पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१११

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अगूढगा-अग्नि १०५ हिङ्ग, होंग। हिङ्गु देखो। (त्रि) अगुह्य सौरभ । जिसकी अगोही (हिं० पु०) जिस बैलके सींग आर्गको निकले महक न छिपे। हो । नुकौले सोंगवाला बैल । अगूढगन्धा (हिं० स्त्री०) हींग । अगौंडी (हिं० स्त्री०) गन्ने या ऊखके ऊपरका हिस्सा। अग्रभोत (सं० त्रि०) न गृहीतं, छान्दसत्वात् हस्य अगौकस् (सं० पु०) अगः पर्वतः ओकः स्थानं यस्य । भः । अग्रहीत। १ शरभ । २ सिंह। ३ श्रेष्ठमृग। ४ पक्षी। (त्रि.) अग्गृह्या (सं० स्त्री०) न ग्रह-क्यप् कर्मणि । पदाख रिवाया पर्वतवासी, पहाड़ी। पक्ष्यषु च। पा० ३।१।११८: अस्वत्रन्त्रा। अखरिणी। अगौढ़ (हिं. पु.) अग्रिम । पेशगी। अगाऊ। आगे अगेंथ (हिं० पु०) अरनी। गनियारी। दिया जानवाला रुपया। अगेला (हिं० पु०) १ हाथमें सबसे आगे पहननका अगौनी (हिं० क्रि० वि०) आग। पहिले। (स्त्री०) १ आभूषण । २ भूसे के साथ उड़ जानेवाला अन्न । अभ्यर्थना । पेशवाई। २ विवाहमें बरातकी अगवानीके अगेह (सं० त्रि०) जिसके मकान न हो। लामकां । समय दरवाजेपर छूटनेवाली आतिशबाजी। बिना भवनका। अगौरा (हिं. पु०) ऊख या गन्नेके ऊपरका भाग। अगैरा (हिं० पु०) फसलका पहला अन्न । अगौली (हिं. स्त्री०) एक प्रकारको छोटो ऊख । अगोई (हिं० वि०) ज़ाहिर । प्रकट । छिपी नहीं। अगौहैं (हिं० क्रि० वि०) १ आगे । २ पहिले।३ सामने। अगोचर (सं० त्रि०) न गावः इन्द्रियाणि चरन्ति अस्मिन्, अग्नामरुत् (सं०पु० वै०) अग्निश्च मरुच्च । मृ-उति मरुत् । गो-चर-घ। गोचरसंचरवहब्रजव्यजापणनिगमाश्च । पा० ३।३।११। मृगोरुति । उण १।६४। द्विवचनान्त इन्द। अग्नि और मरुत् इन्द्रियसे अप्रत्यक्ष विषय, अज्ञात। जो इन्द्रियसे देवता, जो एक हविःको पान करते हैं। जाना न जा सके, नामालूम। अग्नाविष्णु (सं० पु०) बिंई आनङ् अग्निश्च विष्णुश्च । गोचर-शब्द जिस इन्द्रियकै साथ प्रयुक्त होता, उससे विर्षः किञ्च । उण् २।३८ । एक आहुतिभोक्ता देवद्दय ; अग्नि उसी इन्द्रियका बोध्य समझ पड़ता है। जैसे दृष्टिगोचर, और विष्णु । अर्थात् दर्शनेन्द्रियका बोध्य या आंखसे देखा। कर्ण- अग्नायौ (सं० स्त्री०) अग्नि-ऐ-ङो । अग्नि शब्द देखो। गोचर, अर्थात् श्रवणेन्द्रियका बोध्य या कानसे सुना, १ अग्निको भार्या, स्वाहा । २ वेतायुग। और ज्ञानगोचर, अर्थात् ज्ञानेन्द्रियका बोध्य या अग्नि (सं० पु०) अङ्ग-नि। अङ्गति अई गच्छतौति । अक्ल से समझा हुआ । अगोचर-अज्ञात । अङ्गोलोपश्च। १ अनल, वह्नि, पावक, अगोट (हिं. स्त्री०) १ रोक । २ शरण। ३ भित्ति । हुताशन, आग, आतिश। २ अग्निदेवता । परम पुरुषके ४ नोव। मुखसे इनका जन्म हुआ है। (ऋक् १०१९०१) मतान्तरसे अगोटना (हिं० क्रि०) १ रोकना । २ अटकाना। धमके औरससे वसु-भार्याक गर्भ में अग्नि उत्पन्न ३ पकड़ लेना। ४ रख छोड़ना। हुए थे। किसौ स्थल में लिखा है, कि यह कश्यप और अगोता (हिं० क्रि० वि०) आग, सम्मुख, सामने। अदितिके पुत्र हैं। अग्नि स्थूलकाय, लम्बोदर और रक्त- (पु.) स्वागत। वर्ण हैं । इनके केश, श्मश्रु, धू और चक्षु पिङ्गलवर्ण हैं, अगोरदार (हिं. पु०) १ चौकीदार। २ पहरुआ। और यह हाथमें शक्ति और अक्षसूत्र लिये बकरेपर सवार ३रक्षक। रहते हैं। पुराणमें इनको और भी अन्यान्य प्रकार मूर्तियों अगोरना (हिं० क्रि०) १ मार्ग देखना । २ किसोके को वर्णना लिखी है। कहीं पर इनके तीन पैर, सात वास्ते बैठे रहना। ३ रक्षा करना। ४ खबर लेना। हाथ और दो मुंह बताये गये हैं, और इनका बालार्क ५ पहरा देना। ६ अटकाना। जैसा रङ्ग निहारित हुआ है। यह दक्षिण-पूर्वकोणके अगोरिया (हिं० पु०) खेत रखानेवाला । रखवाला। अधिष्ठात्री देवता हैं। ऋग्वेदके एक-चतुर्थी शसे भी २७ 1 उण ४५०।