पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/११८

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अग्निध्–अग्निपुराण अग्निध् (सं० पु०) अग्नि-धा-क्विप् । यथाविधानेन अग्नि भांतिकौ। स्त्रीके प्रति सन्देह होने पर घरका मालिक दधाति । ६ तत् । अग्न्याधानकर्ता। हलके लोहेका फार आगमें खूब गर्मकर उसे जीभ- अग्निधान (सं० लो०) अग्नि-धा-ल्यु ट, बहुव्रौ । अग्नि से चाटनेको कहता है । साध्वी स्त्री होनेसे उसका मुंह होत्रगृह। नहीं जलता। किन्तु असतो स्त्रीके चाटनेकी चेष्टा अग्निनक्षत्र (सं० लो०) अग्न: नक्षत्रम्, ६-तत् । करते ही उसका मुंह जल जाता है। गृहस्वामी फिर कृत्तिका नक्षत्र । उसे ग्रहण नहीं करता, सुतरां उस अभागिनी दारीको अग्निनयन (स० पु०) अग्नि-नी-ल्यु ट भावे, ६-तत् । यावज्जीवन कलङ्गका टीका माथेमें लगा बिताना १ अग्निसंस्कार । बहुव्री०।२ देवता।३ रक्तनेत्र, लाल पड़ता है। पहले भारतवर्ष और युरोपमें भी तस्करोंका आंखें । (क्लो०) ६-तत् । अग्निके नेत्र, आगको आंखें। दोषादोष अग्नि द्वारा परीक्षित होता था। राजसभामें अग्निनिर्यास (स. पु०) अग्ने र्दीपको निर्यासोऽस्य । चोरके पकड़ पानसे राजा इस बातको परीक्षा अग्नि- निर्-यस्-घञ्, निर्यास । अग्निजार वृक्ष । में लेते थे, कि वह यथार्थ अपराधी था या नहीं। अग्निनिर्वापण (स० क्लो०) अग्नि-निर्-वप्-णिच्-ल्युट । अगरेजोंके इस देशमें आनेसे पहिले हिन्दू-नृपति इस आग बुझा देना। आगका लगना रोकना । विचारके पक्षपाती थे। उसी समय तक यह रीति अग्निनेत्र (सं० पु०) अग्निर्नेबाहुतहवि: प्रापयिता दाक्षिणात्यमें प्रचलित रही, अब रहित हो गई है। यस्य, अच् समासे बहुव्री। देवता। (लौ०) अग्निपुच्छ (सं० पु०) अग्नः अग्न्याधानस्थानस्य पुच्छः अग्ने नयनम्, ६-तत्। अग्निके चक्षु । इव। ६-तत्। यज्ञस्थलमें आहिताग्निस्थानका पश्चा- अग्निपद (स. क्लो०) अग्नः पदं, ६-तत् । १ अग्न्या- भाग। धानका स्थान । २ अग्निबोधक शब्द। अग्निपुराण (स• लो०) अग्निना प्रोक्तं पुराणम् । अष्टा- अग्निपरिक्रिया (स० स्त्री०) अग्नि-परि क-श भावे, क दश पुराणोंके अन्तर्गत अष्टम पुराण। अग्निका कहा जः श च । ६-तत् । अग्निपरिचर्या। होमादिक्रिया। हुआ पुराण। अग्निने वशिष्ठके निकट ईशानकल्पक अग्निपर्वत (स० पु०) अग्निसाधकः पर्वतः। झमृदृशिषजि जिस वृत्तान्तको वर्णन किया था, उसीके विवरणपर पविपच्यमितमिनमिहाभ्योऽतच् । उण ३।११०। पर्वि-अतच्-पर्वतः। अग्निपुराण बना। इसको श्लोक-संख्या १०००० है। आग्न यगिरि। इसमें विष्णुका अवतार दिखाया गया है। जगत्सृष्टि, अग्निपरीक्षा (स० स्त्री०) अग्नौ परीक्षा, ७-तत् । विष्णुपूजा, अग्निपूजा, मुद्रादिका विवरण, दौक्षा, १ अग्निमें स्त्रियोंके दोषादोषको परीक्षा। २ अग्निमें अभिषेक, मण्डप-लक्षण, कुशमार्जन, पवित्रारोपण, स्वर्णादि धातुको विशुद्धाविशुद्ध परीक्षा । खरा देवालयप्रतिष्ठा, शालग्राम-पूजा, नाना प्रकारको सोना मट्ठीको आगमें रखनेस विवर्ण नहीं होता। मूर्तिका लक्षण, विनायकपूजा, दीक्षाको विधि, देव- किन्तु मिलावटी सोनेका रङ्ग बदल जाता है। यही प्रतिष्ठा, ब्रह्माण्ड-निरूपण, गङ्गा प्रभृति तीर्थका वृत्तान्त, स्वर्ण, रौप्यादिको अग्निमें परीक्षा है। पहिले यह परीक्षा | षट्कर्म, मन्त्र यन्त्र, और औषधिका विवरण, कुजिका- भी अग्निमें होती थी, कि स्त्रियां सती हैं या व्यभि की पूजा, षोढ़ान्यास, होम, मन्वन्तर, ब्रह्मचर्य, श्राद्ध, चारिणी, आज भी कोई-कोई इतर जातियों में यह प्रथा ग्रहयज्ञ, वैदिक और स्मातकर्म, प्रायश्चित्त, तिथिव्रत, प्रचलित है। वेदिया और बाजीगर देखो। सौताने ज्वलन्त वार, नक्षत्र और मासका व्रत, दीपदान, नवव्यूहाचन, अग्निकुण्डके भीतर बैठ रामको अपनी पतिपरायणता नरकका विवरण, दानधर्म, नाड़ीचक्र, सन्ध्यापद्धति, को परीक्षा दी थी। अब आगमें बैठ परीक्षा देनेका गायत्रीका अर्थ, लिङ्गस्तोत्र, राज्याभिषेकमन्त्र, राज- दिन नहीं रहा। आजकल केवल इतर जातियोंके धर्म, स्वप्न, शकुन, युद्धदीक्षा, नौतिशास्त्र, रत्ननिरूपण, बीच अग्निपरीक्षा रह गई है ; किन्तु वह है दूसरी । धनुर्विद्या, व्यवहारविधि, देवासुरका युद्ध, आयुर्वेद,