पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१३२

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१२६ अग्निसारा--अग्निस्तम्भ अग्निसारा (सं० स्त्री०) फलशून्य शाखा, बिना फलको जाता, किन्तु उसको भस्मके सहार वह हलकी चीज डाल। मञ्जरी। लटका करती है। अग्निसावणि (सं० पु०) एक पुराकालके मनु, पहिले कोई-कोई योगी हाथके ऊपर पीपरके पत्ते रख समयके एक मनुका नाम । मनु देखो। होम करते हैं। ज्वलन्त अङ्गार भक-भक जला करते अग्निसिंह (सं० पु०) सातवें कृष्ण वासुदेवके पिताका हैं, धौकी आहुति देने में आग झपसे लपक उठती है, नाम। (जैनशास्त्र) किन्तु हाथ पर आंच नहीं पहुंचती। यह ठीक-ठीक अग्निसिंहनन्दन (सं० पु०) अग्निसिंहके लड़के। प्रकाशित नहीं, कि इस प्रक्रियाका गूढ़ कौशल क्या है। अग्निसुन्दररस (स० पु०) अजीर्णाधिकारका रस, वह अग्निस्तम्भके जो कई एक कौशल प्रकाशित हैं, उनमें रस जो अजीर्णपर प्रयोग किया जाये। प्रखर अग्निकी आंच सह्य नहीं होती। "टङ्गणं भागमेकञ्च मरिचच बिभागिकम् । अफीम, फिटकरी, सांभर नमक, कतौरका गोंद, आर्द्रकस्य रसेनैव भावना चाव दीयते ॥" (प्रयोगामत) मुर्गीके अण्डे का छिलका और पारा, सिके साथ १ भाग सुहागा और २ भाग मिर्च अदरक रस एकमें घोंट हाथ पर मले । फिर उस पर पीपरके पत्ते में भावना देनेसे यह महौषध तय्यार होता है। इसके रख होम करनेसे हाथ नहीं जलता। कोई-कोई कहते खानेसे अजीर्ण मिटता और भूख लगती है। हैं, कि बड़े मेंडकका भेजा भी हाथ पर लगा होम अग्निसूत्र (सं० पु०) १ अग्निका सूत्र, आगका धागा। करनेसे आगको आंच नहीं लगती। २ पवित्र तृणका वह सूत्र जो युवा ब्राह्मणको घरमें आग लगनेसे उसे बुझानेको तीन प्रकारको यज्ञक समय अधिकार देनेके लिये पहनाया जाता है। कलें प्रचलित हैं। १-वह दमकल जो हाथसे अग्निसेवन (स. क्लो०) अग्निसेवा, तापना। चलाई जाती है; २–बाष्पयन्त्र संयुक्त यानी अञ्जनदार अग्निस्तम्भ (सं० पु०) ६-तत् । १ अग्निकी दाहिकाशक्ति दमकल ; ३-रासायनिक यन्त्र। पहली और दूसरो निवारक मन्त्रविशेष, वह मन्त्र जिसके पढ़नेसे आग कलका विवरण दमकल और बाष्पयन्त्र में देखो। को जलानेवाली ताकत रुक जाये। २ अग्निकी तौसरौ कल सहज और सुलभ है। जिन बाजारों में दाहिकाशक्तिनिवारक औषध विशेष । यथा- सर्वदा आग लगती, वहां इस कलके रहनसे बड़ा वेलके चूर्ण और जोंकको एक साथ बांटकर लगा उपकार होता है। रासायनिक कल दो तरहको लेनेसे हाथ धीमी आगमें नहीं जलता। वच, मिर्च, होती है-छोटी और बड़ी। छोटी कल एक कुटकी, मुण्डौर. और नागरमोथा चबा आग खानेसे आदमी उठाकर ले जा सकता है ; बड़ी कल मुहमें भी आंच नहीं लगती। पहिले कपूर या अकर गाड़ी पर रहती, जिसे घोड़ा, बैल या आदमी करहा चबाकर मुंहमें रखे । इसके बाद हलको लकड़ी खींचा करते हैं। इसका कौशल भी वैसा ही है, की आग मुहमें डालनेसे जीभ और गलफरे नहीं जैसा सोडा-वाटर बनानेको प्रणालीका । धातुके बने जलते हैं। घड़े जैसे एक बरतनमें सोडा (Bicarbonate of आध छटांक पारा, पाव छटांक कपूर और एक Soda) मिला पानी और उसमें एक बोतल सल्- छटांक आर्सेनिक बेलको एक हीमें अच्छी तरह पीस फुरिक् एसिड (Sulphuric acid) रहता है। डाले। पीछे इस द्रव्यको हाथमें मल गले हुए शौशेको बोतलका मुंह अच्छी तरह बन्द कर देते हैं। आग घरियामें डालनेसे उंगली नहीं जलती। एक सूत बुझाने के समय बोतलका काग खोल देने पर सल्- पहिले नमकसे अच्छी तरह साफ करना पड़ता है। फुरिक एसिड और सोडेके संयोगसे कार्बनिक एसिड इसके बाद सूतको सुखा ले। पौछे उसके एक छोरमें ग्यास निकलती, जिससे पानी उछल पड़ता है। उछला कोई हलको चौज बांध आग लगानेसे सूत तो जल हुआ पानी, निकलनेको दूसरौ राह न पा घड़े के