पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१९

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अशुनाभि-अंशुमन्त अर्थात् उपपद समासमें धातुके उत्तर यदि अण् प्रत्यय मोटा दे देते हैं, इससे कपड़ा अच्छा नहीं बनता। हो ; तो गङ्गाधर, भूधर इत्यादि रूपसिद्धि (अण् प्रत्यय उत्तम वस्त्रमें २८०० साना रहता है। ३२०० साना होनेसे गङ्गाधार, भूधार होता) किस प्रकारसे हुई ? देनेसे बहुत ही अच्छा कपड़ा बनता है। बाजारों में उत्तर-ये शब्द कर्मवाचक है। सम्बन्ध-विवक्षाके कारण ऐसा कपड़ा जल्द दिखाई नहीं देता। १४००, यहाँ षष्ठी-तत्पुरुष समास हुआ है। गङ्गायाः धरः । १८००, २२०० या २४०० सानाका कपड़ा मिलता है। अंशुनाभि ( स्त्री०) वह विन्दु, जिसपर समानान्तर २२०० और २४०० का कपड़ा बहुत ही अच्छा प्रकाशको किरणे तिरछी और संकुचित होकर मिलें । कहलाकर बिकरी होता है; परन्तु वास्तवमें वह सूर्यमुखी कांचको जब सूर्यके सामने करते हैं, तब कपड़ा उत्तम नहीं होता, रेशमके व्यवसायी वस्त्रमें उसको दूसरी ओर इन्हों किरणोंका समूह गोल वृत्त इतना गड़बड़ करते हैं, कि वह सहजही पहिचाना वा विन्दु बन जाता है, जिसमें पड़नेसे चीजे जलने नहीं जाता, सबसे खराब कपड़ा भी देखने में अच्छा लगती हैं। (हि शब्दसा.) मालूम होता है, इसीको ‘आहार देना' कहते हैं, अंशुपट्ट (सं० क्लो०) अशुभिः सूक्ष्मसूत्रैः घटित पट्टवस्त्र । जुलाहे कपड़ा तय्यार होनेपर धोबीके यहा आहार १ पतला पट्टवस्त्र । महीन रेशमका कपड़ा। यहाँ तीन देने के लिये दे देते हैं, नये रेशमके धोनेको खड़ाई प्रकारका रेशमी कपड़ा बनता है, गरद, तसर और करना कहते हैं। [इसका पूरा हाल खड़ाई शब्दमें देखना मुटका। यह अन्तिम कपड़ा देखने में अच्छा न चाहिये ] एक-एक कपड़ेको दोनो ओर बड़े-बड़े किल्ले होने पर भी बहुत दिनों तक चलता है, रेशम और रहते हैं, बाजारमें धुला हुआ रेशमी कपड़ा खरीदते तसरसे ही एक प्रकारका मोटा रेशम तय्यार किया समय ये चिल्ले नहीं दिखाई देते, धोबी इन्हीं छिल्लोंमें जाता है, उसीके बाना और रुईके सूतके तानेसे मुकटा खूटा गाड़कर कपड़ेको इतना तानकर सुखाते हैं, कि तय्यार होता है, बङ्गालमें इसका बड़ा उपयोग होता उनमें जरा भी शिकन या सलवट नहीं रहती, इसके है, देवताके पूजन और धम्मात्मा स्त्रियोंके दिन-रातके उपरान्त मयदैको जलमें घोलकर धोबी खूब गाढ़ा पहिरनेके काम आता है, एक जोड़ अच्छे मुकटेका गाढ़ा उसपर लगा देते हैं, इसौका नाम आहार है, दाम ११) १२) रु० होता है, तसरका कपड़ा तसरको आहार लगानेके लिये ब्रुशके समान एक झाडु रहती गोटसे तय्यार किया जाता है। [तसर देखो]। यह है, कपड़ेपर आहार लगा देने के बाद इसी मार्जनी वस्त्र रेशमको गाँठके सूतसे तय्यार किया जाता है। द्वारा उसको कुछ देरतक घिसते रहनेपर कपड़ा बननेवालेके सूत निकालनेके समय दो-तीन कोया खूब स्वच्छ हो जाता है, और फिर धपमें सूख जानेके एक एक बार घुमाने और साथ ही साथ यत्नपूर्वक अनन्तर वह नकली लेपसा नहीं मालूम होता, बल्कि ताना-बाना फेंकनेसे अच्छा सूता तय्यार होता है। कपड़ा असली, गाढ़ा और उत्तम मालूम होता है। इसके अतिरिक्त कोया भी बढ़िया होना चाहिये। अशुपति (सं० पु०) अंशवः पतिः ६-तत्। सूर्य । जिस समय रेशमको गोटी बंधने लगती है, उस अंशुपर्णी (सं० स्त्री० ) शालपर्णी। (शब्दार्णव) समय अथवा उससे पहिले बदली होने या पूरबी हवा अंशुमत् (सं० त्रि०) अशु-मतुप् । किरणयुक्त । द्युति- चलनसे ये रेशमकी गोटियाँ अच्छी नहीं होती, इन मान्। (पु०) सूर्य्य । गोटियोंके काटनेपर निकृष्ट रेशम निकलता और अंशुमत्फला (सं० स्त्री०) अंशुमानिव रक्तवर्ण फलं उसका कपड़ा भी अच्छा नहीं होता है। अच्छे यस्याः। बहुव्री। कदली, केलागाछ। रेशमी वस्त्रके ताने और बाने (भरना) का सूत अंशुमती (सं० स्त्री० ) शालपर्णीवक्ष। (वि.) प्रभा- समान पतला होना चाहिये। परन्तु जुलाहे अधिक विशिष्टा। करके तानेका सूत महीन और बाने (भरना) का अंशुमन्त (सं० पु.) १ मूर्य । २ अंशुमान् राजा। ५