पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८०

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लि-मुद् जेवर। अङ्ग लिपञ्चक–अङ्गीय १७३ दरजो कपड़ा सोते समय अनामिकामें इसलिये अङ्ग लौपञ्चक (सं० क्लो०) अङ्गलौनां पञ्चकं पञ्चसंख्या । प्रहनते जिससे सूई उंगलियों में न चुभे। अङ्ग प्रताना । संख्यायाः सज्ञासङ्घसूत्राध्ययनेषु। पा ५११५८। पांचो उंगलो, अङ्ग लिपञ्चक (सं०पु०) हस्तको पञ्ज अङ्ग लि, हाथको जिन्हें अङ्गुष्ठ, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा पांचो उंगली। कहते हैं। अङ्गुलिपर्व (सं० पु०) उंगलौका पोर या जोड़। अङ्गलोय (सं० क्लो०) अङ्गुली-छ। अंगूठी, अङ्गश्तरी । अङ्ग लिमुद्रा, अङ्ग लिमुद्रिका (सं० स्त्री०) अङ्ग, अङ्गा रोय देखो! रा-क, ६-तत् । नामानित अङ्गरीय, नाम खोदी हुई अङ्गुलोसम्भूत (सं० वि०) अङ्गुलिजात, उगलीसे पैदा ; अंगूठी (Seal-ring) । २ अङ्कित भूषण। खोदा हुआ नख, नाखून। अङ्गुल्यादि-अङ्गुलि प्रभृति कतिपय शब्द । अङ्ग लिमुख (सं० लो०) उंगलौका अग्रभाग। अङ्गुल्यादेश (सं० पु०) १ उंगली द्वारा बातचीत । अङ्ग लिमोटन (सं० क्लो०) अङ्गुल्याः मोटनं मर्दनं यत्र, २ सङ्केत, इशारा। बहुव्री०। उंगलौका फोड़ना या चिटकाना। अङ्गुल्यानिर्देश (सं० पु०) १ उंगलियोंका उठना। अङ्गुलिवेष्टन (स० क्लो०) दस्ताना, उंगली लपेटनका २ कलङ्क, बदनामी। अङ्गुष्ठ (सं० पु०) अङ्गो पाणों तिष्ठतौति ; अङ्ग स्था-क, वस्त्र। अङ्ग लिषन (सं० पु०) उंगलीका साथ । ६-तत् ७मी वा। अम्बाम्बगोभूमिसव्यापरिविकुशकुशङ क्वङ्ग मञ्जिपुञ्जि- अङ्ग लिषङ्गा (सं० स्त्री०) अङ्ग लौ सङ्गः यस्याः, परमेवहिदि व्याग्निभ्यः स्थः। पा ८३॥२७॥ १ वृद्धाङ्गलि, अंगूठा । बहुव्री० । समासेऽङ्गुलः सङ्गः । पा ८३८० । अङ्ग लिमें लेपन २ पैरका बुड्डा अङ्गुल।३ अङ्गल परिमाण । (कठ उ० ४।१२) करनेका यववाला मांड। उंगलीपर लेप किया जाने- अङ्गुष्ठमात्र (सं० त्रि०) अङ्गुष्ठ-मात्रच् परिमाणार्थे । वाला यवका मांड। अङ्गुष्ठवाले बृहत् पर्वके परिमित, अंगूठेको बड़ी गांठ- अङ्गलिसंज्ञा (सं० स्त्री०) अङ्ग ल्या संज्ञा सङ्केतज्ञापनम् । के बराबर। अङ्गलपरिमाण । (श्वेत० उ० ३।१३ ) अङ्गलिद्वारा इङ्गित, अङ्गलिसङ्केत, उंगलौका इशारा। अङ्गुष्ठय (सं• त्रि०) अङ्ग ४ सम्पर्कीय। (काल्या० यौ० ७।२।८) अङ्ग लिसन्देश (सं० पु०) अङ्ग लि-सम्-दिश-घञ् भावे । अङ्ग ष (सं० पु०) अगि गतौ-उषन्। १ नकुल, अङ्गलि ध्वनि द्वारा भाव-प्रकाश, उंगली की आवाजसे नेवला। २ वाण, तौर। मतलबका इजहार। २ अङ्ग लिके शब्दसे संज्ञादान, अङ्गेष्ठा (वै० स्त्री०) अङ्ग स्थिता। (अथर्व० ६।११।१ ) उंगलौकी आवाज से बातचीत । ३ चुटकौसे संवाद- अङ्ग्य (वै० त्रि०) अङ्ग भव। (ऋक् १।१९१७ ) ज्ञापन, चुटकौसे खबर देना। अडीय, आङ्ग-(कनोजी) सन् ई० के १७वें शताब्दके अङ्गुलिसम्भूत (सं० त्रि०) अङ्गलि-सम्-भू-क्त, ७-तत्। जनक महाबल पराक्रान्त समुद्रके डाकू। सन् अङ्गुल्यां सम्भूतः। अङ्गुलिसे जात, उगलीसे पैदा १६८० से १८४० ई०-तक आने डाकुओंका पश्चिम हुआ। नख, नाखून। समुद्रमें बड़ा उपद्रव रहा। सन् १६८८ ई० में कनोजीने अङ्गुलिस्फोटन (सं० क्लौ०) अङ्गुल्योः स्फोटनं यत्र, बम्बईके पास कुलाबेमें अपना अडडा स्थापित किया बहुव्री। उंगलीका चिटकाना या फोड़ना। और सन् १७१३ ई० में जयनगरपर अपनी विजय- आवश्यक न होते भी हाथको स्वस्तिके लिये अनेक वैजयन्ती फहराई सन् १७१७ ई० में इन्होंने अंग- उंगली चिटकाया करते हैं। हिन्दुस्थानमें स्त्रियां रेजोंके जहाज. लूटे, जिसके बदले अंगरेज, इनके किसौको अभिसम्पात करते समय उंगली चिटका- विजयदुर्गपर टूट पड़े। किन्तु उन्हें हार मान पीछे कर गालियां देती हैं। लौटना हुआ। कोई दो बार इन्हें अंगरेजों और अङ्गली (सं० स्त्री०) अङ्गुलि-डीप् । उंगली, अङ्गश्त । पोर्तगीज़ों को सम्मिलित सेनासे युद्ध करना पड़ा था। ४४