पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१७६

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गया। राज्य था, अब ब्रटिश राज्यके शासनान्तर्भुत हो यह अक्षा २०° १३ से २१० १० उ, और द्राधि ८३° ५० से ८५° ४३ पू०के मध्यमें अवस्थित है। इसका आयतन ८८१ वर्ग मील है। जनसंख्या एक लाखसे अधिक होगी। इसके उत्तरमें मध्य- प्रदेशस्थ राइराखोल और बामड़ा राज्य, पूर्वमें तालचेर, ढेंकानल और हिंदोल राज्य, दक्षिणमें नरसिंहपुर, तथा दसपना राज्य और महानदी, और पश्चिममें आठमल्लिक राज्य अवस्थित है। राज्यके दक्षिणांश भिन्न समस्त स्थान समतल है। केवल दक्षिणांश पार्वत्य देख पड़ता है। यह स्थान पहले कन्ध नामक असभ्य जातिके अधिकारमें था। अंगरेजोंने जैसे बाणिज्य करने आ भारतको अधिकार किया, किसी पुरो-यात्री राजपूतने वैसे ही कन्धराजसे यह राज्य ले लिया था। इस स्थानके भूतपूर्व राजा सन् १८४७ ई० में अंगरेज-राजके प्रति अवाध्यताको आचरण करने और गवर्नमेण्टके विरुद्ध विद्रोही होनेसे यह राज्य गवर्नमेण्टने अपना बनाया। राजाका परिवारवर्ग गवर्नमेण्टसे वृत्ति पाता है। राज्य की अवस्था क्रमसे उन्नत और लोकसंख्या वड़ित हो रही है। इस राज्यमें कोयले और लोहेको खानि वर्तमान है। प्रसिद्ध तालचेर नामक कोयलेकी खानिका अनेकांश इसी राज्य के अन्तर्गत है। राज्यके प्रधान नगरका नाम भी अङ्गुल है। भूतपूर्व राजाका परिवारवर्ग इस नगरमें रहता है। अङ्गलि (स० स्त्री०) अङ्ग उलि । अङ्गेलि । उण ४।२। १ अङ्ग प्रत, उंगली। २ गजकर्णिका वृक्ष। ३गज- शुण्डाग्र, हाथीको सूडवाली नोक । एक अङ्गुलिका परिमाण ८ यव है। २४ अङ्गुलि- में हाथ होता है। जपादिको संख्या गिननेके लिये वैदिक और तान्त्रिक मतसे भिन्न-भिन्न अङ्गुलिमें कर- विन्यास करनेको व्यवस्था है। वैदिक मन्त्रको जप करते समय दक्षिण हस्तको अनामिकाके बीच पर्व में पहले बृद्धाङ्गुष्ठ रख जपको आरम्भ करे। इसके बाद कनिष्ठाके मूलसे सकल अङ्गुलिके ऊपरी पर्व हो- कर तर्जनौके मूल पर्यन्त जप कर जाये । एत- ४३ द्वारा दश बार जप करना पड़ता है। सनत्कुमार- संहितामें इसका यह प्रमाण लिखा है,- "अनामामध्यमारभ्य कनिष्ठादित एव च । तर्जनीमूलपर्यन्तं दशपर्वमु संजपेत् ॥" एकशत आठबार जप करनेको पूर्वोक्त नियमानु- सार दश-दश पर्व द्वारा पहले एकशत जप समाप्त करे। इसके बाद अनामिकाके मूलसे सकल अङ्गलिके अग्रभाग होकर तर्जनौके मध्यपर्व पर्यन्त आठ संख्या गिने। इससे एकशत आठ बार जप हो जाता है। तान्त्रिक जपका नियम यह है, कि अनामिका- के मध्यपर्व से संख्याको आरम्भ करे। पीछे इसके मूल, कनिष्ठाके मूलसे समस्त पर्व, अनामिकाके अग्रभाग और मध्यमाके ऊपरी पर्वसे नीचे उतर तर्जनौके मूलमें जप समाप्त कर दे। इससे दश बार जप करना पड़ता है। तर्जनीके अग्र और मध्यपर्व में कभी संख्या न रखे। इससे पाप लग जाता है। जैसे,- "अनामिकाबर्थ पर्व कनिष्ठापि विपर्विका । मध्यमायाश्च वितयं वजनीमूलपर्वणि ॥ तजन्यग्रे तथा मध्ये यो नपेत् स तु पापकृत्।" एकशत आठ बार जप करनेको प्रथम पूर्वोक्त नियमानुसार एकशत बार जप समाप्त करे। इसके बाद अनामिकाके मूलसे कनिष्ठाके समस्त पर्व और अनामिका और मध्यमाके अग्रभागसे होकर मध्य- माके मूलमें संख्याको समाप्त कर दे। इससे आठ बार जप करना पड़ता है। प्रमाण देखिये- "अनामामूलमारभ्य प्रादक्षिण्यक्रमेण च । मध्यमामूलपर्यन्तं जपेदष्टम् पर्वम् ॥" हमारे धर्मशास्त्रको बात-बातमें सकल कार्यको व्यवस्था वर्तमान है। शास्त्रकारोंने उपदेश दिया है- "दृष्टको लोष्ट्रपाषाणरितराङ्ग लिभिस्तथा । -त्यक्त्वा ह्यनामिकाङ्गुठौ वर्जयेहन्तधावनम् ॥" ईटको सुखी, ढेले और पत्थर और अनामिका और अङ्गुष्ठ भिन्न अन्य अङ्गलिसे दांत न रगड़े। हमारे देशको स्त्री लज्जाभरसे अधोमुखी होने-