पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१४७

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अङ्क १४१ अवस्थामें गिनना नहीं जानता; इस लिये वह हाथकी उंगलियों पर द्रव्यादिको संख्या निर्दिष्टकर रखता था। दोनो हाथमें दश उंगलियां हैं। एकसे गिनना आरम्भ करने पर बाकी नौ बचती हैं। यही नौ उंगलियां पूर्वकालवाले लोगोंके संख्या गिननेका उपाय थीं, जिससे रूढ़ अङ्कको संख्या केवल नौ रखी पाश्चात्य लोग कहते हैं, कि इसी कारणसे नौ रूढ़ अङ्कका नाम “डिजिट” अर्थात् उंगली गई। पड़ा है। हाथकी उंगलियोंसे गिनने पर पैरकी उंगलियोंसे सहारा क्यों न लिया जाता था ? यदि उगलियां हो पूर्वकालवाले मनुष्योंके संख्यानिर्धारण करनेका प्रधान सहारा होतीं, तो वह अधिक संख्या ठीक करते समय पैरकी उंगलियोंसे अवश्य काम लेते। इस तरह अङ्गकी संख्या भी नौसे कहीं अधिक हो जाती। इस लिये मालूम होता, कि रूढ़ अङ्क एकसे नौ तक होनेका कोई अन्य कारण है। अमेरिकाको असभ्य जाति पांचसे अधिक नहीं गिन सकती। अधिक संख्या यदि किसीको बताना पड़ती, तो वह वृक्षके पत्ते दिखा देता है। अशि- क्षित हबशियोंको भी यही दशा है। वह भी अधिक संख्या बतानेके लिये मरुभूमिको एक मुट्ठी बालू उठा कर दिखा देते हैं। भारतवर्ष के अज्ञ पुरुष डोरी- में गांठ दे, किवाड़ या खम्भेमें चूनेका टीका लगा और बांसके डण्ड में निशान बना सख्या ठीक करते हैं। सन्थाल जिस समय दूध-धो बेचनेके लिये निकलते, उस समय थोड़ी रस्सी और एक चोंगा रखते और उस चोंगसे घी नापते और रस्सौमें गांठ देते जाते हैं। यही रस्मो उनके हिसाबका खाता-पत्र है। इसके अतिरिक्त दूसरे लोग जो हिसाब करना नहीं जानते और गृहस्थोंके घरमें द्रव्य-सामग्री पहुंचाते, वह किवाड़ तथा खम्भे पर चूनेको टोप लगा देते हैं। इसौसे उनका पूरा-पूरा हिसाब हो जाता है। वङ्गदेशके अशिक्षित पुरुष जब किसी दुकानदारसे कुछ उधार लेने जाते, तो बांसको एक पतली शाखा ले लेते हैं। दुकानदार उन्हें उधार दे और उस बांसको दो भाग कर आधा अपने पास रखता और आधा खरीदारको दे देता, जिसपर उधारका हिसाब ांकसे लिख दिया जाता है। मालूम होता, कि इस तरह आंक अर्थात् चिह्न बनानेकी प्रथा बहुत कालसे भारतवर्ष में प्रचलित है। अब ध्यान देनेकी बात है, कि पहले गणित- शास्त्रको उत्पत्ति किस देशमें हुई और रूढ़ अङ्कको संख्या नौ तक ही क्यों निहारित रही। “आबू जाफ़र महम्मद वेन् मूसा अल् खारिमि” नामक गणितको पुस्तक भारतवर्षीय गणित शास्त्रका अनुवाद है। अरबनिवासी स्पष्ट हो स्वीकार करते हैं, कि इस मूल पुस्तकके लेखक ब्राह्मण थे। सन् ई० के ७वें शताब्दमें यह अनुवाद पहले बगदाद नगरमें प्रकाशित हुआ था। कुछ दिन बाद लैटिन भाषामें भी इसका अनुवाद किया गया। युइपिक्ने अनुमान किया है, कि दो प्रशस्त उपाय हारा गणित शास्त्र भारतवर्षसे अरब आदि देशमें पहुंचा होगा। सन ई० के ३रे शताब्दमें मित्र देशके बणिक् व्यापारको सुविधाके लिये भारत- वर्षसे अङ्कविद्या अलेक्जेण्डिया नगरीको ले गये थे। इसके अतिरिक्त प्लाटिनस्, न्यू मारिनो आदि विद्वानों- ने उज्जनके व्यापारियोंसे अङ्कशास्त्र सौखा था। अन्तमें मिश्रवासियोंके पास यहूदियों और रोमके अधिवासि- योंने गणित विद्या सौखी। इससे समझा जा सकता है, कि गणित शास्त्रको सृष्टि पहले भारतवर्ष में ही हुई थी। पूर्वकालके ब्राह्मण अङ्गविद्या के गुरु थे। अरबी, मिश्री, यहूदी और रूमी उन्हीं गुरुके शिष्य हैं। हमें विश्वास है, कि इस देशमें १, २, ३ इत्यादि साङ्केतिक चिह्न हारा अङ्क्षपात न किया जाता था। उस समय वर्णमालाके क, ख आदि किसी विशेष-विशेष वर्ण से संख्या लिखी जाती थी। यह निश्चित कर सकनेसे कि, यह अनुमान सत्य है या नहीं, यह भी निश्चित किया जा सकेगा, कि रूढ़ अङ्क नौ ही क्यों हुए। यहूदी और रूमी, ब्राह्मणोंके शिष्य हैं। उन्होंने आर्य जातिसे गणित शास्त्र पढ़ा था। शिष्यका काम देख कर यह बात भी समझो जा सकती, कि गुरुने उन्हें