पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१५१

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अङ्कलोड्य-अङ्कर १४५ अङ्कलोद्य (स० पु०) अङ्ग-लोड-ण्यत् । एक प्रकारका शुक्रसे फिर हाथ, पैर, आंख, मुंह, नाक, कान लता। चिञ्चोड़। सब उत्पन्न होते हैं। अङ्गुर भी ठीक ऐसा ही है। अङ्कलोप (स० पु०) अङ्कस्य लोपः ६-तत्। अङ्कका जब तक अङ्गुर वीजके भीतर रहता, तब तक उसमें वियोग-साधन, बाको निकालना, घटाना। वृक्षका कोई अवयव स्पष्ट दिखाई नहीं देता ; तथापि असस् (स० क्लो०) अञ्चि-असुन् । अञ्चाञियुजिभृजिभ्यः कुथ । जड़, तना, शाखा, पल्लव सब कुछ होता है। मट्टी में उण ४।२१५ । १ चिह्न, निशान । २ शरीर, जिस्म । वीज गाड़नेसे पौधा फूटता और पत्ते भरने पर धीरे- अङ्कस (स० क्लो०) अङ्गस्-अच् अस्त्यर्थे । चिङ्गयुक्त, धौरे पेड़ बन जाता है। पक्षियोंके अण्डों को भी यही निशानवाला । वह प्रदार्थ जिसमें चिह्न लगा हो। दशा है। अण्ड के भीतरका पीला पदार्थ ही बच्चा अङ्कविद्या (सं० स्त्री०) अङ्गका हिसाब, इल्म हिन्दसा। है। ताव देते-देते अण्डा पुष्ट हो जाने पर उसी पौले अशाङ्क (सं० लो०) अद्ध मध्ये अडाः शतपवादिचिङ्गानि यस्य । पदार्थसे बच्चा उत्पन्न होता है। परन्तु यदि पक्षीके आपो वे अलावाः छन्दः । (वाजसं महीधरः १५.५ । ) जल, पानी, अण्डा होते ही वह जल्द-जल्द तोड़ डाला जाये तो प्राब। केवल लार जैसा पदार्थ निकल पड़ता है। उसमें अशावतार (स० पु०) नाटकका कोई अङ्क शेष हो बाजू, चोंच, पैर आदि पक्षो जैसा कुछ दिखाई जाने पर आगामी अभिनयका पात्रों द्वारा आभास । नहीं देता। अतएव मनुष्यके गर्भका शोणित- अनिका (सं० स्त्री०) १ चिन्ह लगानेवाली । २ शुक्रमय भ्रण, अण्डेका पीला पदार्थ और वीजका हिसाब करनेवाली। ३ गिननेवाली । अङ्गुर-यह तीनो एक ही प्रकारक पदार्थ हैं। अङ्कित (मं. त्रि०) अङ्ग-त। १ चिह्नित, निशान भोजे हुए चनेकै ऊपरका छिलका निकाल डालनेसे लगा। २ लिखित । ३ वर्णित । दाल निकल पड़ती है। वह दाल एक नहीं होती, अङ्गिन् (स० त्रि०) अङ्क-इनि, अङ्के कोड़े विद्यते वाद्य आधी-आधी दो टुकड़ोंमें एक साथ मिली रहती है। काले। मृदङ्ग आदि जिन बाजोंको गोदमें रखकर नख हारा सावधानसे चौरने पर एक ओरका जोड़ बजाना पड़ता है। गोदमें रखकर बजाये जानेवाले। खुल जाता, परन्तु दूसरी ओर पतले सूतको तरह एक (ऋक् ।४५४) डण्ठलमें दो दाल चिपकी रहती हैं, जो बिना खींचे अङ्गिनी (स० स्त्री०) अङ्ग-इनि स्त्रियां डीप, अङ्गानां नहीं छूटतीं। वृक्षादिका जीवन इसी डण्ठलमें होता है। चिह्नानां समूहः। खलादिभ्यः इनिर्वतव्यः । उद्भिद् शास्त्रके पण्डित इसो पदार्थको अङ्कुर कहते हैं। १ अङ्गसमूह। अङ्क-इनि अस्त्यर्थं डीप। २ अङ्कविशिष्टा । वोजके ऊपरी भागमें जो छिपाने वाली झिल्लो अशिल (हि. पु०) वह बछड़ा जिसे वृषोत्सर्गमें दाग होती है, उसे छाल कहते हैं। अंगरेजीमें उसका कर छोड़ देते हैं । दागा हुआ बछड़ा या साँड़। नाम इण्ट गूमेण्ट (Integument) है। अङ्गुर, अङ्कर (सं• पु०) अश-उरच् । मन्दिवाशिमविचतिचाहिन्य अङ्गुरके दोनो भागोंको अंखुआ (Cotyledons) उर। उण ११३८ । १ वीजसे उत्पन्न नया पौधा, कहते हैं। मट्टी फोड़ कर पेड़ कुछ बड़ा होनेसे अंखुआ अंखुआ, कनखा । २ नोक । ३ रक्त, खून। ४ जल । गिर पड़ता है। सब वृक्षोंके अंखुओंको संख्या समान ५ लोम, रूयां। नहीं होती। किसी-किसी वृक्षके अङ्गुरमें एक ही स्त्रियां जिस समय प्रथम गर्भवती होती हैं, पत्ता रहता है, जिसे एकपर्णिक (Monocotyledon) उस समय गर्भके भीतर सन्तानको कोई अवयव कहते हैं। जैसे, नारियल, ताल इत्यादि। कितने ही आकृति नहीं रहती, केवल रक्त और शुक्र मिला पौधोंके अङ्गुरमें दो पत्ते रहते, उन्हें विपर्णिक हुआ कुछ लारसा पदार्थ गर्भ-स्थानमें एकत्र होता (Dicotyledon) कहते हैं। जैसे, कुम्हड़ा, कद्द है। धीरे-धीरे परिपक्क होने पर उसी शोणित इत्यादि। फिर किसी-किसी पेड़के वीजमें चार-पांचसे काव्या०वा०।