पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१३०

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- अग्निष्टोम १२४ दक्षिण श्रोणी, पायुनाल और बसा प्रभृति द्वारा होम सोमाभिषव समाप्त होने पर ऋत्विक्गण महाभिषव किया जाता है। इस तरह मन्त्र पाठ कर पशु द्वारा अर्थात् प्रचुर परिणामसे सोमपेषण आरम्भ करते हैं। होम करनेका नाम अग्निष्टोमीय पशुयाग है। इस यह सोम उत्तम रूपसे पिष्ट होने पर अध्वर्यु तब उसमें होमके बाद उपवसत नामक क्रियाको अनुष्ठान जलसेक करते हैं। इस सोमको तब आधवनीय कलस- करना विधय है। में स्थापन कर आलोड़न करना आवश्यक है। पीछे इसके पर दिवसका नाम सूत्यादिवस है। इसी वह वस्त्र द्वारा निष्यौड़न कर लिया जाता है। वही दिन अध्वर्यु प्रभृति कृतस्नान हो कर प्रथम हविर्धान रस क्रमसे चमस और कलसमें पूर्ण किया जाता है। शकटसे सीमको आहरण कर उपसव स्थानमें स्थापन इसी समय नाना प्रकार वेदमन्त्र पढ़े जाते हैं। और अध्वर्यु इस दिन अति प्रत्यूषमें उठ कर होताको इसके बाद सोम द्वारा अग्निमें होम किया प्रैष मन्त्रसे उबुद्ध करे। होता भी प्रातरनुवाकको जाता है। अग्नि, सूर्य, इन्द्र, वायु, मित्र, वरुण, पाठ कर अश्विनीकुमारका स्तव करता है। तब अश्विनीकुमार प्रभृति देवताओंके उद्देशसे होम आग्निध, पुरोडाश प्रभृतिको प्रस्तुत करना प्रारम्भ होता है। करते हैं। उन्नेता सोमपात्र सकल सज्जित करता है इस तरह सोम द्वारा आहुति समाप्त होने पर अनन्तर हविर्धान शकटके अक्षप्रदेशमें दो और्ण ऋत्विक, यजमान प्रभृति यज्ञावशिष्ट सोमको पान कर वस्त्र सोमरसको शोधनके लिये स्थापन करना कृतकृतार्थ होते हैं। ऋत्विक् और यजमानके सोम- पड़ता है। एक प्रादेश-प्रमाणका और दूसरा अरनि पानका विधान एक रूप नहीं हैं। प्रमाणका होता है। उक्त रूपसे सोमपान समाप्त होने पर यह यज्ञ एक पीछे हविर्धान शकटके नीचे मट्टीको द्रोण-सकल प्रकार पूरा हो जायेगा। तब यजमान पूर्वोल्लिखित को स्थापना की जाती और उत्तर हविर्धान शकटके सदोमण्डपमें जा कर ऋत्विकोंको दक्षिणा देंगे। इस ऊपर अन्य दो वृहत् कलस रहते हैं। इनमें एकका अग्निष्टोम यज्ञको दक्षिणा द्वादश शत गया है। सिवा नाम उपभृत और दूसरेका नाम आधवनौय है। फिर इसके सुवर्ण, वस्त्र, अश्व, अश्वतर, गर्दभ, मेष, छाग, उत्तर शकटके नीचे दश काष्ठमय चमस और पांच अन्न, यव और माष प्रभृति देनेका भी विधान है। मृन्मय घट स्थापित करना पड़ना है। यह सब कार्य यज्ञमें प्रभूत दक्षिणा आवश्यक है। उन्नता करता है। इस तरह यज्ञ समाप्ति के बाद यजमानको अवभृत पोछे अध्वर्युके अनुज्ञाक्रमसे यजमान,तत्पत्नी और स्नान कराना पड़ता यह स्नान महासमारोहसे चमसाध्वर्यु घट द्वारा जलको आहरण करेंगे। पुरुष सम्पन्न होता है। ऋत्विक, बन्धु, बान्धव और उनको जिस जलको आनयन करते, उनका नाम एकधन, पत्नी सब समवत होकर यजमानको स्नानार्थ किसी और स्त्रियोंका आहृत जल पावजन मसे एक महानदी या उसके अभावमें किसी पूर्ण जलाशय अभिहित है। पीछे यजमान प्रतिप्रस्थाता, नेष्टा और पर ले जाते हैं। गमनकालमें प्रस्तोता नामक ऋत्विक् अध्वर्यु यह कई जन त्विक् सोमाभिषव फलकके आगे-आग सामगान करते जाता है, और यजमान निकट उपविष्ट हो और उपलखण्ड ग्रहण कर सोमको प्रभृति पुरुष, तत्पत्नी प्रभृति स्त्रीगण निधनवाक्य गाती पेषण करेंगे। अध्वर्यु पांच मुष्टि सोमको प्रस्तरफलक हैं। यह निधन एक प्रकारका सामगान है। जलसन्नि- पर रखेंगे। प्रतिप्रस्थाता ः सोमके अंशुको ग्रहण कर -धानमें सबके उपस्थित होने पर प्रथम एक होमका खीय अङ्गलिसन्धिमें बांध लेंगे। पीछे सकल एकत्र हो अनुष्ठान किया जाता है। इस होमके बाद मन्त्रपाठ उसे निष्कासन करेंगे। इस सोमरसके निष्कासनका पूर्वक उसे स्नान कराया जाता नाम सोमाभिषव है। के हो जानेसे ही यज्ञको समाप्ति होती है। 1 । इस अवभृतस्नान