पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८

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। - अंशुक-अशुधर पंशुक (स० पु.) अंशु-कन् । १ वस्त्र, कपड़ा। उज्ज्वल रहता था। उसी अंशके शेषमें कौटिल्य २ पतला कपड़ा। ३ उत्तरीय वस्त्र । ४ रेशमी कपड़ा। कहते हैं, इसीमें काशी और पौण्डदेशके क्षौमको ५ उपरना। ६ दुपट्टा । ७ ओढ़नी। ८ तेजपात । भी बात कह दी गयी। इससे समझ पड़ता, कि शिशुपालवध-टीकोइत शब्दार्णव अभिधानमें बङ्गालमें ही बकलेका सबसे अच्छा कपड़ा हाता लिखा हैं:- और 'टुकूल' केवल बङ्गालमें ही बनता था। बङ्गालके "अ'शुकं वस्त्रमावे स्वात् परिधानोत्तरौययोः ।" दुकूल वा अशुकका आदर सुदूर बबिलन और इसीतरह परिधेय एवं उत्तरीय वस्त्र अंशुक मिश्रमें भी बहुत होते रहा। शब्दमें निर्दिष्ट होते भी मेदिनौकरने अशुक शब्दसे उस समय भारतीय वस्त्रका व्यवसाय जगविख्यात सूक्ष्म वस्त्र मात्र का अर्थ निकाला है- रहा। हमारे राजा-महाराज भी यथेष्ट उत्साह प्रदान "अशुक सूक्ष्मवाससि।" करते ओर कपास, रेशम या पश्मसे सूत तैयार मलिन नामक सूक्ष्मवस्त्र पहले अंशुक ही नामसे करनेको लोगोंके घर में यथेष्ट व्यवस्था रखते थे। परिचित रहा। इसी मस्लिन्के लिये प्राच्य भारतने राजकीय नाना विभागमें सूविभाग भी सम्मिलित प्रतीय सभ्य-जगत्में विशेष प्रतिष्ठा पायौ थी। रहा। चाणक्यक अर्थशास्त्र में मालम पड़ता, कि बङ्गालमें राजाको ओरसे कोई सूत्राध्यक्ष नियुक्त किया सन् ई०से तीन-चार सौ वर्ष पहले अंशक ख ब उपजते जाता था। उसके तत्त्वावधानमें विभिन्न व्यक्ति सूत्र, रहा। अंशुकके बहुत अच्छे कपड़ेको पत्रोण' अर्थात वस्त्र, रज्जु प्रभृति बनाते रहे। ऊर्णा, वल्क, कार्पास, पत्तीका पश्म कहते थे। कौड़ा पत्ती खाकर जो तूल, शन और क्षौम इत्यादि विभिन्न जातीय वस्त्रादि- पश्म निकाले, उसी पश्मका कपड़ा ‘पत्रोण'कहायेगा। का सूत्र तैयार करनेका खासा प्रबन्ध होता था। पत्रोर्ण या रेशम मगध, पौण्ड्रदेश और सौवर्णकुड्य तीन विधवा अन्यङ्गा, कन्या, प्रवजिता, दण्डातिकारिणी, स्थानमें होते रहा। नागवृक्ष (शहतूत ), लिकुच, रूपाजीवा, माका, वृहराजदामी और देवदासी वकुल और वट वृक्षमें यह कौड़ा निकलता था। प्रभृति स्त्री विभिन्न प्रकारसे सूत कातते रही। नागवृक्षक कौड़ेसे पीला, लिकुचके कोड़ेसे गेह-जैसा बारीक, मोटे और मंझोले सूतके मुवाफिक सनखाह वकुलके कौड़ेसे सादा रेशम पैदा होते रहा। दी जाती थी। इसका भी परिमाण निर्दिष्ट रहा,- इनमें सौवर्णकुछ अर्थात् वीरभूम और मुर्शिदाबादका किस तिथिको कितना काम होना चाहिये। किन्तु सूत मक्खन-जैसा रेशम सबसे अच्छा था। पीछे इस देशमें कम उतरनेसे तनखाह भी कम मिलती थी। जो लोग चौनांशुक आने लगा। क्षौम, दुकूल और रूचोका कपड़ा बुनते थे, उन्हें वस्त्र, पहले बकलेसे धागा निकाल कपड़ा बनाते ; शण, आस्तरण और आवरण लेते सय गन्धमाल्यादि उपहार पाट-यहां तक कि तिलके वृक्षसे भी धागा उतारा दे उनकी संवईना को जाते रही। (कीटोनीय अर्थशास्त्र) जाता था। पूर्व समय उससे अच्छा कपड़ा बनते अशुधर (सं० पु.) अंशो: धरः; -अच्. ६-तत्। रहा। बकलेसे बननेवाला कपड़ा क्षौम' और उत् २ वेगधर। (स्त्री०) अंशधरा। शुधर, गंगाधर, कष्ट क्षौम 'दुकूल' कहाता था। क्षौमको पवित्र बता भूधर इत्यादि शब्द उपपदसे नहीं, किन्तु षष्ठी लोग बड़े आदरसे पहनते रहे। तत्पुरुष समाससे बने हैं। पाणिनिने लिखा है। कौटिल्य अर्थशास्त्रके मतसे बङ्गालमें ही बकलेका कर्मण्यण् । शरा उपपदसमासमें कर्मपद पर कपड़ा बुना जाता था। बङ्गालका खेत और निग्ध धातुके उत्तर अण् प्रत्यय हो। इसका भट्टोजिदीक्षितने दुकूल देखते ही आंख ठण्डौ पड़ जाते रहो। पोण्ड एक आपत्ति उठाकर समाधान किया है-'कथं तहि देशमें जो दुकूल होता, वह श्यामवर्ण और मणि-जैसा गङ्गाधरभूधरादयः? कम्मणः शेषत्वविवक्षायां भविष्यन्ति i