पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१६५

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पहले लाल A तरह डाले हैं यह अङ्गामी-नागा १५३ भी यह ठीक वैसे ही विवस्त्र हैं। परन्तु अङ्गामी कानोंके भूषण भी बहुत तरहके होते हैं, कपड़े पहनते और स्वयं बुनते भी हैं। इनके प्रधान जिनमें कर्णफल हो सबको बहुत प्रिय है। इस वस्त्रमें छेद बहुत रहते हैं। इसका पनहा एक हाथ फूलमें अच्छी कारीगरी होती है। और लम्बाई ढाई हाथ होती, पशमका फूल बनाया जाता, जिसकी चारो और तिल्ला आगको ओर झूला करता, बकरीके रूए की झालर चामरकी तरह लहराती है। जिसमें कौड़ी गुंथी रहती हैं। बीच में हर तोतका पर रहता है। परके किनारे- रुई अथवा पेड़को छालका किनारे सफेद वीज मोतीके समान सजाये जाते हैं। एक दूसरा वस्त्र भी यह फूलको बोंडी कन्धे के पीछे सूअरके दांतसे अटकाते हैं। अपने शरीर पर चद्दरको दांतको जड़में बहुत तरह बेंतके, काम किये जाते इनका हैं। कितने हा कांसको बाली, रूईका गुच्छा और मुसज्जित अङ्गामी-नागा ठाट घर-बाहर सभी पक्षियों के पर भी कानमें पहनते हैं। गलेमें हडडी, जगहका है। नाचना-गाना अथवा लड़ाई-झगड़ा अकोक, कांच और शङ्ख तथा कोड़ोको माला ही इस वेशमैं नहीं होता। नृत्यगीत तथा युद्धका ठाट अधिक पड़ती है। बांहमें हाथी दांत या बेतका दूसरा ही है। गहरे नीले रङ्गको चद्दरके दोनो बाजूबन्द और पैरमें बेंतका कड़ा रहता है। अञ्चलोंमें झालरदार हाशिया लगता और दोनो अविवाहित बालिकायें बाल नहीं रखती, सब किनारीपर लाल और पीले रङ्गको कोर रहती है। माथा मुड़ा डालती हैं। विवाहके बाद यह बाल यही अङ्गामियोंके युद्ध और नाचका सामान है। इस रखतीं और बढ़ने पर चूड़ा बांधती हैं। स्त्रियोंके चद्दरको यह पीडके ऊपरसे पैर तक लपेट लेते हैं। गलेका अलङ्कार प्रायः पुरुषोंके समान ही होता स्त्रियोंके पास दो वस्त्र रहते हैं। शरीरपर एक है। कुमारी कानमें लकड़ीके छल्ले डालती हैं। छोटा कुरता कमर तक झलता, इसके ऊपर विवाहिता स्त्रियोंके कानों में बाली और बांहोंमें एक चद्दर कन्धे से कमर तक उलझी रहती है। कांसका जेवर रहता है जाड़ेके दिनमें इसपर एक और भी चद्दर स्त्रियां अङ्गामियोंका खास अस्त्र बर्वा और दांव है। डाल लिया करती हैं। अब इन्हें कितनी ही बन्दूकें भी मिल गई हैं। यदि अङ्गामी पुरुषोंके शिरमें बड़े-बड़े केश होते, यह किसौके हाथमें बन्द क या तपञ्चा देख लेते, जो सामनेको ओर कुछ छोटे और घूमे हुए रहते हैं। तो उसको पानेको प्राणपणसे चेष्टा करते हैं। सहजमें कितने ही भौंहों तक केश लटकाते हैं। पीछे बड़े न मिलनेसे चुरानेका उद्योग लगाते हैं। जिस समय केशोंका चूड़ा बंधता है। इसमें ऐंठ-ऐंठकर रूई यह लड़ाईमें जानेके लिये सज-सजा और दल लगा दी जाती है। कोई पर्व या त्यौहार आने पर बांधकर निकलते हैं, उस समयका दृश्य बड़ा यह इसे पक्षियोंके परसे साजते हैं। पूंछके सादे परपर हो भयङ्कर होता है। यह अपना सर्वाङ्ग अस्त्र- काले रंगका दूसरा पर लगा दिया जाता है। यही शस्त्रसे सुसज्जित कर बादलको तरह गरजते हैं। साज अङ्गामियोंको बहुत प्रिय है। पसन्द आ जानेसे हाहाकारसे चारो दिक् कांप उठते, पर्वत डोलने आठ आने देकर भी यह एक पर खरीद लेते हैं। लगते और वसुमतो समझ सकती हैं, कि उनकी किन्तु पोशाक पर सबको समान रुचि नहीं होती। छाती पर कोई वीर पुरुष ललकार रहा है। कोई-कोई तो केश काट कर निकाल डालते हैं और इनका बर्दा सामान्य नहीं होता। पाससे शिर पर कोई वेशभूषा नहीं रखते ; कोई कोई किसीको आघात करनेसे प्रायः निष्फल नहीं जाता। भालूके रूएंकी माला बना कर पहन लेते हैं। बङ्घका फल एक हाथसे डेढ़ हाथ तक लम्बा और 1 1