पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१५५

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खोता। झोंभ। स्त्रो। अङ्क रक–अक्लेश्वर १४६ भावसे ऊगते हैं। किसी-किसी वीजमें आलोक लगनेसे "गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरखति । अङ्गुर नहीं फूटता, इसीलिये उसको बोकर मट्टीसे नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥" ढांक देते हैं। किन्तु अँधेरे में रखने पर उससे अङ्गुर अङ्गुशौ (सं० स्त्री०) अङ्गुशोऽस्त्यास्या: अच् । गौरादि० निकलता है ङीष् । १ चित्तगतिको दमन करनेका तत्त्वज्ञानरूप अङ्गुरक (स० पु०) अञ्चुघुरच्-क। पशुपक्षीका वास उपाय । २ जैनियोंको एक देवी। स्थान। १ घोंसला। २ मांद, | अङ्कष-अकुश देखो। भाठी। अङ्कोट, अकोठ, अकोल (सं० पु.) अङ्ग-प्रोट, अङ्गुरित (सं० त्रि०) अङ्गुर-इतच । तदस्य संजातं तारकादिभ्य ओठ-ओल। पीतसार। सुगन्धिपुष्प । रक्तफल, इतच् । पा ॥२॥३६। अङ्कुरः संजातः अस्य। जाताङ्गुर। Alangium decapitalum. अखुआया हुआ। जमा हुआ । निकला हुआ । यह पौधा अधिक नहीं बढ़ता। यह हिमालय अङ्गुरित-यौवना (स० स्त्री०) वह स्त्रो जो यौवना पर्वतके निकटवर्ती स्थान, गङ्गा किनारे, अयोध्या, वस्थाको प्राप्त हो रही हो। उभड़ती जवानीवाली वङ्गदेश और मध्य-भारतमें बहुत उत्पन्न होता है। इसके तनेका बकला कृमिघ्न और विरेचक है। २५ अङ्कुश (सं• पु०-क्लो०) अङ्क उशच् । सानसिवर्णसिपर्णसि रत्ती मात्रामें सेवन करानेसे वमन होता है। २-३ त लास शचषालवलपल्वलधिष्णाशल्याः । उण् ४११०७। हाथी हांक रत्तौ मात्रामें सेवन करानेसे ही जी मिचलाने लगता ; नेका वक्राय लौहास्त्रविशेष। एक प्रकारका हथियार किन्तु इस तरह वमनोबेग होनेपर भी धातुस्थ पुरा- जिससे महावत हाथोको चलाता है। आँकुस। गज तन ज्वर छूट जाता है। चिकित्सकोंका कथन है, कि । शृणि यह कुष्ठ रोगका सर्वोत्तम औषध है। डाकर मूदिन अङ्गुशग्रह (सं० पु०) अङ्गुश-ग्रह-अच् । शक्तिलाङ्गलाङ शतोमर शरीफ़ने (Dr. Moodeen Shariff ) भी यह बात यष्टिघटघटीधनुष षुग्रहेरुपसंख्यानम्। कात्या० वार्तिक। निषादी। मानी है। उनका बनाया हुआ Supplement to thePharmaco- महावत । जो हाथोको आँकुससे हांके । poeia Indica देखो। कितने ही संन्यासी भी चावल- अङ्गुशहन्ता (हिं० पु०) एक प्रकारका बलवान् और | मुगरी आदि कई दवाओं के साथ अकोलके मूलको दुष्ट हाथी जिसका एक दांत सीधा और दूसरा नीचे छाल देते हैं। रोगके आरम्भमें यह दवा सेवन करने से को झुका रहता है। गुण्डा। फिर घाव होनेका भय नहीं रहता । कुष्ठ देखो। अङ्गुशदुर्द्धर (सं० पु०) दुर--खल् । ईषड् :सषुक्कच्छा- अङ्गोलसार (स० पु०) ६-तत् । १ अकोल वृक्षका कार्थेषु खल् । पा ३।३।१२६ । अङ्गुशेन दुःखेन ध्रियते । सार। २ एक प्रकारका विष । १ क्षिप्तहस्ती, मतवाला हाथौ। २ दुर्दान्त हस्ती, अङ्गोलिका (स० स्त्री०) अङ्ग-उल-क-आप् । आलिङ्गन, बदमाश हाथी। हमागोशी। अङ्गुशधारिन् (सं० पु०) अङ्गुश-धारि-णिनि। अङ्गुशं अझोल्लिका (स० स्त्री०) अकोट वृक्ष । अझोलका पेड़। धारयति । हस्तिपालक, महावत । अङ्ग्य (सं० पु०) अङ्क-यत् । तत्र साधुः । पा ।४।४।६८। १ जो अङ्कशमुद्रा (सं० स्त्री०) अङ्गुशाकार मुद्रा, वह मुद्रा बाजा गोदमें रखकर बजाया जाता है। मृदङ्ग, बायाँ जो आँकुस जैसी बनाई जाती है। मध्यमा अङ्गुलिको आदि। (त्रि०) चिह्न लगाने योग्य। निशान करने सरल कर और मध्यमा पर्वके मूलसे कुछ सिकोड़ जो काबिल । मुद्रा बनती है, उसे अङ्गुशमुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा अक्लेश्वर–बम्बई प्रान्तके भड़ींच जिलेका दक्षिण पूजादिके समय तीर्थावाहन करनेको आवश्यक होती ताल्लुक, जिसमें हांसोतका महकमा भी मिला है। है। तीर्थावाहनका मन्त्र यह है- इसका क्षेत्रफल २८४ वर्ग मील है। इसमें 20 ग्राम बाग।