पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१६६

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यह फल नहीं। अङ्गामी-नागा तीन-चार अङ्गुल चौड़ा होता है। दूसरे लड़कोंका कोई अधिकार नहीं। घरको विधवा तीन-चार हाथ लम्बे बॅटमें लगता; जिसमें विचित्र स्त्रियां जीवन पर्यन्त भोजन-वस्त्र पाती हैं, परन्तु रूआं सजाया जाता और जिसके दूसरे छोर पर अपने वस्त्रालङ्कारके सिवा इन्हें किसी दूसरी वस्तुका लोहेका एक पतला दूसरा फल भी रहता है। नागे अंश नहीं मिलता। स्त्री और पुरुषमें विच्छेद होनेसे भूलकर भी टेढ़ा बी नहीं जड़ाते। बछेका बेंट परित्यक्त स्त्री सारी सम्पत्तिका एक तिहाई अंश पाती. सदा सीधा ही रहना चाहिये। इनकी ढाल तख ते है। यदि उस स्त्रीको गोदमें कोई दुधमुंहा बच्चा हुआ, तथा बांससे बनतो, जिसपर हाथी या शेरका चमड़ा तो वह कुछ समयतक माके पास रहता, बड़ा होने मढ़ा जाता है। ढालके ऊपरी दोनो कोनोंपर पर अपने पिताके पास वापस जाता है। बैंतके सींग बने रहते, जिनका अग्रभाग बालके गांवके पास हो अङ्गामियोंका कब्रस्थान रहता गुच्छेसे सजता है। ढालके नौचेका भाग पतला यह मृतदेहके साथ अस्त्र, वस्त्र, शराब, मुर्गी, रहता, जिसके बीच में सफेद, काले, नौले और खाने-पौनका सामान गाड़कर ऊपर समाधि और लाल रंग-विरंग रूएं तथा पर लगा दिये जाते बना देते हैं। समाधिको चारो ओर पत्थरसे घेर नागाओंको खेतीके अस्त्र दांव, कुदाल और बीच में एक पत्थरपर मृत व्यक्तिको कुठार हैं'; इन्हींसे यह सब काम चला सकते हैं। मूर्ति बना दी जाती है। शव गड़- अङ्गामियोंको किसी द्रव्यसे वितृष्णा जानेपर बहुतसे पत्ते रखकर शराब जगत्में जो अखाद्य है, यह वही आनन्दसे खाते ढाल देते हैं। यद्यपि अङ्गामौ मांस- हैं। इनके लिये कुत्तेका मांस सुखाद्य और सत्पथ्य पिशाच हैं, तथापि इनमें जो कुछ है; पका और गलाकर खानेसे शरीरमें किसी धर्म ज्ञान है, उससे जोवहिंसा और प्रकारको व्याधि नहीं रहती। परन्तु यह कह नहीं अखाद्य भोजन को महा पाप मृत अङ्गामीकी मूर्ति । सकते, कि जो जाति ऐसौ निर्विकार है, उसे दूध क्यों समझते हैं। इनको विश्वास है, कि अच्छे पुरुष नहीं रुचता। दूधका कटोरा मुंहके पास ले जानेसे मरने बाद आकाशके नक्षत्र होते हैं, परन्तु मांस ही यह वमन कर देते हैं। खाने से सात बार प्रेतयोनि में जन्म लेकर फिर अङ्गामी एक स्त्रीके रहते दूसरोसे कभी विवाह मधुमक्षिका होना पड़ता है। आका, सन्थाल आदि नहीं कर सकते ; परन्तु स्त्री अपने इच्छानुसार पति असभ्य जातियों के समान पहाड़ोंमें इनके भी बहुतसे को छोड़ सकती, पति भी इच्छा करनेसे स्त्रोको त्याग देवता हैं। नदी, जङ्गल, गिरिगुहा और पर्वतमें सदा देता है। फिर किसीको भी पुनर्विवाह करने में एक न एक देवता विराजा करते हैं। नागे प्राणके भयसे रुकावट नहीं होती। इनका विवाह वरकन्याके इनको पूजते हैं, क्योंकि इनके हृदयमें वास्तविक भक्ति इच्छानुसार ही होता है। दोनोका मन मिल जाने नहीं होती। जब कभी कोई नया काम यह करते, से घरका अभिभावक आपत्ति नहीं करता। हां, तब पहले उसका शुभाशुभ फल विचार लेते हैं। विना आवश्यकता पड़ने पर वह सत् परामर्श दे सकता है। शकुनके कोई काम करनेसे इनको मूर्खता प्रकट विवाह तथा श्राद्ध आदिके अवसर पर पेट भर होती है। यह हमारी तरह कागज़ और कुलमसे मद्य मांस खानेके सिवा और कुछ भी धूमधाम गणना नहीं करते फल-फूलके नाम द्वारा भी नहीं नहीं होती। विचारते। जिस समय किसी कार्यका परिणाम जान- पिताको मृत्युके बाद जो कुछ सम्पत्ति रहती है, नेको इच्छा इनके चितमें उत्पन्न होती है, उस समय सब लड़के मिल कर उसे बांट लेते हैं ; परन्तु मकान एक पतली लकड़ीको दांव से जरा-जरा काटते हैं । कनिष्ठ पुत्रको ही सम्पत्ति समझा जाता है, उस पर ऊपरका कटा मुंह यदि उलट पड़े, तो बड़ा कुलक्षण