पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१४८

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1 १४२ अङ्क किस प्रकार पाठ पढ़ाया है। प्राचीन यहूदी-वर्णमाला- | छोड़ी। इस समय वह जिस प्रथासे अङ्ग लिखते के पहले नौ अक्षर अर्थात् अलिफ, बैत्, गिमेल्, दा हैं, इसमें सन्देह नहीं, कि वह, आर्य जातिको लेख्, हे, वाउ, जैन्, चेत् और टेत् द्वारा एकसे नौ पुरानी प्रथा है। संख्या तक लिखते थे। उनके परवर्ती दूसरे नौ वर्ण संस्कृत भाषाको संख्याको विवेचना कर देखनेसे हारा दशसे नव्वे तक लिख लेते रहे। वर्णमालाके जाना जा सकता है, कि आर्योंके गणित-विद्या भली अन्तिम चार वर्णसे यथाक्रममें एक सौसे ले चार सौ भांति सीख लेने पर दशमिक अङ्गपात-पद्धतिको सृष्टि तक लिखा जाता था। यूनानी भी यहदियोंकी तरह हुई थो। नौ तक रूढ़ संख्याको लेकर, पौछ केवल अलिफ, वे प्रभृति वर्णमालाके वर्ण हारा १, २ एक-एक शून्यके सहारे उत्तरोत्तर दशगुणके हिसाबसे इत्यादि अङ्क लिखते थे। यूनानी भाषाका दश 4 (D) संख्या बढ़ाना मूढ़ मनुष्योंकी बुद्धिमें नहीं आ सकता ; अर्थात् डेका या दशके आद्यक्षरसे लिखा जाता था। क्योंकि, अङ्कपातमें सङ्कलन, व्यवकलन और गुणका रूमौ एक लिखनेको एक खड़ो लकौर (I) और दो नियम है। पञ्चदश कहनेसे दश और पांच लिखनेको दो खड़ी लकीरें (II) इत्यादि बना देते (१०+५) समझा जाता है। इसलिये इसमें सङ्कलन थे। दश लिखने के लिये (X) अंगरेजो एक्सके द्वारा यह राशि लिखी गई। एकोनविंशति कहनेसे समान वह एक चिह्न बनाते थे। इसी तरह दो (२०-१) बीससे एक कम होता है। इसलिये एक्ससे बौस और तौनसे तीस इत्यादि अङ्ग लिखते इसमें व्यवकलन हुआ । त्रिंशत् कहनेसे (१०४३) थे। (C) चिह्नसे १०० लिखा जाता था। (M) चिन्न तौन गुणित दश मानते हैं; अतः यहां गुणनका सहस्र संख्याका बोधक था। नियम काममें लाया गया। ऋग्वेद संसारके सभी ऊपर लिखे हुए प्रमाणसे समझा गया, कि ग्रन्थोंसे प्राचीन है। उसी ऋग्वेदमें लिखा है,- प्राचीन यहूदी, यूनानी और रूमौ १, २, ३, इत्यादि “त्वमेताजनराज्ञो दिर्दशा वधुना मुश्रवसोपजग्म षः । साङ्केतिक चिङ्ग द्वारा अङ्गपात न करते और संख्या षष्टि' सहसा नवतिं नवयु तो नि चक्रेण रण्या दृष्यदाहणक् ।" लिखनेके अक्षर केवल नौ ही न थे। वह बड़ो-बड़ी राशि लिखनेके लिये वर्णमालाके कई वर्णका प्रयोग हे इन्द्र ! आपने लोकविश्रुत, सहायरहित होकर करते थे। राजा सुश्रवासे आक्रान्त बोस संख्यक (विदेश) जन- भारतवर्ष के ब्राह्मण इन सब जातियोंको अङ्गविद्या पदके अधिपतियों और उनके साठ हजार निन्यानवे के गुरु हैं, फिर भी उस समयके ब्राह्मण क्या करते (६००००+20+८) अनुचरोंको अपने शत्रुनाशक थे? इस देशमें अच्छा इतिहास नहीं, इससे अस्त्र द्वारा विनष्ट किया था। यहां हिर्दशमें (२४१०) कठिन विषयको मीमांसा दुर्घट हो जाती है। गुणक्रिया और साठ हज़ार+नव्वे+नौ-इसमें सङ्क- किन्तु इस समय भी पुराना आचार-व्यवहार जो लनका नियम चला। इसीसे यह मानना पड़ा, कि कुछ विद्यमान है-उसीसे हमारा यह उद्देश्य सिद्ध आर्य दशमिक पद्दतिको सृष्टि करनेसे पहले जोड़, हो जायेगा। बोध होता है, कि पहले ब्राह्मण बाकी और पूरण करना जानते थे। भी वर्णमालाके वर्णविशेषसे १, २ इत्यादि अङ्क यह प्रतिपन्न कर दिया गया, कि यहूदी, रूमी, लिखते थे। क्योंकि, पञ्जाबके उत्तर टाकरी भाषा यूनानी तथा आर्य वर्णमालाके वर्ण हारा एक, दो, अब भी एक, दो तोन, इत्यादि संख्याबोधक शब्दके आदि अङ्क लिखते थे। किन्तु इस नियममें कितनी आद्यक्षर द्वारा (ए, द्दि, त्रि इत्यादि) १, २, ३, प्रभृति हो अड़चन है, किसो बड़ी संख्याको लिखनेके लिये अङ्क लिखे जाते हैं। अनुमान यही है, कि वहांके एक साथ कितने ही वर्ण लिखना पड़ते हैं। मालूम रहनेवालोंने आज तक अपनी प्राचीन पद्धति नहीं होता है इसीसे आर्योंने विचारा, कि जैसे वर्णको शश