पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१७२

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अङ्गार 1 कुछ क्षण बाद मर जाते हैं। इस देशमे जाड़ेके अङ्गार और दो भाग हाइड्रोजन मिलाकर जो गैस दिनों कितने ही कोठरौके भीतर आग (olefiant gas) बनाई जाती, उसकी रोशनी दिन सुलगाकर रखते हैं। सूतिकागृहमें भी अंगार जैसी साफ होती है। तथा लकड़ियां जलाई जाती हैं। परन्तु इससे पद दवाओं में भी अङ्गार काम आता है। लकड़ी पदपर दुर्घटना होनेको सम्भावना है। सोनेके कमरे अथवा भेंड़ या बैलकी हड्डौ बन्द बरतनमें रखकर में नारङ्गो, आम आदि पक्के फल और न अधिक धीमी-धोमौ आंच लगाये। कुछ देर बाद ही फूल ही रखना चाहिये। इन सब पदार्थों से उससे कोयला तय्यार हो जाता है। इस कोयले- अङ्गाराम्ब निकलता, इसलिये पीड़ा और हठात को जल मिले हुए लवण-द्रावकमें (diluted मृत्यु संघटित हो सकती है। muriatic acid) भिजाकर रख छोड़ना चाहिये। ज्वालामुखो पहाड़ के पासको भूमिसे अङ्गाराम्ल इससे कोयलेका सब अपरिष्कृत द्रव्य निकल निकलता है। यवद्वीपमें उपास नामको एक उपत्यका जाता है। इसके बाद परिश्रुत जलमें कोयला धोनेसे है। वहां दिनरात मट्टीके भीतरसे अङ्गाराम्स निकला व्यवहार-योग्य बनता है। लकड़ीके अङ्गारसे हडडीका करता है। इसी तीक्ष्ण विषके प्रभावसे आस-पास अङ्गार अधिक उपयोगी है। ऐलोपैथौवाले डाकरों- घास भी नहीं जमतौ। उस भूमिसे बारह हाथ के मतसे यह वायु और अम्लको नष्ट करता है। इसको ऊपर उड़ता हुआ पक्षी गिरकर मर जाता है। मात्रा १० रत्तीसे ३० रत्तो तक है। रक्तामाशय बहुतसे मनुष्योंने इस स्थान पर कुत्ते फेंककर रोगमें आंत सड़कर दुर्गन्ध आने पर १॥ रत्तो मात्रामें

देखा है, कि वह १४ पलके भीतर ही मरते हैं। दिनको तीन-चार बार यह कोयला खिलाने और

अङ्गाराम्न श्वासयन्त्र के लिये विषके समान ; परन्तु मलद्वारमें इसको पिचकारी लगानेसे बड़ा उपकार जठराग्निके लिये अमृत जैसा है, इससे परिपाक होता है। अजीर्ण रोग, उदरामान और भोजनके बाद शक्ति बढ़ती है। इससे लोग सोडावाटर, लेमनेड अम्न होनेसे, कितने ही चिकित्सक अङ्गार खिलाते आदि बाष्पजल पौते हैं। सोडावाटर देखो। हैं। फोड़ा सड़कर दुर्गन्ध आनेसे नीचे लिखा प्रलेप अङ्गार और हाइड्रोजनके योगसे बहुतसे यौगिक बहुत ही फलदायक है-लकड़ीका कोयला आध पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इनमें जला-बाष्प (marsh-gas) छटांक, पावरोटी दो छटांक, अलसौको खरी डेढ़ प्रधान है। यह भाफ कोयलेको खानियों और अन्यान्य छटांक और साफ गर्म जल ढाई पाव, यह सब द्रव्य स्थानों में उत्पन्न होती है। खानिके भीतर अन्धकार अच्छी तरह मिलाकर फोड़ेपर चुपड़ना चाहिये। : रहने के कारण विना प्रकाश कुछ भी दिखाई नहीं काष्ठविष, अफीम, कुचला आदि खा लेनेपर देता ; परन्तु जहां यह भाफ उत्पन्न होती, उस अङ्गारके सेवनसे विष नष्ट हो जाता है। चिकित्सासे स्थानमें मशाल ले जानेके साथ ही आग लग जाती, पहले यह जान लेना चाहिये, कि कितना विष पेटमें जिससे कभी-कभी बड़ी मुश्किलमें पड़ना होता है। पहुंचा है। क्यों कि कितनो हो परोक्षासे मालूम इसीसे डेभी साहबने एक प्रकारको तारोंसे लपेटी हुआ, कि विषका दशगुण कोयला खानेसे उसकी 'लालटेन बनाई है, जिसमें कोई भय नहीं रहता। तेजोहानि होती है। कोयला खाने बाद पेटभर गर्म खाड़ी, गड, पुराने तालाब और दलदलमें यह बाष्प जल पीना चाहिये। जिनके मुंहसे दुर्गन्ध निकलता उत्पन्न होती है। भोतरसे जो भाफ़ फूटतो, हो, वह सरसोंवाले तेलके साथ सुपारीका कोयला उसका चिह्न बुलबुला जलके ऊपर दिखाई देता है। मिलाकर नित्यं दांत रगड़ा करें; थोड़े ही दिनमें पत्थरके कोयलेसे जो गैस तय्यार होती, वह भी इससे मुख परिष्कृत और पद्मगन्धयुक्त हो जायेगा। अङ्गार और हाइड्रोजनसे मिली रहती है। एक भाग होमिओपैथिक चिकित्सामें काष्ठाङ्गार अमृतके

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