पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१३९

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अग्रजात -अग्रदीप १३३ 1 - 'अग्रजन्मा हिजे ज्येष्ठधातरि ब्रह्मणि स्मृतः ।' मैदिनौ । लगता, जो सात दिन रहता है। इसके उपलक्षमें अग्रजात (सं० पु०) अग्रे-जन-त, ७-तत्। १ ज्येष्ठमाता, कोई २५००० लोगोंका समागम होता है। यात्रियों- बड़ा भाई । २ ब्राह्मण। के बीच बाउल, दरवेश और अन्यान्य सम्प्रदायके वैष्णव अग्रजाति (सं० पु०) अग्र-जन-क्ति, कर्मधा० । प्रधान ही अधिक देखे जाते हैं। इस मेले में प्रति वर्ष लाखों जाति, ब्राह्मण। रुपयेका माल लिया-दिया जाता है। अग्रदीप नदीया अग्रजिह्वा (स० स्त्री०) अग्रा जिह्वा, कर्मधा० । जिह्वा ज़िलाके अन्तर्गत वर्तमान है। का अग्रभाग, जौभका अगला हिस्सा। गोपीनाथका इतिहास बहुत ही अद्भुत है। सत्यके अग्रणो (स. स्त्री०) अग्र-नी-क्विप्, अग्र नीयते । साथ कुछ-कुछ अद्भुत घटना मिली न रहनेसे देवताके सतमूहिषद्रुहटुयुजविदभिदछिदजिनौराजामुपसर्गेऽपि क्विम् । पा ३।६१ । प्रति सामान्य लोगोंको भक्ति उत्पन्न नहीं होती। ७-तत्। १ अग्रिम, अगुआ। २ श्रेष्ठ, बड़ा। ३ प्रभु, कहते हैं, कि अग्रहोपमें किसी घोषके सन्तान होती मालिक। न थी। इसलिये वह नियत देवताके निकट पुत्रका- अग्रतः, अग्रतस (स० अव्य०) अग्र-तस पञ्चम्यर्थे । मना किया करता । एक दिन वह पड़े सो रहा था। पहिले, आगे, पुरतः। सोते-सोते उसने स्वप्न देखा, कि मानो उसके उससे अग्रतःसर (सं० त्रि०) अग्रतस्-स-ट। पुरोग्रतोयेषु सते: । बैठे कोई कहता था,-"कल तुम स्नान करने जाकर पा २।१८। इति ट। अग्रगामी, आगे जानेवाला। गङ्गाजल में एक पत्थर देखोगे। उसमें यदि कृष्णमूर्ति- अग्रदानिन्, अग्रदानी (स• पु०) अग्रदान-इन्। को निर्माण कराकर तुम उसे स्थापन करो, तो में हो १ दानमें पतित ब्राह्मण, खराब दान लेनेवाला तुम्हारा पुत्र बन जाऊंगा।” ग्वालेको नींद टूट गई । ब्राह्मण । २ महाब्राह्मण या महापात्र, जो प्रेत उसने उठके देखा, कि रात नहीं, सवेरा था। प्रभातका सम्प्रदानका षड़ङ्ग तिलादि दान ले स्वप्न प्रायः मिथ्या नहीं होता। विशेषतः, गोपजातिके भारतमें अग्रदानी ब्राह्मणको एक स्वतन्त्र श्रेणी है। प्रति श्रीकृष्णको उस दिन हो वह नई कृपा न थी इनकी संख्या बहुत ही थोड़ी होती है। एक बार वह गोकुलमें नन्दघोषके पुत्र हुए, फिर इस सम्प्रदायके ब्राह्मण नहीं मिलते । विशुद्ध सम्भान्त यदि अग्रहीपके गोपको पिता कहनेकी उन्हें साध हुई ब्राह्मण इनके साथ आहार-व्यवहार, मेल-जोल कुछ होती, तब तो आशालतामें फूल खिले थे, हाथों-हाथ भी नहीं करते हैं। फल मिल हो जाता। यही विचार वह स्नानके घाटको अग्रदानीय (सं० पु०) अग्र-दान-छ। अग्रदानी ब्राह्मण, रवाना हुआ। वहां जाकर देखा-गङ्गाजलमें एक वह ब्राह्मण जिसे प्रेत-कर्मका दान दिया जाय। पत्थर बहते चला आता है। पत्थर उज्ज्वल नौलवर्ण महाब्राह्मण, महापात्र। था और उसमें दलितअञ्जन जैसा लगा, जिसे देख अग्रहोप (सं० लो०) अग्रे प्रथमे उत्पन्नं हौपम् । खानिका नीलम भी लज्जित होता था। उसी इन्द्रनौल हयोगता आपो यस्मिन्निति होपम् । द्यन्तरुपसर्गभ्योऽप ईत् । मणिको कृष्णमूर्ति बनवाई गई, जो आजकल गोपी- पा ६।३।९७। सबसे पहिले उत्पन्न हुआ हौप या टापू । नाथ कही जाती है। घोष महाशयने विग्रहमूर्ति गङ्गाके गर्भ में रेत पड़नसे पहले जो होप. उत्पन्न प्रतिष्ठित कर लोकान्तरको गमन किया। उनकी हुआ, वही बङ्गालका अग्रदीप है। अगृहोपसे प्रायः मृत्यु तिथि वारुणीसे पहिलेको कृष्णा एकादशी है। तीन कोस उत्तर-पश्चिमकोणमें जो दूसरा रेत पड़ा, मृत्यु तिथिके दिन पूजक मट्टीपर कुश बिछाकर वही रेत आजकल नवदीप नामसे प्रसिद्ध है। अगदोप- विग्रहके हाथमें पिण्ड पकड़ा देते हैं। हारको में गोपीनाथ ठाकुरके उत्सवोपलक्ष प्रति वत्सर वा रुद्द कर किञ्चित् काल पीछे खोलनेसे यह अनेकोंने रुणीसे पहिले कृष्णा एकादशीको एक बड़ा मेला देखा, कि वही पिण्ड कुश पर जाकर गिर पड़ता है। ३४ । सब ग्रामोंमें