पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१७५

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किया हुआ। अङ्गिरखत्-अङ्गुल अधिकार लिया और अङ्गिरा वृहस्पतिक नामसे तर्जनौमें चांदी और अनामिका अङ्गुलिमें सोंनेको अग्नि के पुत्र हुए। ( वनपर्व २१६, २१७, २१८ अध्याथः ।) अंगूठी पहनना चाहिये। विशुद्ध पारेको अंगूठी अथर्वन् और अथर्वाङ्गिरस शब्द देखो। भी कदाचित् रुग्न व्यक्तिको विशेष उपकार करती अङ्गिरस्वत् (सं० पु०) अङ्गिरस्-मतुप्। (वत् )। है। इसके प्रस्तुत करनेका कौशल पारद शब्दमै देखी। अङ्गिरा अग्निः सहायत्वेन विद्यत अस्य। वायु, हवा । इस देशमें अनेक दिनोंसे अंगूठी पहनेकी प्रथा अङ्गी-अडिन् देखो। चली आती है। हस्तिनापुरमें द्रोणाचार्यने अपनी अङ्गीकार (सं० पु०) अङ्ग-चि-क-घञ्। हाम्वस्ति योग अंगूठी कूपके भीतर फेंक ईषिका द्वारा निकाली थी। सम्पद्यकर्तरि चिः। पा ५:४५०। अभूततद्भाव इति वक्तव्यम् । (कात्या० "बीटाच्च मुद्रिकाञ्च व ह्यहमेतदपि इयम्।” (महाभारत ११३१।२४1) - वार्तिक ).१ स्वीकार। २ प्रतिज्ञा । ३ ग्रहण । मञ्जूर, वाल्मीकि समयमें भी नामाशित अंगूठी पहननेको कबूल। प्रथा प्रचलित थी। यथा,-. अङ्गीकृत (सं० त्रि०) अङ्ग-क त। स्वीकृत, मञ्जूर "वानरोऽहं महाभाग दूतो रामस्य धीमतः । रामनामादितं चेदं पश्य दैव्यङ्कालीयकम् ॥" ( रामायण ५।३६।२१) अङ्गीकृति (सं० स्त्री०) स्वीकृति, मञ्जू. री 'महाभागे ! मैं धीमान् रामका दूत अङ्गु (सं० पु०) अगि-उन्। इदितो नुम्। हस्त, उनको नामाशित यह अंगूठी देख लीजिये।' हाथ। शकुन्तलामें भी सौल अंगूठीका प्रमाण मिलता है- अङ्गुर, अङ्गरौ (सं० स्त्री०) अङ्ग-उलि । बालमूललवल “नाममुद्राक्षराख्यनुवाच्य परस्परमवलोकयतः ।" 'अंगूठीमें राजाका महुलौनां वा लौ रत्वमापद्यते । उण १।२६ । १ उंगली। २ अंगूठी, नाम देख सखियां एक-दूसरेका मुंह ताकने लगीं।' मुंदरी। सोने, चांदी, पीतल और कांसेसे अंगूठी विवाहके समय हम-लोगोंमें जैसे वरकन्याके माल्य- निर्मित होती है। धनी लोग सोनेकी अंगूठीको परिवर्तनको प्रथा है, अंगरेज वैसे ही हाथको होरा प्रभृति बहुमूल्य रत्नसे जड़ा परिधान करते अंगूठीको परिवर्तन करते हैं। उनके मतमें, अपने हैं। अनामिका अङ्गुलिमें सब लोग यह अलङ्कार हाथको अंगूठी निकाल स्त्रीके हाथमें पहानानेसे पहनते हैं, किन्तु जिनका ऐश्वर्य अनेक होता, खामोको उसे प्राण समर्पण करना समझा जाता है। उन सब लोगोंके दोनो हाथोंकी कनिष्ठा और एक दूसरी भी बात है, अनामिका अनामिका अङ्गुलियोंमें दो-दो अंगूठी पड़ो रहती हैं। हृदयका घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। इतर लोग झूठे नगीनेसे जड़ी अंगूठी हाथ और अनामिका अङ्गुलिमें अंगूठी पहना देनेसे हृदयके - पैरको अङ्गुलिमें पहना करते हैं। वातशिराको साथ गाढ़ प्रेम हो जाता है। अंगरेजोंने यह शिक्षा पौड़ा होनेसे बहुलोग अष्टधातुको अंगूठौको धारण यहूदियोंसे पाई है। करते हैं। अनेकोंका विश्वास है, कि पैरके अंगूठेमें अङ्गुरौय (सं० क्लो०) अङ्गुरि-छ। जिवामूलागुलेशः । लोहे या अन्य किसी धातुको अंगूठी पहननेसे जल पा ४॥३॥६२। अङ्गुरौ भवम्। अंगूठी, अंगुश्तरी। दोषको पौड़ा नहीं लगती। पूर्व कालके ऋषिमुनि अङ्गुलिका भूषण, उंगलीका गहना। कुशको अंगूठी पहनते थे। इसीसे अद्यावधि दैव- अङ्गुरीयक (सं० पु०-क्लो०) अङ्गुरीय-कन् स्वार्थे । क्रियाके समय हाथमें कुशको अंगूठी पहनना पड़तौ अङ्गलिका भूषण, अंगूठौ। है। विना पहने जल शुद्ध नहीं होता। बङ्गालके अङ्गुल (सं० पु०) अङ्ग-उल। अङ्गति गच्छति ग्रहणाय ब्राह्मण पण्डित अष्टधातुको अंगूठी पहनते हैं। अंगूठी इति। १ हस्तपदको शाखा, ओंगलौ। २ वात्स्यायन पहननेको व्यवस्था यह है,- "तर्जनौ रौप्यसंयुक्ता हेमयुक्ता त्वनामिका।” (स्मृति) अङ्गुलं-उड़ीसेका एक राज्य। पहले यह करद अङ्गलिसे इसी कारण, मुनि।