पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अचला-अचिर - अचला (सं० स्त्री० ) १ पृथिवी, जमौन। २ मेनका, | अचालू (हिं० पु०) न चलने या कम चलनेवाला । हिमालयको स्त्री। ३ स्थिरा, गतिशक्तिविहीना। अचाह (हिं० स्त्री०) चाहकी अनुपस्थिति, प्रेमका ठहरौ हुई, न हिलने-डुलनेवाली। अभाव। (वि.) जिसे किसी चीज की चाह न अचलाचार्य ज्योतिर्विद्शृङ्गार नामक संस्कृत ज्योति हो। इच्छाशून्य। ग्रन्थप्रणता। अचाहा (हिं. वि.) जिसकी चाह न हो। अचला सप्तमौ (सं० स्त्री०) माघ सुदी सप्तमौ। अनिच्छित। इस तिथिको दान-पुण्य करनेका विधान है। अचाही (हिं० वि०) किसी चौजको चाह न करने- अचवन (हिं० पु.) १ आचमन, पूजाके समय वाला। निष्काम, निरीह । किञ्चित् जल मुखमें डाल शुद्धिको सम्पादन करना। अचिक्कण (सं० त्रि०) न चिक्कणः । चित: कणः कश्च। उप २ भोजनके बाद हाथ-मुंह धोना और कुल्ला करना। ४।१७५ । १ रुक्ष, रूखा । अपरिकार, मैला ३ पौना। अचिकित्स्य (सं० त्रि०) जिसको चिकित्सा हो न अचवना (हिं० क्रि०) १ आचमन करना। २ कुल्ला सके, असाध्य ; दवा देनेके नाकाबिल, लादवा। करना। अचित् (सं० लो०) वह द्रव्य जो चेतन न हो। अचवाई (हिं० वि०) आचमन कराई हुई, साफ़ । जड़ पदार्थ। बेजान चीज़। धुलो-धुलाई। अचित्त (सं० त्रि०) नास्ति चित्तं यस्य, बहुव्रौ । अचवाना (हिं. क्रि०) १ आचमन कराना । २ पिलाना। चेतनाशून्य, बेहोश। ३ भोजनके बाद कुल्ला कराना। अचिन्त (हिं० वि०) जिसे कोई चिन्ता न हो, अचांचक (हिं. क्रि-वि०) एकाएक, विना जाने । बेखटके। अचाक, अचाका (हिं० क्रि० वि०) एकाएक, अकस्मात् । अचिन्तनोय (सं० वि० ) न-चिन्त-अनौयर् शक्यार्थे । अचान, अचानक (हिं० क्रि-वि.) एकाएक, अक चिन्तासे अगम्य, खयाल करनेके नाकाबिल ; जैसे, स्मात् । ब्रह्म। अचापल (सं० लो०) न चापलः। १ स्थिर, चपलता- अचिन्तित (सं० त्रि०) न चिन्तितः। अतर्कित, शून्य पदार्थ । (त्रि०) नास्ति चापलं यस्य, बहुव्री० । जिसकी चिन्ता को न गई हो; विना विचारा। २ ठहरा हुआ, स्थिर। अचिन्त्य (सं. त्रि.) १ विचारसे बाहर, कल्पना- अचापल्य (स० क्लो०) नञ्तत् । १ स्थिरता, ठह तौत। (पु.) २ अलङ्कार-विशेष । इसमें अविलक्षण राव। (त्रि०) नास्ति चापल्यं यस्य, बहुव्री० । कारणसे विलक्षण कार्य और विलक्षण कारणसे २ चापल्यशून्य, चुलबुला नहीं। अविलक्षण कार्यको उत्पत्ति होती है। जैसे- अचार (फा० पु.) १ खटाई, जो फल या तरकारोसे वर्षा-ऋतु-आगमनसों नाचत चहु दिशि मोर । मसाला मिला सिके में डाल खट्टी की जाती है। परी विरहनौ सेजप करे करहती भोर ॥ सम्पा० (हिं० पु०) २ आचार, चाल-चलन । ३ चिरोंजोका यहां वर्षा-ऋतु-आगमनके अविलक्षण कारणसे विर- पेड़। हिनीको दुःख मिलनेका विलक्षण कार्य उत्पन्न हुअा है। अचारज (हिं० पु.) आचार्य, सदा घरमें कर्मकाण्ड करानेवाले पण्डित । अचिन्त्यात्मा (सं० पु०) वह आत्मा जिसका ध्यान अचारी (हिं० वि०) १ आचारी, आचार करने न हो सके। परमेश्वर । वाला। २ रामानुज-सम्प्रदायके विशेष विधानोंको अचिर (स' त्रि.) न चिरम् । १ अल्पकालस्थायो, माननेवाला । (स्त्री०) ३ एक प्रकार आमको खटाई। थोड़ी देर ठहरनेवाला ( क्रि०वि०) २ शीघ्र, जल्द । ४६