पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१७१

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अङ्गार जलती। प्रखासके साथ और रोम-रोमके छिद्रसे आठो पहर बचे। उनमें भी कितनी होने पीछे ज्वर रोगसे यह बाहर निकला करता है। उद्भिद इसीको अपने प्राण गंवाये। हमारे देशके मनुष्य आत्महत्या खासके माथ खींचते, जो धीरे-धीरे काठ और कोयलेमें करनेको गले में फांसी लगात, अफ़ौम खाते हैं। परिणत होता है। सब भाफोंसे अङ्गाराम्ल बाष्प इससे कितना कष्ट मिलता है ! पेरिसनगरके मनुष्य ज्यादा वजनदार होती है। इसके भीतर आग नहीं पण्डित हैं, इसी कारण हम लोगोंसे मरना भी अच्छा अङ्गाराम्ल भाफ.से भरी शोशीके भीतर जानते हैं। आत्महत्या करनेको इच्छा होनेसे वह जलता हुआ फलोता डालते ही बुझ जाता है। बन्द कमरमें ख ब कोयला सुलगाकर सो जाते हैं। इसीसे कोयलेकी खानिमें आग लगने पर उसे वुझाने- खिड़की, दरवाजा खुला न रहने के कारण केमरे में का इससे सहज उपाय नहीं, कि खानिकी चारो साफ़ हवा प्रवेश नहीं कर सकती, इसीसे अङ्गाराम्लके ओर राह बन्द करके भीतर अङ्गाराम्न पहुचाये। विष द्वारा शीघ्र मृत्यु हो जाती है। ऐसी मृत्युमें कुछ इससे उसी समय आग बुझ जाती है। जहां आग भी कष्ट नहीं होता। नहीं जलती, वहां अग्निशिखा भी नहीं जल सकती। कई वर्षकी बात है, कि बङ्गालके आमोदपुर बहुत दिनके पुराने कुएंमें अङ्गाराम्ल उत्पन्न हो नामक टेशनका एक खलासी अपने स्त्री-पुत्रको जाता है। इसीसे ऐसे कुए में मनुष्य उतरते ही लेकर एक छोटीसी कोठरोमें सो गया। जाड़ेको मरता है। कभी-कभी ऐमो दुर्घटना सुनने में आया रात होने के कारण अंगोठीमें कोयला खूब सुलग करती है। पुराना कुआं उगारने अथवा उसमें गिरे रहा और दरवाजा बन्द था। कुछ देर बाद उसके हुए जलपात्रादि निकलवानेकेलिये एकाएक मनुष्यको एक आत्मीयने जाकर देखा, कि वह सब मर नीचे न उतरने देना चाहिये। पहले लालटेनमें गये थे। सन् १८७२ ई० के समय शिमले में भी बत्ती जलाकर कुएं में उतारी। जलके पास पहुँच ठीक एक ऐसी हो दुर्घटना हुई। नेपियर जाने पर भी यदि बत्ती जलती रहे, तो किसी विपद्का साहब कई कुलियोंके साथ पर्वत पर घूमने गये। भय नहीं। परन्तु यदि एकाएक बत्ती बुझ रातका समय और शीतका प्राबल्य था; लोगोंके जाये, तो उस कुएंमें उतरनेसे मनुष्यको मृत्यु दांत हिले जाते थे। कुलियोंने अपने डेरैके बीच में निश्चित है। गड्डा खोद कर कोयला जलाया। गड़े को चारो किसी छोटे कमरे में अधिक मनुष्यों के एक साथ ओर पास हो पास सब लोग सो गये। रात्रिके समय बैठने-पड़नेसे नाना प्रकारके रोग उत्पन्न होते हैं। बरफ़ पड़ने के कारण डेरेके सब दरवाजे बन्द हुए, यहां तक, कि सहसा मृत्य भी हो सकती है। हवा जानेको जगह कहीं भी न रहो। इसलिये कलकत्तेको कालकोठरी या उसके अन्धकूपका जलते हुए कोयलेके अङ्गाराम्ल विषसे प्रायः सब कुलो समाचार अधिकांश मनुष्य जानते हैं। सन् १७५७ ई० मर मिटे ; केवल दरवाजे के पास सोये हुए दो को २१वीं जूनवाली रात थी। मकान, मैदान, घाट कुली बड़े कष्टसे जीते बचे। विलायतमें अङ्गाराम्न बाट सब निस्तब्ध थे। कहीं हवा नहीं, पत्तातक हारा हो आजकल कुत्ते मारे जाते हैं। मनुष्य हिलता न था, और न मनुष्योंकी पदध्वनि हो दयाका सागर है। लाठोसे जीवहिंसा करने पर सुन पड़ती थी। पाताल फटा जाता और मारी बड़ा कष्ट होता है। आवश्यकता पड़नेसे हिंसा गर्मी के प्राण निकलता था। ऐसे ही समय नवाब करनेमें कोई क्षति नहीं, किन्तु उसमें मनुष्यत्वको सिराजुद्दौलाके कर्मचारियोंने १४६ मनुष्योंको पकड़ प्रकाश करना एकान्त कर्तव्य है। अतएव कुत्तोंको एक छोटी कालकोठरीमें कैद कर दिया। मारनेके निये अङ्गाराम्लसे भरे घरमें बन्द किया दूसरे दिन सवेरे उनमें केवल २३ मनुष्य जीवित जाता है। कोठरीमें पहुंचते ही पहले कुत्ते सो और