पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८५

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अच इ, उ, ए, ऐ, ओ, औ प्रभृति स्वरवर्णो की उत्पत्ति | स्वरवर्ण उच्चारित होंगे। ओकारका उच्चारण करते हुई है। जैसे नाना प्रकारके राग बजानेको वाद्य समय जिह्वाका निम्नस्थान उठा अलिजिह्वा और यन्त्रों में कितने ही रोदे और तार लगा उनके जिह्वाका मध्यवर्ती स्थान खाली कर देना पड़ता है। नाना स्थान विवेचनापूर्वक दबाने पड़ते, फिर फिर इकारके उच्चारण करते समय जिह्वाका अग्रभाग नाना प्रकारके स्वर निकलते ; वैसे ही स्वर और उच्च कर जिह्वा और तालुका मध्यवर्ती स्थान खाली शब्दोंको उच्चारण करने के लिये अनेक प्रकारके करना होता है। मोटो बात यह है, कि कण्ठसे वर्ण आवश्यक होते हैं। इसी कारण सङ्गीतविद्या ओठ पर्यन्त समस्त वायुपथ उत्तम रूपमें खोल और भाषाको उन्नतिके साथ नानाविध वर्णों को देनेपर आकार निकलता है। सुतरां स्पर्शादि प्रति- उत्पत्ति हुई है। स्वरवर्णसे हो स्वर निकलता बन्ध भिन्न जिस वर्ण का उच्चारण किया जाता, वही है, हल्वर्णमें कोई स्वर नहीं । संस्कृत और अच् या स्वरवर्ण है। कोई शब्दन्द्रिय इधर-उधर हिन्दीमें यद्यपि इतने अधिक स्वरवर्ण विद्यमान घुमाने-फिराने और सुखके भीतर अल्प या अधिक हैं, तथापि हम इस समय दो स्वरवर्णों के अभावको प्रतिबन्ध होनेसे हल् वर्ण उच्चारित होता है। इसी- अनुभव करते हैं। एक अकार, उकार और औकार से आकार जैसा विशुद्ध स्वर कोई भी नहीं। और एक आकार और इकारका मध्यवर्ती है। क्योंकि इकारका उच्चारण करते समय जिह्वा खड़ी जैसे,—भजाई और भ'या। इस जगह भजाई, हो प्रायः तालुको स्पर्श करती है। उकार निकाल- भोजाई या भौजाई कुछ भी लिखनेसे ठीक उच्चारण नेमें ओष्ठ कितना ही बन्द रखना चाहिये। इसलिये नहीं मिलता। किन्तु यह समझा जा सकता है, आकार हो आदिस्वर है। दूसरे अच् वर्ण आकारके कि स्वरवर्ण के अभावमें औका उच्चारण नहीं होता, रूपान्तर मात्र होते हैं। किसी विन्दुको दोनो ओर वह अउ एवं औकारका मध्यवर्ती कोई नये उच्चारण रेखायें खींचनेसे आकारका रूपान्तर स्पष्ट समझा जा का स्वरवर्ण है। पुनश्च भया शब्द भिया, भैया इस सकता है। यथा- प्रकारसे लिखनेपर ठोक उच्चारित नहीं होता; अथच समझा जा सकता है, कि आकार और इकार का मध्यवर्ती कोई नूतन स्वरवर्ण होना चाहिये ; उसके होनेसे यह सकल शब्द ठीक लिखे जा सकते हैं। इसी तरह मुखका स्वरवैषम्य होनेसे एक-एक वर्ण का अभाव समझा जा सकता है। अभाव मालूम कर सकनेसे हो उसे पूर्ण करनेके लिये नूतन वर्ण- को सृष्टि करनी पड़ती है। फिनिशिया भाषामें एक ओर आकारसे क्रमश: मुख सङ्गुचित करते अलिफ़ तालुसे उच्चारित होता, जो हल् वर्ण जानेपर प्रथमतः एकार और इसके बाद इकार जैसा है। किन्तु यूनानी भाषामें अलिफ़ विशुद्ध उच्चारित होता है। इकारके बाद बिना ताल्वादिको स्वरवर्ण है। स्वरवर्णों में प्रथमतः आकारको सृष्टि किये अन्य स्वरवर्ण फिर नहीं ही सकल देशोंके बीच हुई थी। सम्पूर्ण रूपसे निकलता। दूसरी ओर प्रथमतः आकारके बाद मुख खोलकर भीतरी तालादि स्थानोंके स्पर्श प्रोकार और इसके बाद उकार उच्चारित होता है। भिन्न जो वर्ण उच्चारित होता, वही (आ) उकारके बाद अन्य स्वरवर्ण फिर नहीं निकलता। आकार है। जिह्वा अथवा ओष्ठ द्वारा वायुपथ तज्जन्य शब्दशास्त्रके प्राचीन इतिहासको आलो- जितना समुचित किया जायगा, उतने ही अन्यान्य चना करनेसे स्पष्ट मालूम हो सकता है, कि पहले स्पर्श