पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१५७

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अङ्ग १५१ करनेसे ऋषियोंके शरीर-प्रकरणमें कितना हो भेद में जाकर बहुत प्रसन्न होते थे । ( २१ अध्याय । ) फिर निकलता है। अङ्गों का विशेष विवरण उनकै नाममें देखी। तीसवें अध्यायमें लिखा है, कि भीमसेनने जरासन्धके इसके अतिरिक्त नीचे लिखे शब्दोंमें भी बहुत सी पुत्र सहदेवसे कर लेकर अङ्गन्देशके अधिपति कर्णसे बातें मिलेंगी- युद्ध किया था। इससे स्पष्ट मालूम होता है, कि अङ्ग- अस्थि, हडडी (Bone); अलिजिह्वा (Uvula) देश वर्तमान विहारके पास था। शक्ति-सङ्गम-तन्त्रमें जिह्वा, जीभ (Tongue); फुस्फुस्, फेफड़ा (Lungs); कथित है,- हृत्पिण्ड, दिल (Heart); मूत्राशय (Bladder); वृक्कक्, “वैद्यनाथ समारभ्य भुवनेशान्तग' शिवे । गुरदा (Kydney's), अन्त्र, आंत (Intestines); ताबइङ्गाभिधो देशो यावायां न हि दृष्यते ।" पाकाशय, मेदा (Stomach); वासनाली (Larynx वैद्यनाथसे लेकर वर्तमान पुरो ज़िले के अन्तर्गत and trachea); अन्ननाली (Esophagus); गलग्रन्थि भुवनेश्वर पर्यन्त अङ्गदेश है। अङ्ग देश में तीर्थयात्रा- ( Tonsils); मस्तिष्क, मगज़ (Brain) ; पेशी को जानसे कोई दोष नहीं । (Tendons); प्लीहा, पिलही (Spleen); यकृत्, स्म तिमें लिखा गया है- कलेजा (Liver); रसप्रणालो (Thoracic duct); "अङ्गवङ्गकलिङ्गीषु सौराष्ट्रमगधेिषु च । मूत्रप्रणालो (Urethra); कशेरुमज्जा - (Spinal- तीर्थयावां विना गच्छन् पुनः संस्कारमहति ॥” (मनु) marrow); और जननेन्द्रिय या जरायु । अङ्ग, वङ्ग, कलिङ्ग, सौराष्ट्र और मगधमें तीर्थ- (क्लो०) ८ ज्योतिषके मतसे—लग्न । १० काल- यात्राके उपलक्ष भिन्न जानेसे प्रायश्चित्त करना चाहिये। पुरुषको देहके द्वादश राशिरूप विभाग। यथा- कात्यायनके एक वार्तिकवाले व्याख्यास्थलमें भट्टोजि- १ मस्तक-मेष । २ मुख-वृष। ३ वक्ष:-मिथुन । दीक्षितके उदाहरणसे भी यही भाव प्रकट होता ४ हृदय-कर्केट। ५ उदर-सिंह। ६ कटि- है-“अत्यन्तापङ्गवे लिड् वक्तव्यः ।' अर्थात् व्यक्तिको अपलाप कन्या। ७ वस्ति-तुला। ८ पुंस्त्व-वृश्चिक । करनेसे लिट हो। इस वार्तिकके उदाहरणमें भट्टोजिदीक्षितने लिखा है, 'कलिङ्गष्ववात्सी ? नाहं कलिङ्गान् ८ऊरु-धनुः। १० जानु-मकर। ११ जङ्घा-कुम्भ । १२ पादहय-मीन। जगाम ।' 'आप क्या कुछ दिन कलिङ्ग देशमें रहे थे ? ११ बलिराजके एक पुत्र । उन्होंने अपने हिस्म में मैं कलिङ्ग देश नहीं गया।' कमसे कम बारह सौ अङ्ग पाया था। इसीसे उसका नाम अङ्ग पड़ा। वर्ष पूर्व जयादित्य भी उक्त वार्तिकके उदाहरणस्थलमें (महाभारत) । १२ कुन्तीपुत्र कर्णका राज्य । अस्त्रपरीक्षाके ठीक इसी तरहका उदाहरण लिख गये हैं,- समय अर्जुनने धनुविद्यामें बड़ी निपुणता दिखाई थी। "कलिङ्ग स्थितोऽसि ? नाहं कलिङ्ग जगाम ।" इसका ठीक-ठौक इससे धृतराष्ट्र-पुत्रों के चित्तमें बड़ो ईर्था उत्पन्न हुई। कारण नहीं मिलता, कि तीर्थयात्राके अतिरिक्त पहले कर्णवीरको कोई अच्छी तरह पहचानता न था, कलिङ्गदेश में जानेसे क्यों प्रायश्चित करना पड़ता था। जो रङ्गभूमिमें जा आस्फालन करने लगे। उनकी यही किसी-किसीका अनुमान है, कि अङ्गदेशमें कृष्णसार इच्छा थी, कि वह एकवार अर्जुनसे युद्ध करते। और कुश आदि यज्ञ करनेको सामग्री नहीं मिलती, कर्णवीर राजा तो थे नहीं, अत: अर्जुन उनसे न इसीलिये वह अपवित्र है। परन्तु यह अनुमान लड़े। इसौसे दुर्योधनने प्रसन्न हो सूतपुत्र कर्णको प्रामाणिक नहीं। क्योंकि रामायणमें लिखा है, कि अङ्गराज्य दे दिया। अङ्गदेश मगधक (विहार) दशरथ राजाके मित्र रोमपाद अङ्गदेशके राजा थे और पासका वैद्यनाथादि स्थान है। महाभारतके सभा उनके दामाद ऋष्यशृङ्गमुनि उन्हींके राजभवन में रहते पर्व में लिखा है, कि पहले मगधमें गौतमका थे। यदि अङ्ग देश अपवित्र होता तो कभी ऋषि वहां आश्रम था। अङ्ग वङ्गादिके राजा. उनके आश्रम जाकर न रहते। अङ्गदेशको राजधानीका नाम चम्पा 1 1 1