पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१६४

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१५८ अङ्गामौ-नागा स्त्रियोंको भी नष्ट कर डालते हैं। यदि किसोके । कोठरीमें शराबका मटका रहता है। इसमें यह साथ उनका मनोमालिन्य हो जाये, तो वह जन्मभर चीजोंको सड़ा-सड़ाकर शराब बनाते हैं। इनके पास उमको नहीं भूलते। जिस समय अवसर मिलता, और कुछ हो या न हो, परन्तु घरके लिये उसी समय वह बदला ले लेते हैं। नागाओंको शराबका समान जरूर चाहिये। नागाओंमें बहुत- विश्वास है, कि शत्रु को मार सकनेसे इस लोकमें से अफीम और तम्बाकू खाते, परन्तु अगामी सुख्याति और परलोकमें सद्गति मिलती है। केवल इस घरको बनी शराब पर ही अधिक भक्ति इसीलिये बात-बातमें यह अस्त्र चला बैठते हैं। रखते हैं। यह बांस या सींगको बनी कटोरोमें समस्त नागा जातिको लोकसंख्या तीन लाखसे भी घासके नलसे खींचकर शराब पीते हैं। कोई-कोई कुछ अधिक होगी। इसमें अङ्गामियोंको संख्या बांस या लकड़ी के चम्मचसेहो शराब पीना पसन्द करते तीस हजार है। इनके ४६ गाव हैं। हैं। क्या सवेरे क्या सन्ध्याको अगामी सदा शराबके अङ्गामियोंके एक-एक गृहस्थका घर एक-एक झोंकमें मस्त रहते हैं। मालूम होता है, कि इनमें किलेके समान होता है। जहांको राह अप्रशस्त इतना विवाद शराब पीनेसे ही बढ़ता है। होती, दोनो ओर पहाड़ रहते और केवल एक मनुष्य घरको चारो ओर पत्थरको ऊंची चहारदी- बड़े कष्टसे जा सकता, इनका घर उसो दुर्गम वारी रहती है। ही चहारदीवारी न बनाकर गिरिसङ्कटमें बनता है। मनुष्यका जीवन कमलके उसे बांसके बड़े-बड़े खम्भोंसे ही घेर देते हैं। पत्तेका जल है; परन्तु नागाओंका जीवन इससे भी चहारदीवारी तथा घरके किवाड़े वृक्षके तनेसे काटकर अधिक क्षणभङ्गर होता है। इनमें आठो पहर बनाये जाते हैं। किवाड़े, टट्टी तथा चहारदीवारीमें इतना विवाद रहता है, जिसका कोई ठिकाना जगह-जगह छेद बने रहते हैं, शत्रुको जिस समय नहीं। बात-बातमें झगड़ा उठता है, जो विना चढ़ाई होती है, उस समय उन्ही छेदोंसे लोग गोली रक्त गिरे नहीं मिटता। यह बड़े ही जिद्दी होते मारते हैं। प्राचीरके बाहर दो-तीन हाथ गहरा गड्डा हैं। इसीसे गृहस्थका घर दुर्गम स्थानमें किला-जैसा होता है, जिसमें तख्ते, बेंत या बांस डाल दिये जाते बिना बनाये काम नहीं चलता। घर हिन्दुस्थानके हैं। यह गड्डा थोड़ी मट्टी या पत्तेसे छिपा दिया दोचाले झोपड़े जैसा बांस और काठसे बनाया जाता जाता है। एकाएक शत्रु आ जाने पर, वह इसमें है। इसकी दोनो ओर के छप्पर, और पीछे का गिर पड़ता है और पैरों में कांटे चुभ जाते हैं। हिस्सा ढालू रहता है। इनके छप्पर फूस और खरसे प्राचौरके भीतर गाय, बैल, बकरी, सूअर, कुत्ता, बनते जो, हवामें उड़नेके भयसे ऐसे ढालू होते, कि मुर्गी आदि बहुतसे पालतू पशु-पक्षी रहते हैं। जमीनको छूते रहते हैं। सामनेका कमसे कम बोस प्रत्येक ग्राममें अङ्गामियोंकी प्रायः सात-आठ प्रकार- और पौधेका छप्पर आठ-दश हाथ ऊंचा होता है। को जाति होती है। कोई किसीसे मिलता नहीं। धनवान् अङ्गामौके ढालू छप्पर पर लकड़ी की एक-एक जातिका एक-एक स्वतन्त्र महल्ला है। कई तरह नक्काशी होती है; दरिद्रोंके ऐसी कोई महल्लेको चारो ओर ऊंची चहारदीवारी रहती गृहसज्जा नहीं। एक-एक घरमें दो-तीन कोठरियां है। कहीं-कहीं गहरी खाईके भीतरसे भी आना- रहती हैं। सामने शस्यादि रखनेके लिये बांसको जाना पड़ता है। बड़ी-बड़ी कोठियां बना दी जाती हैं। बीचको नागाओं में कोई-कोई जाति तो, न किसी प्रकारके कोठरीमें आग जलानेका कुण्ड होता है। कुण्डको वस्त्र पहनती, और न किसी आभूषणको पहचानती चारो ओर तख्ते बिछा दिये जाते हैं। यही है। प्रकृतिके काम पर नागे हस्तक्षेप करना जानते गृहस्थके बैठने और सोनेका स्थान है। पौछेको ही नहीं। ईश्वरने इन्हें जैसा बनाया, इस समय