पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८६

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अच-अचपली १७४

आकार भिन्न अन्य स्वर न थे। आकारसे इकारादि । अचञ्चल (सं० त्रि.) १ चञ्चल नहीं, स्थिर। दूसरे कई स्वरोंको उत्पत्ति हुई है। २ धैर्ययुक्त, ढाढसौ। अरबी और फार्सी भाषा इस बातका दूसरा अचञ्चलता (सं० स्त्री०) १ अचञ्चल होनेको स्थिति, स्थल है। आजतक इन दोनो प्राचीन भाषाओं में स्थिरता। २ धैर्य, सब्र। हस्व इकार और हुस्व उकार एकमात्र अलिफ द्वारा अचण्ड (सं० त्रि.) १ सरल, सौधा। २ शान्त, लिखा जाता है, इन दोनोके लिये कोई विभिन्न स्वर मुसब्बिर। ३ सुशोल, शाइस्ता। नहीं। अलिफ़ में ज़र लगानेसे इकार और पेश अचण्डो (सं० स्त्रो०) न चण्डी कोपना, नञ्-तत् । लगानेसे उकार होता है। जर और पेश वह १शान्त गो, सोधी गाय । २ सूकरी, मादा सूअर। साङ्केतिक चिह्न हैं, जो अलिफ पर इकार और ३ सुशीला स्त्री, भली औरत । उकार लिखनेको लगाये जाते हैं। अतएव अब अचतुर (सं. त्रि०) न सन्ति चत्वारि यस्य, स्पष्ट हो समझा जा सकता है, कि सकल भाषाओं में बहुव्रो०। जिसके चतुःसख्या न हो, विना चतुः- ही प्रथम अच् वर्ण आकार स्वभावसे हो गृहौत हुआ सख्यावाला। जिसके धर्म अर्थ काम मोक्ष, यह था, इसके बाद अन्यान्य स्वरोंकी उत्पत्ति हुई चतुर्वर्ग न हो; धर्म, अर्थ, काम, और मोक्षको न 'अचक (हिं० वि०) १ अधिक, ज्यादा। २ पूर्ण, | रखनेवाला। २ अपटु, भोंदू । पूरा। (पु.) ३ आश्चर्य, तअज्जुब । अचस्माचार्य-महिसूरके एक राजकवि। अचकन (हिं० पु०) अंगरखा । चपकन । महिसूरपति कृष्णराजके उद्देशसे कृष्णराजसार्वभौम- अचकां (हिं० कि०-वि०) १ अकस्मात्, एकाएक । त्रिशती और कृष्णराजाष्टोत्तरशती नामक क्षुद्र संस्कृत २ बिना जाने-बूझ, बेबताये। पद्यग्रन्थहयको रचना की थी। अचकित (सं० त्रि.) १ चक्षुनिमेषशून्य, इधर-उधर अचन-मन्द्राज प्रान्तीय कोचिन राज्यके नय्यरोंकी न ताकनेवाला। २ स्थिर, ठहरा हुआ। उपाधिविशेष। पालघाटका राजवंश इस उपाधिसे न डरा हुआ। ४ अप्त, आसूदा नहीं। विभूषित है। कालौकटके मङ्गतअचन, कोचिनके अचक्का (हिं. पु.) १ अपरिचित व्यक्ति, अजनबौ। पालोयत-अचन और कालीकट द्वितीय राज्यके २ बेसमझी, लाइल्मी। मन्त्री चेनलीअचन कहाते हैं। अचक्षु-अचतुस् देखी। अचना (हिं. क्रि०) १ आचमन करना।२ मुंह अचक्षुदर्शन (सं० क्लौ०) बिना आंखों देखा हुआ धोना। विषय। बुद्धि द्वारा प्राप्त ज्ञान । अचन्त-मन्द्राज-प्रान्तीय गोदावरी जिलेकी नरसापुर अचक्षुदर्शनावरण (सं० क्लो०) अचक्षुदर्शनका तहसौलका कसबा। इसमें कोई छः-सात हज़ार आवरण, वह परदा जिससे बिना आंखों देखनेका मनुष्य निवास करते, जो प्रधानतः कृषक हैं। ज्ञान जाता रहे। अचक्षुदर्शनको निवाला पहले यह नगर-पिठापुरम् राजाके अधीन था। अचक्षुदर्शनावरणीय (सं० त्रि.) अचक्षुदर्शनको अचपल (स० त्रि०) न चपलः, नञ्-तत् । १ स्थिर, छिपानेवाला। दिव्यदृष्टिका विरोधी। ठहरा हुआ। नास्ति चपलो यस्मात्, बहुव्री० । अचक्षुस् (सं० त्रि०) नास्ति चक्षुर्यस्य, बहुव्री । अत्यन्त चञ्चल, निहायत चुलबुला । १ नेत्रहीन, अन्धा। नञ्तत्। २ चक्षु भिन्न कुछ अचपलता (सं० स्त्री०) १ स्थिरता, ठहराव । २ धैर्य, सब्र । अचगशी (हिं. स्त्री०) उपद्रव, उत्यात। बदमाशी, अचपली (हिं० खो०) १ खेल-कूद, क्रीड़ा। छिछोरापन। २ चुलबुलापन। ३ अभौत, ३ पीना। - दूसरा, आंख नहीं।