पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१५४

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- वायु अङ्कुर अङ्कुर अच्छी तरह नहीं फूटता। इसीलिये अतिशय किसी वृक्षका वीज अपने वजनसे भी अधिक जल शीतप्रधान और अतिशय उष्णप्रधान देशों में वृक्षादि सोख लेता है। शैवाल, कमल, कुमुद, काई आदि बहुत कम उत्पन्न होते ; जो वर्तमान हैं, उनमें अच्छे कितनो ही लता जलमें उत्पन्न होती हैं। वौज फलफूल नहीं दिखाई देते । जितनी (३२) डिग्री तापमें बहुत दिन तक जलमें भौजनेसे सड़ जाता है, जल जमकर बरफ़ हो जाता है, उससे कम तापमें फिर उससे पेड़ नहीं होता। जिस तालावमें पशिल प्रायः कोई भी वोज अङ्कुरित नहीं होता। बड़े-बड़े अर्थात् कीचड़ खूब रहता, उसमें कमलको लता भी वृक्षको भी शीतकालमें भरपूर आहार नहीं मिलता। खूब बढ़ती है । वौज झड़कर गिरनेसे पानी में सड़ जाड़ेके कारण वायुमें ताप नहीं रहता, इसीसे यथेष्ट जा सकता है। इसीसे खोलके भीतर रहते-रहते हो पोषणाभावकै कारण सब वृक्ष निस्तेज हो जाते हैं। उसमें डण्ठल और पत्ते हो आते हैं। कोई वौज छूट पीछे वसन्तकालमें कुछ-कुछ गर्म और मोठी हवा पड़नेसे पत्ते के भीतर जाकर जड़ जमाता, कोई जलमें चलने लगती है। तब वृक्ष उपवासके बाद मानो पथ्य डूबकर अङ्क र निकाल देता है। खोलके भीतर खाने बैठते हैं। इसीसे किसी में नया पत्ता, किसीमें नई वौज रहते-रहते अङ्गुरित न होनेसे समस्त फल कली, किसौमें नया फूल-सभी बात नई-नई दिखाई जलमें सड़ जाता। देने लगती है। उसी समय मालूम होता है, कि वृक्ष पहले ही बता दिया है, कि वायुका अक्षिजेन. मानो मेंडक और सादिकी तरह शीतकालमें खाते (Oxygen) खेतसारक साथ मिलनेसे शक्कर नहीं, सोया करते हैं। वसन्त ऋतु लगते ही उनकी और गोंद उत्पन्न होता है। इसौसे नया नींद खुलती और फिर वह खाने लगते हैं। जिस अङ्गुर जल्द-जल्द बढ़ता और पुष्ट रहता है। सांस देशमें आठ महीने जाड़ा पड़ता, वहां वृक्षादि आठ लेनेके समय अक्षिजेन न मिलनेसे जिस तरह जन्तु महीने उपवास करते हैं, सम्पूर्ण न हो, कितना हो कभी जो नहीं सकता, उद्भिद्का भी हाल ठीक उपवास तो होता ही है। हिन्दुस्थानमें छः महीने उसी तरह है। अक्षिजेन न मिलनेसे कोई वीज जाड़ा पड़ता है। यहांके वृक्ष छः महीने अच्छौ अङ्कुरित नहीं हो सकता। कोई-कोई वौज अपने तरह खानेको नहीं पाते। इसौसे मालूम होता वज़नके सौ भागोंसे एक भाग अक्षिजेन पाने है, कि अङ्कुर फूटने और उद्भिद्को जीवनरक्षा पर अङ्कुरित होता है। गेह, राई आदि शस्य- करनेको ताप विशेष आवश्यक है। शौतप्रधान का दूसरा नियम है । इन्हें अपने वज़नके १० देशमें जो द्रव्य ग्रीष्म और वर्षामें उत्पन्न होता, भागोंसे एक भाग अङ्गुरित होनेको अक्षिजेन इस देशमें जाड़ेके समय वह बोया हो जाता है। चाहिये । जिन जललता और गुल्मादिका वौज जलमें मटर आदि। हिमालय प्रदेश पर पाल ही झड़ कर गिर पड़ता, वह मछलौकी तरह जलके वर्षा ऋतुमें और इधर शीतकालमें होता है। भीतर अपनी आवश्यकताके अनुसार अक्षिजनको जलमें भौजनेसे वीजका छिलका कोमल होता,इसीसे ग्रहण करते हैं। उसे फाड़कर नया अङ्गुर निकल सकता है। कितने इस बातको सब लोग नहीं मानते कि आलोक लगे हो वौजका छिलका बहुत ही कड़ा बिना वीज अङ्गुरित नहीं होता। किसी- होता है। अच्छी तरह भोजे बिना वह कोमल नहीं आलोक किसीका मत है, कि आलोक लगनेसे मट्टी, पड़ता , इसीसे अङ्गुरका मुख भी उसे फोड़ निकल ताप और रसका कुछ तारतम्य होता, इसी कारण नहीं सकता। उसे बहुत जलको आवश्यकता रहती अंखुआ फूटनेके लिये आलोक आवश्यक बताया गया है। परन्तु यह नहीं कहा जाता, कि निकलने- है। आलोक लगनेसे वीज जल्द अंखुअाता है। परन्तु के लिये किस वौजको कितना जल चाहिये। किसो बहुतसे उद्भिदोंके वीज अन्धकार और प्रकाशमें समान जैसे-आलू जल