पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१६८

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अङ्गामी-नागा-अङ्गार मनुष्य थे। समझा जाता है। भविष्यत् देखनेको और भौ में अंगरेज़ोंका एक अडडा था। नागे बार-बार वहां अच्छी प्रक्रिया है। एक मुर्गीका गला पकड़कर उत्पात मचाने लगे। अन्त में इन्होंने वहांके जमादार दबानेसे यदि वह बायें पैर पर दाहना पैर रख कर भोगचाँदको मार डाला। इस अपराधका उचित मर, तो अधिक सुलक्षण है। यदि युद्ध में जाते दण्ड देने के लिये अंगरेज़ोंने फिर चढ़ाई को, इस समय सामनेसे हरिण दौड़कर चला जाय, तो बार गहरी लड़ाई हुई। नागे पराजित होकर युद्ध में हारना होता है; परन्तु पीछेसे यदि बाघ भाग खड़े हुए। अब अङ्गामियोंका दौरात्मा बहुत निकले, तो देवताओंके अस्त्र उठानेसे भी युद्धमें कुछ कम हो गया है। नागा देखो। पराजय नहीं होती। कितने ही वनके पक्षियोंकी चोप्नु नामक स्थानमें शैवंभङ्गम् एक वलिष्ठ बोलियां शुभ, और कितनी ही की अशुभ समझो यह सदा रणवेशमें रहते थे। जाती हैं। बाई ओर उनका बोलना शकुन और चित्र फेमौका है, जो शैवंभङ्गम्की स्त्री थों। दाहनी ओर बोलना अशकुन होता है। यह वास्तवमें एक बड़ी अङ्गामियोंका कोई राजा नहीं। यह सब स्वतन्त्र ही सुन्दरी रहों। फेमौकी रहते हैं। फिर भी इतना है, कि इनके दलका कमरमें केवल एक झंगूलना एक सरदार होता, जो “प्यू मा” कहलाता है। जो पड़ा रहता था। शरीरमें सद्वक्ता हो, युद्धमें दो-चार बार वीरता दिखा चुका और कहीं भी वस्त्र नहीं। हो तथा जिसके पास भूमि और गाय-बैल बहुतसे झंगूलने पर साधारण कौड़ियोंका हों, वही पुरुष सरदार होने योग्य समझा जाता है। अलङ्कार और बेंतका कड़ा और विरोध होने पर वही दोनो पक्षके मनुष्योंको समझा- बाज बन्द, गले में पत्थरको माला बुझा कर निबटारा करता है। परन्तु निबटारके विराजती थी। नागाओं में पुरुष हो अधिक गहने समय सरदारको निरपेक्ष रहकर दोनो पक्षके पहनते, स्त्रियां गहना उतना पसन्द नहीं करती। मनुष्योंका चित्त समाधान करना पड़ता है ; नहीं तो अङ्गार (स० पु०-क्लो०) अङ्ग-आरन्। अभिमदिमन्दिभ्यः उसकी बात कोई भी नहीं मानता। ऐसा न होनेसे पारन्। उण् ३।१३४॥ १ काठादि किञ्चित् दग्ध होनेसे अर्थों और प्रत्यर्थी अपने बाहुबलसे झगड़ेका अग्निनिर्वाणके बाद जो कृष्णवर्ण पदार्थ अवशिष्ट निबटारा कर लेते हैं। प्रसन्नताकी बात यह है, रहता है, वह चौज़ जो लकड़ो वगैरह, कुछ-कुछ कि एक सम्पदायमें विवाद होते समय दूसरी दलके जल जानेसे आग बुझनेके बाद बाकी बचे । अँगार। लोग किसौके भी पक्षको अवलम्बन नहीं करते। २ कोयला। ३ मङ्गलग्रह। ४ रक्तवर्ण, लालरङ्ग। युद्ध में वह प्रायः निरपेक्ष रहते हैं। यदि यह गुण न (त्रि.) ५ रक्तवर्णविशिष्ट, लाल, सुख । अग्यते चिह्न होता, तो आज तक नागा जाति निर्मूल हो जाती। क्रियते अनेन इति अङ्गारम्। जिससे चिह्न लगाया नागाओंने अंगरेज़ोंसे कई बार युद्ध किया है। जाय, उसे अङ्गार कहते हैं। आज भी कितने हो सन् १८३१ ई० में कप्तान जेशिन्स, पेम्बर्टन और लोग अङ्गारसे चिह्न लगाते हैं। पहले अङ्गार गर्डन आसाम और मणिपुर नागाओंके साथ व्यवसाय अधिक चिह्न करनेको व्यवहृत होता था। खोलने गये थे। परन्तु अङ्गामो अपनी स्वाधीनता प्रमाण कुमारसम्भवमें मिलता है- चले जानेके भयसे लड़ पड़े। कितने ही नागाओंने "बमोऽपि विलिखन् भूमि' दण्डेनास्तमितत्विषा । अंगरेज़ोंको पकड़कर मार डाला, कितने ही कुरुतेऽस्मिन्नमोऽपि निर्वाणालातलाधवम् ॥” कुमार २।२३ । अंगरेज़ोंको गोलियोंसे मारे गये। इसके बाद सन् अङ्गार वा कार्बोन् (Carbon)-साङ्केतिक चिन्ह "का" १८५० ई० में इनपर फिर काल आया। समगुतिङ्ग (C); सांयोगिक गुरुत्व ११८५ । पृथिवीमें हम जितने ४१ %3 इसका