पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१७०

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अङ्गार चौज ढांकनेसे काजल पड़ता, जो सभी कार्बोन है। और दूसरेका नाम अङ्गाराम्ल (Carbon dioxide or लकड़ीका कोयला जल में डालनेसे तैरता है। यह Carbonic acid) है। अङ्गार जलनेके समय अक्षि- देखनेसे सहसा मालूम होता, कि लकड़ीका जनके न्यूनाधिक्यसे यही दोनो यौगिक पदार्थ कोयला जलसे हलका है; परन्तु वह वास्तविक उत्पन्न होते हैं। अङ्गारसे इसके ठोक परिमाणके हलका नहीं होता। कोयलेमें छोटे-छोटे छिद्र अनुसार अक्षिजेन मिलने पर अङ्गारक बाष्प होते, जिनमें हवा पहुंचा करती है। जलसे हवा निकलती है। फिर यदि ठीक इससे दूना अक्षिजेन हलकी है। हलके पदार्थ का स्वाभाविक गुण यही मिल गया, तो अङ्गाराम्ब उत्पन्न होता है। इस है, कि वह जलपर तैरा करता, और भारी पदार्थ लिये अङ्गारक-बाष्पका साङ्केतिक चिन्न-१ समान उसमें डूब जाता है। पूरी सांस चढ़ाकर जलमें कार्बोन+१ समान अक्षिज़न या “का” (CO); गोता मारनेसे शरीर जलके ऊपर उठकर तैरने एवं अङ्गाराम्लका साङ्केतिक चिन-१ एक भाग लगता है। एक छोटा छिद्र रहनेसे सूई कार्बोन+२ दो भाग अक्षिजेन या "काअर” (CO.) है। जलपर तैरती है। परन्तु यदि कोयलेको चूरकर लोहेके चूल्हे में पत्थरका कोयला जलाने पर जलमें डाल दिया जाये, तो सब छिद्र नष्ट हो जाने नीचेसे हवा प्रवेश करती है। हवामें प्रचुर अक्षिजन के कारण वह जलमें डूब जायेगा। है; सुतरां अङ्गारके साथ यथेष्ट अक्षिजन मिल छोटे-छोटे छिद्र रहनेके कारण कोयला मनुष्यके जाता है। इसीसे अङ्गाराम्ल-बाष्प उत्पन्न होती है। बहुत काम आता है। भेड़ और बैलकी हडडीके इसके बाद, यह भाफ़ आगके भीतरसे ऊपरको कोयलेस चीनी और नमक आदि कितनी ही चीजे ओर उठती है। आगके भीतर हवा अच्छी तरह साफ की जाती हैं। कोयलेका टुकड़ा जितना बड़ा नहीं रह सकती, इसोसे वहां यथेष्ट-अक्षिजन भी होता, उसमें डीक उससे ८० गुण आयतनका नहीं होता है। नीचेकी अङ्गारक भाफ़ ऊपर ऐमोनिया बाष्प और ८ गुण आयतनका अक्षिजेन उठनेसे आगके भीतरके अङ्गार उसी बाष्पका अल्प- सोखता है ; इसलिये रोगी मनुष्यके घर अथवा दुर्गन्ध अल्प अक्षिजेन खींचा करते हैं। इसौसे अङ्गारक- स्थानमें रखनेसे वायुका दोष नष्ट हो जाता है। बाष्य उत्पन्न होती है। आगके भीतर जो नौलो लकड़ी जलानेसे पत्थरका कोयला नहीं बनता। शिखा देख पड़ती, वही अङ्गारक-बाष्पको शिखा इसको उत्पत्ति अन्य प्रकार है। बड़े-बड़े जङ्गलोंपर है। अन्तम अङ्गारक-बाष्य आगके ऊपर आनेसे मट्टी पड़े कितने ही युग बीत गये। धीरे-धीरे भौज, चारो ओर हवा लगती है; इसलिये फिर वहां तापसे सिद्ध हो वही सब वृक्ष आज पत्थरका कोयला अक्षिजनका अभाव नहीं रहता। बन गये हैं। बाष्प फिर अङ्गाराम्ल होकर उड़ जाती है। कोयलेका गुण यही है, कि यथेष्ट अक्षिजन रासायनिक पण्डित किसी विषयको परीक्षाके पानसे जलनेके समय वह अपने आकारके ठीक लिये अक्षालिक अम्ल (Oxalic acid) और गन्धक- दूने अक्षिजनमें मिल जाता है। अर्थात् द्रावकसे अङ्गारक बाष्प तय्यार करते हैं। परन्तु अङ्गारका एक परमाणु अक्षिजनके दो परमाणुओंमें जगत्में अङ्गाराम्ल बाष्पका अभाव नहीं। वायुके मिलता है। अधिक अक्षिजन पानेसे उसके साथ २५०० ढाई हजार भागका एक भाग अङ्गाराम्न कभी नहीं मिलता। अङ्गार और अक्षिजनके है। पण्डितोंने निश्चित किया है, कि पृथीके समुदय एकत्र मिलनेसे दो प्रकारके यौगिक पदार्थ उत्पन्न वायुमें ८१,००,००,००,००,००,०० मन अङ्गा- होते हैं। इनमें एकका नाम अङ्गारक बाष्प राम्न है। केवल लकड़ीका कोयला आदि जलनेसे (Carbon monoxide or Carbonic oxide gas) ही अङ्गाराम्ब नहीं उत्पन्न होता, सब जन्तुओंके वही अङ्गारक