पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१५३

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.. - अङ्कुर १४७ विवर्ण और नौरक्त मालूम होने पर फूलके पाससे आहारको ही आहरण नहीं करता, वरं वीजमें स्थित नारा दूह कर लड़केको नाभीकी ओर खींच लानेसे पेड़का प्राण भो ले लेता है। चावल, गेह आदि वहो नौरक्त शरीर फिर रक्तसे फूल जाता है। इसी शस्यका खतसार हो हम लोगोंके जोवनको पोषण उपायसे सूतिकागृहमें कितने ही अधमरे बच्चोंको करता है। जान बच गई है। विलायती विलो (Willow) प्रभृति पेड़का वोज भूमिष्ठ होने के बाद जननी अपनो शिशु-सन्तानको दो-तीन घण्टे में अङ्गुरित होता है। गुलाबका वोज बहुत दिन तक दूध पिलाकर प्रतिपालन करती है अङ्गुरित होने में बहुत देर लगती है। इसमें सन्देह है, परन्तु अङ्गुरको मा कहां है, और क्या खाकर वोजके कि दो वर्षमें भी यह ठीक होता है या नहीं। भीतर वह जीता ओर बढ़ता है ? जिस वृक्षके वौजसे किसो किसी वृक्षके वीजमें उसके नीचे गिरने से पहले अङ्गुरको उत्पत्ति होती, वही वृक्ष अङ्गुरको मा है। ही अङ्कर निकलता है। गेहू आदि किसी-किसी जितने दिन तक सबल होकर मूल और पत्र द्वारा शस्यके पकनेपर यदि कुछ दिन यथेष्ट धूप और अङ्कुर अपना आहार नहीं जुटा सकता, उतने दिन पानी पहुंचे, तो वृक्षमें रहते हो वोजसे अकर वृक्ष उसके आहारका ठिकाना कर देता है। नवीन फूट आता है। किसी-किसो स्थलमें कटहलका अङ्गुर जल्द बढ़ सकनेके लिये किसो-किसी वीजके वौज भी वृक्ष पर हो अङ्गुरित होता ओर नीचे अण्ड को सफ़ेद लार जैसा पदार्थ (Endosperm) समुद्र किनारे भड़ नामक वृक्षका (Mangrove) रहता है, फिर किसो बीजमें ऐसा नहीं भी होता। घना जङ्गल लग जाता है। समुद्र के किनारे हमेशा ऐसी अवस्थामें वोजपत्र हो अङ्करके आहारका प्रबन्ध जल उछल आता, तरङ्गके ऊपर तरङ्ग उठा करता है। जिस पदार्थको खींच कर अङ्गुर दृष्ट-पुष्ट करती है। वहां बहुतसे विघ्न रहते हैं। वृक्षसे पक्का होता, उसे खेतसार (Starch) कहते हैं। किन्तु वीज नीचे गिरकर जलमें डूब और बालू और मट्टीमें खेतसार केवल जलके साथ गलकर द्रव नहीं होता। धंस सकता है। इसलिये ईश्वरने ऐसा नियम फिर बिना खूब पतला हुए भी वह अङ्गुर में बनाया है, कि फल पक जाने पर भी पेड़से प्रवेश नहीं कर सकता। इसो लिये ईखरने उसे नहीं गिरता। वृक्षपर ही वौजसे अङ्गुर निकलता पतला करनेका उपाय भी कर दिया है। है। धीरे-धीरे वटवालो जटाको तरह उसो अङ्गुरसे पानेसे वायुका अक्षिजेन शेतसारके साथ मिल नीचे लटक मट्टीमें आ जमती है। उस समय जाता है। मिलने पर अङ्गार १२ भाग और अक्षिजन वौजका डण्ठल फट जाता है। इससे ऐसे स्थलमें ३२ भाग (CO.) निकल पड़ता है। इस अवस्थामें अन्यान्य जीवको भांति वृक्ष अपने शिशु सन्तानको खेतसार चीनी (Sugar) और गोंद (Dextrine) कुछ दिन तक गोदमें रखकर प्रतिपालन करता है बनकर जलके साथ खूब मिल जाता है। यही ईश्वरका ऐप्ता नियम न रहने से इतने दिनमें भड़ वृक्ष रस अङ्गुरमें प्रवेश करता, इसीसे वृक्ष बड़ा और निर्मूल हो जाता। सतेज होता है। जिस तरह हमारे पीने के लिये पहले ही कहा मया है, कि अङ्गुर फूटने के लिये बछड़ेको वञ्चित कर दूध गायके स्तनोंसे दूह तापकी आवश्यकता है। प्रयोजनके अनुसार जल, लिया जाता, उसी तरह वृक्ष-शिशुको भी माट वायु और आलोक भी चाहिये। अब इन चारोको प्रदत्त खाद्य सामग्रीको अपहरण कर लेता है। बात अलग-अलग लिखी जाती है। फिर भी, प्रभेद यही है, कि दूध पौनके लिये केवल बहुतसे पेड़ोंका वोज ७८ डिग्रोसे ८३ डिगरी बछड़ेको वञ्चित करके उसका आहार हो हम फारेनहोट ताप लगनेसे अङ्गुरित होता है। छीन लेते हैं, परन्तु वीज खानेको केवल वृक्ष-शिशुके इससे कम या अधिक ताप पाने पर कितने ही वृक्षका ताप जड़ - ताप