पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८१

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१७४ अङ्घ-अच इनकी मृत्यु सन् १७३१० में हुई। आवेने कोई हल कहाते हैं। संस्कृत भाषामें अच् वर्ण और हल् एक शताब्दतक मलाबरके समुद्रतटको लूटा मारा वर्ण पृथक्-पृथक् गृहीत हुए हैं। अन्य भाषामें ऐसा और भीतरी शहरोंमें भी यह घुस जाते रहे। नहीं ; सब वर्ण एक ही साथ लिखे हैं। अब पौछे महाराष्ट्रदेशके सेना-नायक बन सुवर्णदुर्गके सन्देह यही है, कि मनुष्यने पहले किस वर्ण की शासनकर्ता हुए। किन्तु अधिक दिन इन्हें दूसरेकी सृष्टि की थी-अच् या हल् वर्ण की। पहले सुनते नौकरो न करना पड़ी। इन्होंने शीघ्र ही स्वाधीन हो हो यह प्रश्न कुछ कठिन मालूम होता ; किन्तु महाराष्ट्रोंको समस्त रणतरीको अधिकार और कुछ सोचने-विचारनेसे इस पुरातन बातका कितना दाक्षिणात्यमें अपने आधिपत्यको स्थापन किया। हो मर्म समझा जा सकता है। प्रथम-प्रथम मनुष्य अंगरेज़, फ्रान्सीसी और डेनमार्कवाले इनके प्रतापसे लिखना न जानता, बान कर सकता था ; वह भी शशव्यस्त हो गये थे। यह इन सकल विदेशियोंके फिर दीर्घच्छन्दमें नहीं। दो वर्ण एक साथ मिला जहाज लूट लेते रहे। इनके उत्तराधिकारीका देना ही यथेष्ट होता था। दो अक्षरमें एक-एक बात नाम तुलजी आझे था। सन् १७५४ ई० में बम्बई कही जाती थी और उसका भी शेष वर्ण हलन्त गवर्नमेण्ट इनसे भी परास्त हो गई थी। सन् १७५६ रहता था। असभ्य आन्दामानवासी इस बातका प्रमाण ई में अंगरेजोंने इनका कोई पन्द्रह लाख रुपया लूटा। हैं। वह किसी तरह कुछ-कुछ मनका भाव व्यक्त पोछे जैम्स साहबने सुवर्णदुर्गको अधिकार किया। कर सकते हैं; किन्तु अधिक बोलनको उन्हें अङ्घ (वै लो०) पाप। ( वाज० स० ४।२७ महीधर ) सामर्थ्य नहीं। अङ्घस् (सं० क्लो०) अघि गतौ असुन् । पाप, इज़ाब । मनुष्यने पहले बात करना सीखा था। किन्तु अङ्घारि (सं० पु०) अङ्घस-ऋ-इन्। पृषोदरादित्वात् दूरके लोगोंसे कथोपकथन नहीं चलता-पत्र लिखना साधु, ६-तत्। १ दीप्ति, वह चीज जो खूब चमके। पड़ता है। पत्र लिखनेको अक्षरादि आवश्यक हैं। २ पापनाशक । ३ दिव्य सोमजल । (वाज० स० ४।१७) जब अक्षरकी सृष्टि हुई न थी, तब लोग कैसे पत्र अङ्घि, अहि (स० पु०) अघि गतौ इन् करणे । लिखते थे? फिनिशियाके लोग किसोको मनको वङ क्यादयथ। उण ८१६६।२१ पाद, पैर। २ वृक्षमूल, बात लिखकर भेजनेके लिये पेड़के पत्ते या बकलेपर दरखको जड़। ३ छन्दका चतुर्थ भाग, शेरका कोई चित्र बना देते थे। गो बतानेको गोका चौथा हिस्सा। चित्र बनाकर भेजा जाता, दर्शनशक्ति समझानेको अजिप (स० पु०) अङ्गिना पिवतीति, अङ्घि-पा-क। चक्षु अङ्कित करते थे। प्राचीन फिनिशियावासि- १वृक्ष, दरख्न । २ लता, बैल । योंके पत्र लिखनेका ऐसा हो सङ्कत था। क्रमसे अङ्घि पर्णी, अङ्घि, पर्णिका (स० स्त्री०) चकोड़, और भी संक्षेपमें पत्रलिखनेके लिये समस्त गो न चकोड़िया। अङ्कित कर केवल उसका शिर या शृङ्ग बना दिया अङ्घिवल्लिका, अधिवल्ली (स० स्त्री०) चकोड़ वृक्ष, जाता था। इसके बाद और भी सुविधा ढूंढते-ढूंढते चकोड़िया। अक्षरकी सृष्टि हुई। अनेक अनुमान करते हैं, अच्–अविस्पष्ट कथा, गति। भा०-उ०, सेट् । कि वर्तमान एक-एक अक्षरका नाम एक-एक वस्तुके अच्-भा०प०, सक० सेट् । नामपर रखा गया है। हीब्रू भाषाके प्रथम अक्षरका अच्-१ समस्त स्वर-वर्ण को सज्ञा । २ पाणिनि गृहीत नाम अलिफ है, जिससे सांड समझा जाता है। कृदन्त प्रभृतिको अच् प्रत्यय । दूसरे एक अक्षर गिमेलका अर्थ ऊंट है। मौम्से अ, इ, उ, ऋ, ल, ए, ऐ, ओ, औ-यही कई जलका बोध होता है। फ़िनिशियावासौ और यहूदी एक वर्ण अच् हैं। बाकी क, ख प्रभृति समस्त वर्ण इस तरह- लहर-जैसा चिह्न बना जलको