पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१०६

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वकवृक्ष, मौलसिरौ। । - अगलहिया–अगस्त्य अगलहिया (हिं० स्त्री०) एक प्रकारका पक्षी। सिरौ। २ अगस्त्यमुनि। ३ अगस्त्यक पुत्र। ४ दक्षिण- अगला (हिं० वि०) १आगेवाला। सिरका । सम्मुखस्थ । दिक् । अगस्त्य देखी। २ पहलेका, प्रथम । पूर्ववर्ती। जो पहले हो गया अगस्तिद् (सं० पु०) अगस्तिप्रियः द्रुः वृक्षः । शाक-तत्। हो। ३ पुराना, प्राचीन। बोत समयका। जोर्ण । ४ आगामी। भविष्य । जो आगे आयेगा। ५ दूसरा। अगस्त्य (सं० पु०) अग-स्त्य -क। अगं विन्ध्याचलं स्त्या- किसीके पीछका। (पु०) १ अगुआ। मुखिया । अग्रगण्य । यति । १ अगस्त्य मुनि । २ वकवृक्ष । प्रधान । अग्रसर । आगे चलनेवाला। नेता। २ चतुर संसारमें गुणका ही अधिक आदर होता है। लोग. मनुष्य । ३ धूर्त। ४ फुर्तीला आदमी । ५ पुरखा। आग वंशमयादाको देखते हैं, किन्तु इससे क्या पूर्वपुरुष। ६ स्त्रियोंके कहनेका पतिवाला नाम । होता है ? केवल सत्कुलका तो उतना गौरव देख. ७ करनफूल के सामनेवाली ज़ञ्जौर। ८ मांझा, गांव नहीं पड़ता। सद्गुणके ऊपर जो कुलमर्यादा निभेर और उसकी सौमाकै बीचका स्थान । करे, तो अच्छा हौ है; यदि न निर्भर कर, तो कोई. अगवाई (हिं० खो०) पेशवाई। अगवानो। स्वागतके क्षति नहीं। मोतो सौप या गुञ्जामें उत्पन्न होता है। लिये आगे चलकर जाना। अभ्यर्थना। (पु०) अग्रगामी। सौप या गुञ्जामें उत्पन्न होनसे मोतीका कोई अनादर मुखिया। आगे जानेवाला । अगुआ। अग्रसर । नेता। नहीं करता। मृणालको पङ्कस उत्पत्ति है, डांठीमें अगवाड़ा (हिं० पु०) घरके सामनका स्थान। घरके कांटे होते हैं; किन्तु कोई यह कह कर पद्मपुष्पमें आगको भूमि। अयत्न नहीं दिखाता। अगस्त्य महातेजा, महातपा. अगवान (हिं० पु०) १ पेशवाई करनेवाला । जो स्वागत थे-उनका जन्म कुम्भमें हुआ। ऋग्वेदमें लिखा है, करे। अभ्यर्थनाकारक। आगे चलकर जो अगवानी कि यज्ञस्थलमें ऊर्वशीको देख मित्र और वरुणका करी। २ विवाहमें जो लोग कन्याको ओरसे बरात को रेतःस्खलन हुआ था। वही शुक्र यज्ञीय कुम्भमें जा. आगे बढ़कर अगवानी करते हैं। ३ अभ्यर्थना। पड़ा। उसौसे वशिष्ठ और अगस्त्यको उत्पत्ति है- स्वागत । पेशवाई। “सबह जाताविषिता नमोभिः कुम्भे रेत: सिषिचतुः समानं । अगवानी (हिं०. स्त्री०) १ पेशवाई। अभ्यर्थना । आगे ततीह मान उदयाय मध्यात्ततो जातमृषिमाहुवशिष्ठम् ।" (ऋक् ७।३३।१३। ) बढ़कर स्वागत करना।२ विवाहमें कन्याको ओरसे इस स्थलमें अगस्त्यका नाम 'मान' लिखा गया है। लोगोंका आगे बढ़कर वरपक्षवालोंको अभ्यर्थना करना। सायणाचार्यने ऋग्वेदके उक्त मण्डल और सूक्त वाले (पु०) अगुवा । आगे जानेवाला। अग्रसर। ग्यारहवें ऋक्को व्याख्या में बृहद्देवतासे कई एक अगवार (हिं० पु०) १ हलवाहेको देनेके लिये अबके श्लोक उद्धृत किये हैं। इसका कारण इन श्लोकोंमें ढेरसे पहले निकाला गया अंश। २ वह अन्न जो निर्दिष्ट है, कि यह महर्षि किस कारणसे पहिले. भूसके साथ उड़ जाता और जिसे गरीब लोग उठा 'मान' नामसे प्रसिद्ध हुए थे- लेते हैं। ३ घरके सामनेका स्थान । ४ गांवका चमार। अगवासी (हिं० स्त्री०) १ फाल लगानको हलवालौ "तयोरादित्ययोः सर्व दृष्ट्वासरसमूशौं। लकड़ो। २ उत्पन्न हुए अबसे हलवाहेको मजदूरी- रेतयस्कन्द तत् कुम्भे न्धपतहासतौवरे। के लिये दिया जानेवाला अंश । तेनैव तु मुहर्तन वौय्यवन्तौ तपस्विनौ। अगस्त्यश्च वशिष्ठय तवर्षों संवभूबतुः । अगसारौ (हिं० वि०) आगे। सामने । बहुधा पतितं रेतं कलसे च जले ले। अगस्त-(August) अङ्गरैजीका आठवां महीना। स्थले वशिष्ठस्तु मुनिः संवभूवर्षिसत्तमः । अगस्ति (सं० पु०) अग-अस-ति । विन्ध्याख्यमगमस्य- कुम्भे त्वगत्यः सम्म तो जले मत्स्यो महाद्युतिः । तौति । बाहुलकात् असेस्ति । उए ।१७६ । १ वकवृक्ष, मौल- उदियाय ततोऽगस्ताः शम्यामानी महातपाः ।।