पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१४४

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१३८ अग्रे पू-अघाट अग्रेपू (स० वि०) अग्रे-पू-क्विप् । अग्रे पवित्र कारक, अघनाशन, अघनाशक (सं० त्रि०) अघ-नश-णिच्- पहले पवित्र करनेवाला। ल्युट । पापनाशक, इजाब छुड़ानेवाला। अग्रे (सं० पु०) सामने घूमनेवाला। अघनिष्कृत (स• त्रि०) पापसे दूर । इजाबसे बाहर। अग्रेवण (स क्लो०) वनस्य अग्रं, राजदन्तादि अलुक्- अघभोजिन् (सं० त्रि०) अघ-भुज-णिनि, ६-तत् । देव- स० । वनका अग्रभाग, जङ्गलका अगला हिस्सा । ब्राह्मणादिके उद्देश भिन्न अपने लिये जो पाक करे। अग्रेवध (सं० पु०) आगेवालोंका वध, आगे पड़ने अनुचित भोजन करनेवाला। वालोंकी हत्या। अघमय (स. त्रि०) पापी, पापमें लिप्त । अग्रेसर (स० वि०) अग्रे-सू-ट, अलुक्-स० । अग्रगामी, अघमर्षण (सं० लो०) अघ-मृष-ल्युट्, ६-तत् । १ पाप- आगे जानेवाला। नाशन। २ अश्वमेध यज्ञका अवभृथ स्नान-मन्त्र। अग्रेसरिक (स• त्रि०) अग्रे-सर-ठन् । अग्रगामी । ३ वैदिक सन्ध्यान्तर्गत जलप्रक्षेप-रूप पापनाशक (पु.) नेता। क्रियाविशेष । (पु०) ४ तेरह कुशिकोंमें छठे ऋषि । अग्रोपहरण (स० क्लो०) पहली या खास भेजी हुई "विश्वामिवश्व गाधेयो देवराजस्तथा वलः। चीज़। तथा विद्वान् मधुच्छन्दा ऋषयश्चाघमर्षण: ॥” (हरिवंश) अग्रोपहरणीय (स० त्रि०) अग्र-उप-हृ-अनीयर् । अघमार (स० वि०) अघ-मृ-णिच्-अण, उप-तत्। तव्यत्तव्यानीयरः । पा ३१६६ । प्रथम दानीय वस्तु, पहले १ पापनाशक । २ देवादि। देनेके काबिल चीज़ । अघरुद (स० वि०) अघ-रुद-क्विप् । पापनाशन मन्त्र । अग्य (सं० त्रि०) अग्रे भवः अग्र-यत्। शाखादिभ्यो यत् । पा अधर्म (स० पु०) नञ्-तत् । शीतकाल, जाड़ेका ५।३।१०३ । १ श्रेष्ठ, बड़ा। २ उत्तम, अच्छा । (पु०) मौसम। सन्तापशून्य काल, वह समय जिसमें गर्मों १ बड़ा भाई । २ नेता। न लगे। (त्रि.) धर्महीन । अग्या (स० स्त्री०) त्रिफला। आँवला, हर्र और अघल (स० ति०) अध-ला-क, अघं पापं लातीति । पापनाशक, इजाब छुड़ानेवाला। अघ (सं० लो०) अघ-अच् । १ पाप। २ दुःख । अघवत्, अघवान् (स० त्रि०) अघ-मतुप् । पापी। ३ व्यसन, आदत। ४ दुर्घटना, अनहोनौ। ५ आक्षेप । अघवाना (हिं. क्रि०) १ पेट भर खिलाना, आसूदा ६ निन्दा । ७ कंसके सेनापति एक असुरका नाम । करना, भोजनसे तृप्त कर देना। २ चिकनी-चुपड़ी (स्त्री०) स्त्रियां टाप । अघा। पापको देवी। बातें करना, मन भरना। 'अघन्तु व्यमने प्रोक्तमचं पातकदुःखयोः ।' विश्वप्रकाश । अघविष (स० पु०) विषं अधमेव यस्य । सर्प, सांप। अघवत् (सं० त्रि०) अघ-कृ-क्विप् । पापाचारी, पाप अघशंस (स० पु०) १ अनिष्टकारौ। २ पापकर्म । करनेवाला। अघशंसहन (स० पु०) जो पापीको मार डाले। अघघ्न (सं० त्रि०) पापको नाश करनेवाला। अघशंसिन् (सं० वि०) अघ-शंस-णिनि, ६-तत् । व्यसन- अघट (हिं० वि०) १ अयोग्य । २ गैरमुनासिब। सूचक, आदत ज़ाहिर करनेवाला। ३ वैमेल। ४ बेअन्दाज। ५ अनुपयुक्त । अघहरण (सं० क्लो०) पापको निवृत्ति, इजाबसे छुट- अघटमान् (सं० वि०) असम्भव, न होनेवाला। अघटित (हिं० वि०) १ न होनेवाला। २ अवश्यम्भावी। अघहार (स• पु०) १ जो पाप छुड़ा दे। २ पवित्र अघद्दिष्ट (सं० त्रि०) पापियों द्वारा घृणा किया जाने पुरुष। ३ मशहर डाकू। वाला, बुरे जिससे नफरत करें। अघाट (हिं० पु०) १ जहां घाट न हो। २ वह क्षेत्र अघन (सं० वि०) नञ्-तत् । पतला, जो गाढ़ा न हो। जिसे उसका स्वामौ बेच न सके । बहर। कारा।