पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१६२

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१५६ अङ्गहानि–अङ्गामौ-नागा "जाते पुर्व पितुः स्नानं सचलन्तु विधीयते। मेष और वृश्चिकके मङ्गल, वृष और तुलाके शुक्र, माता शुद्ध द्द शाहन खानात्तु स्पर्शनं पितुः ।" सम्वत । मिथुन और कन्याके बुध, कर्कटके चन्द्रमा, धनु अन्त्येष्टि क्रियाके बाद चतुर्थ दिवस द्विजातिवाले और मीनके वृहस्पति और मकर और कुम्भ लग्नके मृतव्यक्तिको अस्थि-सञ्चय करें; इसके बाद अशुचि अधिप शनि हैं। मनुष्यका अङ्ग छूएं । जैसे- अङ्गाधीश (सं० पु०) अङ्गस्य देशभेदस्य अधीश:, "चतुर्थे ऽहनि कर्तव्यमस्थिसञ्चयन विजः। ६-तत् । अधिकः ईश: अधीशः । १ मगध निकटवर्ती ततः सञ्चयनादूई मङ्गस्पर्श विधीयते ॥” वाचस्पति-धृत दक्षवचन । अङ्गदेशके राजा, कुन्तौके पुत्र कर्ण । २ जन्मकालके अङ्गहानि (स. स्त्री०) अङ्गस्य हानिः, ६-तत्। ग्रहनक्षत्रादि संयुक्त लग्नाधिपति । अङ्गाधिप देखो। हा-क्तिन् हानि। ग्लाखान्याहान्यो निः। (काल्या० वा०) प्रधान अङ्गाधीश्वर (स• पु०) अङ्गस्य अङ्गदेशस्य अधीश्वरः, कार्यको अङ्गहीनता। कार्यको त्रुटि। कामका ६-तत्। अधिकः ईश्वरः अधोखरः । १ कर्ण । बिगाड़। २ सन्तान जन्मकालिक लग्नाधिपति । अङ्गहार (सं० पु०) अङ्ग-दृ-घञ् अधिकरणे, ६-तत् । अङ्गामो-नागा-आसामके दक्षिण नागा-पर्वतको १ नृत्य, नाच । अङ्ग-हृ भावे घञ् । २ उंगलियों असभ्य जातिका सम्पदाय-विशेष। नागा-पर्वतके तथा हाथ-पैरोंसे नाना प्रकारके भाव दिखाना। पूर्वमें ऐरावत नदी, पश्चिममें ब्रह्मपुत्र, उत्तरमें चमकना। मटकना। लखीमपुर, शिवसागर और नौगांव, तथा दक्षिण- अङ्गहारी (सं० पु०) अङ्ग-हृ-णि । नाचघर। नृत्य करने में मणिपुर है। अङ्गामौनागा शब्दका अर्थ क्या है ? योग्य रङ्गभूमि। नाचने काबिल तमाशगाह । कोई-कोई कहते हैं, कि हिन्दुस्थानौ “नङ्गा” शब्दसे अङ्गहीन (सं० त्रि०) अङ्गेन होनम्, ३-तत् । (ो हाक्) नग्न नागा जातिका नामकरण हुआ है। किन्तु हा-क्त होनः। उहितश्च । पा ८।२।४५॥ १ विना अङ्गका, इसमें भूल है, यह अनुमान ठीक नहीं। अर्जुनने इसी जिसके अज़ा न हों। २ टूटे अङ्गका, जिसका कोई देशमें नागकन्या उलूपीसे विवाह किया था। उसौ अजो टूट या नाकाबिल हो गया हो। जैसे लला, समय अर्जुनने मणिपुरको चित्राङ्गदाका भी इसौ देशमें लगड़ा इत्यादि। पाणिग्रहण किया। महाभारतमें कहा हुआ नागवंश अङ्गाङ्गिभाव (सं पु०) अङ्गस्य अङ्गिनश्च भावः, ६-तत् । ही यहांको नागा जाति है। अर्जुनने उलूपीसे पूछा १ गौण और मुख्य भाव। मामूली और गैरमामूली था-"सुभगे ! तुम कौन, किसको कन्या और किस अदा। २ अलङ्कार विशेष। देशमें मुझे ले आई हो ?” उलूपौने उत्तर दिया- अङ्गादिपुरम्-मन्द्राज प्रेसिडेन्मौके मलबार उपकूलका “ऐरावतकुले जातः कौरव्यो नाम पन्नगः । एक नगर। यह अक्षा १०° ५८ ५५ उत्तर और तस्वास्मि दुहिता राजइल पौ नाम पन्नगी।" द्राघि ७६° १६ ५१” पूर्वके मध्यमें अवस्थित है। महा० आदिपर्व २१४१८ इस स्थान पर जो दुर्ग सन् ई० के १८वें शताब्द तक 'मेरे पिताका नाम नागराज कौरव्य है। ऐरावत अभग्न अवस्थामें खड़ा था, अब वह ध्वंसमुखमें पतित वंशमें उनका जन्म हुआ है मैं उन्हीं नागराजको हो गया। यह नगर मन्दिरके लिये प्रसिद्ध है, और कन्या हूं, मेरा नाम उलूपी हैं।' सन् १८८५ ई० में मपिल्लाओंसे विशेष-भावमें यहांके नागा ऐरावती नदीके निकटवर्ती पर्वतमें आक्रान्त होनेके कारण इसने इतिहासमें भी प्रसिद्धिको रहते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि पहले यही लाभ किया है। ऐरावतके वंशधर बता अपना परिचय दिया करते थे। अङ्गाधिप (सं० पु०) अङ्गस्य अङ्गदेशस्य अधिपः, परन्तु इस बातका मतलब हमारी समझमें नहीं आता, अधिपतिः, ६-तत्। १ कण। २ लग्नाधिप । यथा कि मनुष्य सर्पके नामसे क्यों पुकारा गया। अङ्गामी- 1