पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१७७

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१७० अङ्ग लि 381 BDODAN is DIE 000 FOCSAN 3 पर प्रायः अङ्ग लिसे मट्टी खोदा करती हैं। हिन्दुः। घुसनेसे वहांको अस्थि सड़ जाती है। पेशी ही स्थानी स्त्री-परिचयका यह एक प्रधान चित्र बन शरीरका बल है, मांसपेशीसे हमारी अङ्गलि और गया है। वैद्य कहते हैं-रोगीके निकटसे दूत श्रा पहुंचा जुड़ा हुआ है, इससे हम हाथमें इतना बल यद्यपि चिकित्सकके सम्मुख बात करते-करते अङ्ग देखते हैं। अङ्गुलिमें ऐसौ कितनी ही मांसपेशी हैं, लिसे मट्टी काटा करता, तथापि उस रोगीको पीड़ा यद्वारा वह घुमाई-फिराई जा सकती हैं। इसका विवरण हस्त शब्दमें देखो। प्रायः उत्कट हो जाती है। अङ्गल हस्तपदको शाखा और अग्रभाग है। मनुष्यके दोनो हाथमें पांच-पांचके हिसाबसे दश अङ्गलि हैं, पैरमें भी इसीतरह दश अङ्गलि होती हैं। हाथमें अङ्गलि रहनेके कारण हम इच्छा करनेसे किसी द्रव्यको ग्रहण कर पेड़से एक-एक कर फूल तोड़ ; मट्टीसे चवन्नी, तिल, सरसों प्रभृति क्षुद्र-क्षुद्र द्रव्य चुन सकते हैं। अङ्गलि न रहनेसे २, निम्न बाहुवाले अ'गूठेके दिक्को अस्थिका शेषभाग। २, इस और मैं अनेक विषयमें हम अकर्मण्य हो जाते। अङ्गलिकै दिक्की अस्थिका शेषभाग। ७, अनुतरि अर्थात् नौका जैसी पैरको अङ्ग लिसे यह सब काम नहीं निकलते । कुव ज अस्थि (Seaphoid) : 8, अर्द्ध चन्द्राकार अस्थि (Semi-lumar)। अच्छी तरहसे खड़े होने और स्वच्छन्द घूमनेके लिये ., फलकास्थि (Cuneiform) अर्थात् देखने में प्रायः तौरके फलक जैसी। विधाताने हमारे पैर में भी अङ्गलि बनाई हैं। पैरमें ७, चणकास्थि (Pisiform) अर्थात् चने और मटर जैसी गोल अङ्गलि न रहनेसे चलते समय हम लड़खड़ा जाते। और क्षुद्र । १, विषम चतुर्भु जास्थि (Trapezium) अर्थात् इसके चारी पाचवाले कोने समान्तराल नहीं होते। ., अद्ध सम चतुर्भुजास्थि । (Trapezoid)1, बृहदस्थि (Magnum) 11., वक्रास्थि (Onciform) अर्थात् कटियेकी तरह टेढ़ी । , नौके पहुचेको अस्यिवेणी । १२, अङ्ग लिके पर्ववाली प्रथम श्रेणीको अस्थि । ७ उपरोक्त द्वितीय श्रेणी। 28, उपरोक्त तृतीय श्रेणी, अ, बद्धाङ्गष्ट । जा, तज नी। ३, मध्यमा। या, अनामिका । ॐ, कनिष्ठा । ., कन्धेसे कुहनीतक ऊपरी बाहुको अस्थि ( Humors)। २, कुहनीसे पहुं'चेतक निम्न बाहुवाले बड़े अंगूठेकै दिकको हडडी (Radins)। ७. जिस ओर बड़ी अङ्ग लिके दिक्की हडडी (Ulna) है। इन दोनो अस्थि के अग्रभागमें ऊई मणिबन्ध अर्थात् ऊपरी पहुँचेकी हडडी (Carpal bone) है। इसके बाद निम्न मणिबन्ध अर्थात् नोचेके पर'चेकी हड्डी (Meta-carpal bone) अस्थि है। इसके बाद अङ्ग लिक पर्वको अस्थि (Phalanx) अस्थि, मांस, पेशी, स्नायु, शिरा और नाड़ीसे अङ्गलि गठित है। प्रत्येक हाथ और पैरको अङ्ग लि- में चौदह हडडी होती हैं। जैसे-प्रत्येक कनिष्ठा, अनामिका, मध्यमा और तर्जनीमें तीन अस्थि वर्तमान हम अगूठे की ओर हाथ घुमाकर अङ्ग लि प्रभृति ऊपर उठा और हैं। अंगूठे में दो ही पाई जाती हैं। अङ्गुलिको उगुलियोंकी और हाथ घुमा अङ्गलि प्रभृति चित कर सकते हैं। प्रत्येक अस्थिको हम पर्व कहते हैं। अङ्गुलिको अस्थि उंगलियों की ओर हाथ घुमाते समय अधिक जोर देना पड़ता, इसी परस्पर पेशीसूत्रसे गुंथी हैं। अस्थिके जोड़में हवा कारण हम बिना यथेष्ट बल लगाये कल नहीं चला सकते। अंगूठ की 1