पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१४५

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अधिक। अघात-अघोरी १३६ अघात (हिं. पु०) चोट, आघात। (वि.) भरपेट, अघोर (स० पु०) न-घोरः । १ जो भयानक न हो। २ महादेव । ३ एक सम्प्रदाय, जिसके लोग मलमूत्रसे अघातिन् (स० त्रि.) १ न मारने या चोट पहुंचाने भी घृणा नहीं करते । (वि०) ४ सीधा, सौम्य । वाला। २ सीधा। अघोरनाथ (सं० पु०) शङ्कर, शिव, महादेव । अघाना (हिं० क्रि०) १ छकना, ख ब डटकर खाना, | अघोरनृसिंहरस (सं० पु०) एक प्रकारका रस, जो भोजनसे तृप्त होना। २ मन भर जाना, इच्छा पूरी सन्निपातपर प्रयोग किया जाता है। होना। ३ प्रसन्न होना, खुश हो जाना। ४ थकना, अधोरपथिन् (स० पु०) शिवके अनुयायो। उकताना। ५ पूरा होना, कमाल हासिल करना। अघोरपन्थ (हिं. पु०) अघोरियोंका मत या सम्प्रदाय, अघायु (सं० वि०) अघ-या-उ, अघ-क्यच्-उ। १ पापा औघड़ोंका मजहब। चरणच्छाशील, पाप करनेको इच्छा रखनेवाला। अघोरपन्थौ (सं० पु०) अघोर मतको माननेवाले २ पापकारी, पाप करनेवाला । ३ हिंसानिरत, लोग, अघोरौ। अश्वोरी देखो। हत्यारा। अघोरप्रमाण (स० क्लो०) भयानक शपथ । अघायुस् (स० वि०) अधं पापाचरणं आयुर्यस्य। पापा- अघोरा (सं० स्त्रो०) भाद्रमासको कृष्ण चतुर्दशी । चारी, पापमें समय बितानेवाला। शास्त्रमें लिखा है, कि इस चतुर्दशीको शिवको आरा- अघारि (सं० पु०) १ पापका शत्र । २ श्रीकृष्ण । धना करनेसे शिवलोक मिल जाता है- अघारिन् (स० त्रि.) अघ-ऋ-णिनि, अघमृच्छतीति। "भाद्रमास्वसिते पचे अधोराख्या चतुर्दशी । व्यसनशील, पापी। (स्त्री०) अघारिणी। तस्यामाराधित: स्थाणुर्नवैचिवपुरं ध्रुवं॥” (भविष्यपु०) अघाख (सं० पु०) १ खराब घोड़ा। २ सांप। अघोरी, (अघोरपन्थौ ) शैव सम्प्रदाय विशेषका नाम । अघासुर (स० पु.) कर्मधा। अघासुर नामक एक इसका आदिस्थान बड़ोदा अञ्चलमें था। इसके सिवा असुर। यह दानव पूतना और वकासुरका कनिष्ठ भाता काठियावाड़, कराची और अन्यान्य स्थानों में भी विस्तर था। कृष्णको वध करनेके लिये कंसने अघासुरकी अघोरी रहते थे। आजकल राजपूतानेके अन्तर्गत वृन्दावन भेजा। इसलिये भी अघासुरके मनमें आबू पहाड़ पर अघोरपन्थी शैव देख पड़ते हैं। यह सातिशय आक्रोश था, कि पूर्व में कृष्णने पूतना नितान्त अपरिष्कार, निर्वृण और विकाररहित होते; और वकासुरको विनाश किया था। वृन्दावनके और मद्य, मांस-यहां तक, कि अपना मल-मूत्र गोष्ठ में जहां गोपबालक गवादि पशु चरा रहे थे, भी खाते हैं। क्या कच्चा क्या पक्का और क्या अघासुर वहां पहुंच बड़े अजगरको तरह मुंह | दुर्गन्ध अखाद्य–लोग जो कुछ देते, अघोरी अम्बान फैलाकर बैठ गया। कृष्णने निर्भयसे उसके मुहमें मुखसे उसीको भक्षण करते हैं। कारण, निर्विकार प्रवेश किया और दानवका श्वासरोध होनेसे ब्रह्मतालु रहना इनका धर्मनीतिका प्रथम सूत्र है। कहों फट पड़ा। भागवत १०म । १२ १०॥ भी शवदाह होनेसे अघोरपन्थो मद्यके साथ उसो अघाह (स० पु.) पाहः, अच-स०। मनुष्य मांसको उठा कर भोजन करते हैं। इनके शिर अशौचदिन । पर बड़े-बड़े बाल होते और कोई-कोई जटा भी अघी (हिं० वि०) पापो, कुकर्मी, कुमार्गो। रखाते हैं। केश रुक्ष और विशृङ्खल रहते हैं। अघृण (स० त्रि०) दयारहित, बेरहम। मुहमें दाढ़ी-मूछ भरी होती है। यह कौपीन और अघृणिन् (स० त्रि०) १ घृणा करनेके अयोग्य । २ वहिर्वास पहनते हैं। मुंह यह नहीं धोते। मद्यपान अच्छा । ३ बढ़िया। करनेको इनके साथ कपाल-पात्र यानी मनुष्यको अघेरन (हिं० पु०) यवका मोटा आटा। खोपड़ी रहती है। अन्यान्य धर्मसम्पदायके लोग अघस्य