पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अग्निप्रणयन-अग्निमथ् ११३ हस्तिचिकित्सा और शान्ति, गोचिकित्सा, नानाविध और गण्डमाला रोगमें यह पत्थर महौषधोंके बीच पूजा और शान्ति, छन्द और साहित्य-विद्या, एकार गिना गया है। णादि विचार, स्वर्गवर्ग, प्रलय, योगशास्त्र और ब्रह्मज्ञान इस जातिवाला पत्थर अनेक प्रकारका होता है। प्रभृति नाना विषय इस पुराणमें ग्रथित हुए हैं। प्रस्तर देखो। चकमकके कणामें कुछ अक्साइड् रहता है। अग्निपुराणको श्लोकसंख्या गिनने में दश हजारसे इसका आपेक्षिक गुरुत्व २०६४२ है। यह पत्थर नाइ- अधिक नहीं होती। किन्तु पुस्तक विशेषमें लिखा है, ट्रोजनके साथ कड़ा हो मट्टोसे कुछ नीचे ही रहता है। कि इसकी श्लोक संख्या साढ़े चौदह हज़ार है। कांच शब्दमैं चकमकका विस्तारित विवरण देखो। पुराण देखो। अग्निबाहु (सं० पु०) अग्निरिव तेजस्वन्तो बाहू यस्य, अग्निप्रणयन (स० क्लो०) अग्नि-प्र-नो-ल्युट भावे, ६ अथवा अग्निराग्न यास्त्रं बाही हस्त विद्यते यस्य । तत् । यथाविधि मन्त्रपाठपूर्वक अग्निसंस्कार विशेष । अर्जिदृशिकम्यमिपंशिवाधामृजिपशि तुग्धुग दीर्घहकाराश्य । उण १।२७ । विधिसे मन्त्र पढ़ अग्निका संस्कार विशेष करना। १ जनैक राजपुत्र। काम्याक गर्भ और प्रियव्रतके अग्निप्रतिष्ठा (स. स्त्री०) विवाहको अग्निस्थापना। औरमसे इनका जन्म हुआ था। इन्होंने अपना विवाह अग्निप्रवेश (सं० पु०) अग्निमें पड़ना । अनुमरण देखो। न किया, जीवनावधि यह केवल तपस्या करते रहे। अग्निप्रस्कन्दन (स. क्लो०) अग्नः प्रस्कन्दनम् । ६-तत्। २ उत्कल देशमें एक दूसरे अग्निबाहुका नाम सुन श्रौत और स्मार्त होम परित्याग । (महाभारत ११८॥२६ पड़ता है। उन्होंने उत्कलवासियोंके साथ युद्ध कर नीलकगढ़।) जगन्नाथको मूर्ति चुराई थी। अग्नेर्बाहुरिव । ६-तत् । अग्निप्रस्तर (स० पु०) अग्नि-प्र-स्तृ-अच, ६-तत् । ३ धूम, धुआं। अग्न्यु त्पादक प्रस्तर, आग पैदा करने वाला पत्थर । अग्निभ (सं० लो०) अग्नि-भा-क, अग्निरिव भाति । चकमक, पथरी। पहले भारतमें चकमकका बहुत १ स्वर्ण, सोना। २ अग्निवर्ण वस्तु, आग जैसी सुर्ख चलन था। उस समय विलायती दियासलाई बनाने चीज़ । भं नक्षत्र अग्निर्भ, ६-तत् । ३ कृत्तिका नक्षत्र। पर भी कितने ही दिन इस देशमें न आई थी। अग्निभू (सं० पु०) अग्नि-भू-क्किप, आग जलानेको लोग चकमक रगड़ते थे। तोड़ेदार भवतीति । १ अग्निपुत्र, कार्तिकेय। २ जल। ३ स्वर्ण । बन्दूकमें चकमक पत्थर लगाया जाता है। इस पत्थरसे अग्निभूति (स'• पु०) अग्नि-भू-क्तिन्, अग्नेरिव भूतिरै- बढ़िया शीशा और नकली हौर आदि बनते हैं। श्वर्य यस्य । बौद्धविशेष। (स्त्री०) अग्निको भूति, होमियोपथीके डाकर विशुद्ध चकमक पत्यरको अग्निवीर्य । (त्रि०) बहुव्री। अग्निसम्भव वस्तु, आगसे (Silica, Flint) औषधार्थ प्रयोग करते हैं। पुरातन पैदा हुई चीज़। अस्थिरोग या हडडीको बीमारी (Rickets ; Caries अग्निभ्राजस (स' त्रि०) अग्नि-भाज-असुन्, अग्निरिव and exfoliation of bone, Tabes Dorsalis), भ्राजते दीप्यते । अग्नितुल्य दीप्तियुक्त, आग जैसा चम- श्लैष्मिक ग्रन्थिको पीड़ा, यक्ष्मा, स्फोटक और दूसरी कौला ; विद्युत्, बिजलो। पीबसे भरौ बीमारियोंमें सड़े दांतके दर्द और टूटी अग्निमणि (स० पु०) अग्नेरुत्पादको मणिः प्रस्तरः, हड्डोको यह बहुत जोरदार दवा है। होमियोपेथीके शाक-तत् । १ सूर्यकान्तमणि, आतशी शीशा । २ चक- डाकर कहते हैं, कि टूटी हड्डोको ऐसी चमत्कार मक पत्थर। औषधि दूसरी नहीं। एवं स्फोटकादि चकमकको अग्निमत् (स० पु०) अग्नि-मतुप्। साग्निक ब्राह्मण, सेवन करनेसे शीघ्र पक जाते और पीबका बढ़ना भी आहिताग्निक। शीघ्र कम पड़ जाता है। सिवा इसके पौबसे पैदा हुए अग्निमथ् (सं० पु०) अग्नि-मन्थ-क्विप् न लोपः । अग्नि जीर्णज्वर, कर्णमूल फूलकर पौब पड़ने और गर्मी मथ्नाति । याज्ञिक, साग्निक ब्राह्मण । जो अरणिद्दयके २८ अग्न रनलात्