पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१३६

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अग्न्यस्त्र गोलो बहुत समयसे बनती चली आती है। नहीं मिलते हैं। इन्हीं पदार्थों से आजकल केरोसीन तेल जानते, कि यह अनुमान कहां तक सत्य है। किन्तु प्रस्तुत होता है। आर्य इन नेप्था प्रभृति द्रव्योंके साथ इसका प्रमाण अवश्य मिलता है, कि प्राचीन आर्य राल, गन्धक, शोरा और अन्यान्य दाह्य पदार्थ मिला तीर-फलकमें अग्नि और आजकलके डिनामाइट जैसे किसी प्रकार अस्त्र बनाते रहे होंगे। यही अनुमान किसी भयानक दाह्य पदार्थको व्यवहार करते थे। होता है, कि उनका तेज आजकलके डिनामाइटको "न कूटेरायुधेहन्यात् युध्यमानो रणे रिपून् । अपेक्षा किसो अंशमें न्यू न नहीं। मूर्खके हाथमें न कर्णभिर्नापि दिग्ध नाग्निचलिततेजः।" (मनुसंहिता १९०) पड़नेसे इस अस्त्र द्वारा एक ही दिनके बीच त्रिजगत् राजा कभी कूटास्त्र द्वारा युद्ध न करे, कर्ण्य स्त्रको उलटाया जा सकता है, इसोसे विज्ञ लोग ऐसे-वैसे प्रहार कर भी युद्ध न करे, या जिस वाणका फला व्यक्तिको अग्न्यस्त्रका गूढ़ सन्धान बताते न थे। विषाक्त हो या जिसमें अग्नि प्रज्वलित रहे, उससे भी नितान्त हो प्रिय शिष्य होनेसे गुरु उसे दो-एक शत्रुको न मारे। वाण देते थे। आर्योंके इतना सावधान रहते भी मनुके इस वचनसे स्पष्ट हो मालूम होता है, कि प्राचीन यूनानियोंने कैसे अग्नास्त्रका कौशल सीख अग्न्यस्त्र केवल कवियों की कल्पना ही नहीं। कल्पना लिया ? यूनानमें ऐसा प्रवाद है, कि कालेनेकस् नामक होनेसे मनु कभी उसके लिये कोई निषेध-विधि न जनैक व्यक्तिने इन अस्त्रोंको आविष्कार किया था। बताते । अग्नास्त्र सबके ऊपर निक्षेप करनेको नहीं है। मालूम होता है, कि वह भारतवर्षके 'कल्याणाक्ष' राक्षस प्रभृति प्रबल शत्रु ओंको ही आर्य अग्निवाणसे नामक कोई ब्राह्मण होंगे। सन् ६७३ ई० में कुस्तुन्तु- मारते थे। फिर भौ, महाभारत इसका प्रमाणस्थल निया (Constantinople) नगर अवरुद्ध होने पर नगर- है, कि बलवान् आर्य अपने क्रोधको संवरण कर न वासियोंको केवल इसी अव्यर्थ अग्नास्त्रके प्रभावसे हो सकनेसे किसी किसो वौर मनुष्य पर भी अग्निवाण शत्रु ओंके हाथ निस्तार मिला था। इतिवृत्त-लेखक छोड़ देते थे। गिबन साहबने इस महास्त्रको यूनानियोंको अग्नि प्रथम-प्रथम मनुष्य अग्नि द्वारा अपनी रक्षा करते बताया है। पहिले मुसलमान अग्नास्त्रका विषय जानते भी शत्रु के नष्ट करनेको चेष्टामें लग जाता था। किसी न थे; उन्होंने रूमियोंसे उसका निर्माण-कौशल सीख ग्राम या दुर्ग पर आक्रमण करनेसे शत्रुओके सिर पर लिया। जेरूसलमके लिये ईसाइयों और मुसलमानोंमें पत्थर या आग फेंक दी जाती थी। सन् १३८८ ई०में जो तुमुल समर (Crusades) हुआ, उसमें अग्निवाणसे तैमूरशाहने दिल्लीपर चड़ाई की। उन्होंने भारतवर्षीय | विस्तर लोग मारे गये थे। सर दे जैन्भिल (Sir de गजयूथको भय दिखानेके लिये ऊंटकी पीठ पर तृण Joinville) नामक जनक फांसीसोने अपनी आँखों राशि जला उसे शत्रु ओंको ओर खदेर दिया। वही यह युद्ध देख अग्निवाणके सम्बन्धमें ऐसा लिखा है,- आग देख सब हाथी भाग खड़े हुए। “La manière du feu .grégois estoit tele आर्य पहिलेसे तौरके फलामें राल, तेल, घी, पटुश्रा, que il venoit bien devant aussi gros comme रुई प्रभृति ट्रेव्य लगा रखते थे। शत्र को वाण मारते un tonnel de verjus, et la queue du feu qui समय उसे जलाकर निक्षेप करते। क्रम-क्रमसे बुद्धि partoit de li, estoit bien aussi grant comme और विज्ञानको उन्नति होते रहो, उन्होंने और भी un grant glaive. Il faisoit tele noise au venir, उत्कट-उत्कट ब्रह्मास्त्रीको आविष्कार किया। आरा que il sembloit que ce feust la foudre du कान्, ब्रह्मदेश, चीन, सिन्धु नदके निकटवर्ती स्थान ciel ; il sembloit un dragon qui volast par और ईरानमें मौके भीतर नाना प्रकार दाह्य-पदार्थ l'air, Tant getoit grant clarté que l'on véoit (Naptha and other bitumenous substances) parmi l'ost comme se il feust jour, pour la 1 1