पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१३५

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अग्नीषोमप्रणयनी -अग्न्यस्त्र १२६ अग्नीषोमप्रणयनी (सं० स्त्री०) ६-तत्। अग्नि और आजकल इस बातका कोई ठिकाना नहीं, कि सोमके संस्कारका पात्र । अग्न्यस्त्र क्या है। वायु-अस्त्र, वरुणास्त्र, सर्पवाण और अग्नीषोमीय (सं० त्रि०) अग्नीषोम-छ। १ अग्नीषोम गरुड़वाण जैसे अनेक अस्त्रोंका वृत्तान्त महाभारत सम्बन्धोय। २ अग्नीषोमार्थ पखादिके कपालपात्रमें और रामायणमें लिखा है। कोई-कोई कहते हैं, कि संस्कृत हविर्विशेष। यह सब मिथ्या है इसमें कवियोंको कल्पनाके सिवा अग्नीषोमीय-निर्वाप (सं० पु०) दर्शपूर्णमास यज्ञका और कुछ भी नहीं। ऐसा हो सकता है, किन्तु नीचे- एक अनुष्ठान। से ऊपर तक सभी कल्पना नहीं है । उस कालमें अग्नीषोमौय-पशु (सं० पु०) अग्नि और सोमदेवको बलि आयौंने विज्ञान शास्त्र अनेक जटिल विषय समझ दिया जानेवाला पशु। लिये थे। इसीसे मालूम होता है कि, आजकलके अग्नीषोमीय-पश्वनुष्ठान (सं० लो०) ज्योतिष्ठोम यज्ञमें डिनेमाइटको तरह कोई दाह्य पदार्थ लगा वह एक बलिका विधान। भयङ्कर अस्त्रको बनात थे। इतिहासमें इसका प्रमाण अग्नीषोमीय-पुरोडाश (सं० पु०) अग्नि और सोम मिलता है, कि उस दिन तक हिन्दू, यूनानी और देवका पवित्र पिष्टक, जिसे ग्यारह बरतनों में पकाना मुसलमान युद्धक्षेत्रमें सर्प, वृश्चिक और अग्निको व्यव- चाहिये। हार करते रहे। 'किताब-ए-जामिनो में महम्मद सबु- अग्नीषोमीय याग (स० पु०) पूर्ण मासके तीन बलिप्र- कृतगोनका हाल इस तरह लिखा गया है, कि पूर्व- दानोंमें एक। कालमें शत्रुओंके बीच सर्प और वृश्चिक फेंक युद्ध किया अग्नीषोमीयैकादशकपाल (सं० पु०) अग्नि और सोम जाता था। कुरुक्षेत्र युद्धके समय दुर्योधनने अपने पक्षके देवका पवित्र पिष्टक। खोमको रक्षा करनेको सिपाहियोंके हाथमें बालू और अग्नीष्टक (सं० लो०) अग्नि-इष्टक । (Fire-brick) एक तेल लगाकर सांप बिच्छू पकड़ा दिये थे। 'तारीख- प्रकार इष्टक, एक तरहको ईट। ए-अलफ़ो' पुस्तकमें भी लिखा है, कि महम्मदको कारखाने में जिस जगह हमशा आग जलती, यह मृत्यु के सात वर्ष बाद, ऊमरके राजत्वकालमें नासिविन् उसी जगहके लिये विशेष उपयोगी है। दूसरी ईटों नगर आक्रमण करते समय शत्रु ओंके बोच काले-काले की तरह यह दिन-रात आगमें जल नष्ट नहीं होती। सांप फैला दिये गये थे। कोई तीस वर्ष हुए, पूर्व- इसौलिये इसका इतना आदर और मूल्य है। दूसरी वङ्गके डाकू यात्रियोंको नावमें सांप और आग फेंक ईटोंको भांति सब तरहको मट्टोसे यह नहीं बनती। देते और यात्रियोंके शशव्यस्त होनेसे उनका सर्वस्व जिस मट्टी में सैकड़ पौछ ४० भाग सिलिका (Silica), लूट लेते थे। इसीसे मालूम होता है, कि आर्य ; सर्प, ३७ भाग अलूमिना (Alumina), २ भाग मेगनेशिया अग्नि प्रभृति भयानक द्रव्य दूरसे शत्रु ओंके बीच फेंक- (Magnesia), ८ भाग पोटास (Potash) और १२ देनका कोई न कोई कौशल जानते थे। कोई-कोई भाग जल रहता, उससे यह बनाई जाती है। कहते हैं, कि अग्न्यस्त्र तोप या बन्दूक होगा। राजपू- यह सब चीज़ कोयलेको खानिके पास ही मिलती तानेके लोग बन्दूकको हो अग्निवाण कहते हैं। इसका हैं। कलकत्तेकी बर्न एण्ड कम्पनी रानीगञ्जके पास भी प्रमाण मिलता है, कि विलायतमें तपञ्चेकी सृष्टि अपने कारखाने में यह ईटें तय्यार करती है। १०० होनेसे पहिले राजपूतानेके लोग तपञ्चा बनाना जानते ईंटोंका दाम दश रुपया है। थे । सन् १८८४ ई० के कलकत्तेवाले मेले में राजपूतानेसे अग्न्यस्त्र (. क्लो०) अम्न्युत्पादकमस्त्रम्, . शाक-तत् । एक चौनलो बन्दूक आई। वह बन्दूक चार सौ वर्षसे आग्नेय अस्त्र । १ तोप। २ बन्दूक। ३ तपञ्चा। भौ अधिक पुरानो थौ। इसीसे कोई-कोई लोगोंको ४ पूर्वकालका अग्निवाण। विश्वास है, कि भारतवर्षमें तोप, बन्दूक और गोला-