा, लगाने में स्त्रियोंके गलेमें कांच या पोतको माला.पड़ो रहती रूखा ; और इसके द्वारा कफ, वायु, वान्ति, मुखरोग, है। हिन्दुस्थानियोंकी तरह यह लहँगा पहनतों व्रणरोग और कान और आंखको पौड़ा मिट जाती और सब जगह भीख मांगते घूमा करती हैं। है। अगरुके निर्यासका गुण लकड़ी हो जैसा है। अगरु (सं० क्लो०) न-गृ-उ, नञ्-तत्। (Aquilaria इस निर्याससे एक तरहको दवा बनती है। उसके Agallocha, Aloe or Eagle -wood) अगरु चन्दन । हारा दुष्टव्रण, ग्रन्थि-वात, दुष्टरक्त प्रभृति रोग प्रशमित यह देखने में तो काला, किन्तु पत्थरपर घिसनेसे सुन्दर होते हैं। ब्रह्मचारी कहते हैं, कि सत्पथ्याशी होकर पीतवर्ण हो जाता है। अगर लकड़ी एक तरहको नहीं इस दवाको एक वर्ष सेवन करनेसे शरीरमें किसी होती। सिलहट, दाक्षिणात्य, आसाम प्रभृति कितने प्रकारका क्षत उत्पन्न नहीं होता। हौ स्थानों में इसके कई तरह के वृक्ष हैं, इन सब वृक्षों- गुग्गु ल शब्दमें इसका विवरण देखी। अगरू-अगर देखो। की लकड़ी सुगन्धित और देखनेमें अगरु जैसी होती है। अगरो (हिं० वि०) १ अगला, पहला। २ अच्छा, बाजारमें असली अगरु पहचानना कठिन है। इसका उत्तम, श्रेष्ठ, बढ़िया। ३ अधिक, ज़ियादा, बहुत । पेड़ बृहदाकार होता है। उत्कृष्ट अगरु सिलहटके अगर्व (सं० त्रि०) १ जिसे गर्व न हो, अभिमान- पावत्य प्रदेशमें उपजता है। पुराने वृक्षसे गुग्गुल रहित । २ सौधा, भोला-भाला। जैसा एक प्रकारका नियास निकलता है। चमकीले अगहित (सं० त्रि०) न गर्हितः, गर्ह कुत्सायां-क्त वृक्षमें वैसा नियास नहीं मिलता। गुग्गुल जलानेसे गर्हितः नञ्तत्। १ आनन्दित। २ प्रशंसित । जैसा सुगन्ध फैलता, अगरुके नियासमें भी ठोक वैसा- अगल-बगल (फ़ा० वि०) पास-पास । इधर-उधर । ही सौरभ होता है। धूपदानमें इसे जलानेसे अन्त:- साथ-साथ । दोनो ओर । हिन्दुस्थानी बालक सन्ध्याको करण प्रफुल्ल हो जाता है। पूर्व कालमें अरब, ईरान अपने एक खेलमें कहते हैं- और यूनान आदि देशोंके लोग भारतवर्षके अगरु और “अगल बगलमें पड़ी जजोर । कोई ले तुक्कल कोई ले तौर।"

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