पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१९३

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अछना-अज (क्रि.वि.) २ क्रमशः, अहिस्ता-अहिस्ता; शीघ्र नहों, धीरे-धीरे। अछना (हिं० क्रि०) होना, रहना। अछनेरा-युक्तप्रदेशके आगरा जि.लेका एक कसबा । यह रेलोंका जङ्ग-शन-टेशन है। अछप (हिं० वि०) न छिपनेवाला, ज़ाहिर। अछम्मो (हिं० पु०) आश्चर्य, तअज्ज ब । अछय-अक्षय देखो। अछयकुमार-अक्षकुमार देखो। अछरा, अछरी-अमरा देखो। अछरौटी (हिं० स्त्री०) वर्णमाला, हुरूफ तहज्जी। अछल (हिं० वि०) निश्चल, लाफरेब ; जो कपटी न हो। अछवाना (हिं० क्रि०) सजाना, बनाना। अछवानी (स. स्त्री०) प्रसूता स्त्रियोंको दिया जाने- वाला पाकविशेष। यह घृतमें परिपक्व किया जाता और इसमें मेवा, अजवाइन, सोंठ आदि कई दवायें पड़ती हैं। अछाम (हिं० वि०) १ स्थूल, मोटा। २ बलवान्, मज़बूत। अछियार (हिं० पु०) सुर्ख गोटवाली गजीको साड़ी। अछी (हिं० स्त्री०) आलवृक्ष, आलका दरख्त् या पेड़। अछूत, अछता (हिं० वि०) १ स्पर्श न किया हुआ, न छुपा गया। २ काममें न लाया गया, नवीन । अछेद, अछेद्य-अच्छे द्य देखो। अछेव-अच्छिद्र देखो। अछेह-अच्छे द्य देखो। अछोप (हिं. वि.) १ नग्न, नगा। २ तुच्छ, छोटा। अछोभ, अशोह, अछोही-अक्षोभ देखो। अज्-क्षेपण, गति । भा०प०, सक० सेट् । अज्-दीप्ति (अजि, इदित०) चु०-उ० अक० धातु सेट् । अज (सं० पु०) न जायते, न-जन-ड, नञ्तत् । अन्येष्वपि दृश्यते । पा ३।२।१०१। १ जिसका जन्म न हो, ईखर। २ जौव। ३ ब्रह्मा। ४ विष्णु। ५ शिव। ७ कामदेव । ८ अयोध्याके सूर्यवंशीय एक राजा जो रघुके पुत्र और रामचन्द्र के पितामह थे ; इनकी स्त्रीका नाम इन्दुमती था, जिनके गर्भसे दशरथ उत्पन्न हुए थे। 2 ऋषिषिशेष। १० बकरा। ११ मेंढा। १२ सोनामाखी धातु। १३ अजन्मा। १४ नेता । (स्त्री०) अजा-१ सत्त्व-रजस्तमोगुणात्मिका प्रकृति । २ बकरी। ३ ओषधि-विशेष, काकड़ासींगी। अज यानो बकरा चतुष्पद जन्तु है। इसका सर्वाङ्ग लोमसे आवृत है। किसी-किसी जातिवाले बकरेको देहपर कोमल और रेशम जैसे चिक्कण और किसौ- किसीके बाल जैसे मोटे लोम होते हैं। बकरेके दो शृङ्ग रहते, पूंछ छोटो होतो; पागुर करते समय भुक्तद्रव्य जब मुखमें पेटसे निकलता, तब 'हड़ात्' करके सामान्य एक शब्द उठता है। बकरके बत्तोस दांत होते हैं। इनमें बीस नोचे और बारह ऊपर रहते हैं। नीचेके बीस दांतोंमें दोनो जबडोंके बारह दांतोंसे खाद्यद्रव्यको बकरा चबाता और सामनेवाले आठ दांतोंसे तृणादि उखाड़ता है। ऊपरवाले दोनो जबडोंमें केवल खाद्यद्रव्यके चबाने लिये बारह दांत लगे हैं। भूमिष्ठ होनेसे पोछे बकरवाले शिशु के केवल छः जबड़े के दांत रह जाते हैं। सामने के दांत इक्कोस दिन में निकल आते हैं। एक वर्ष या पन्द्रह महीने बाद सामनेके दो दांत टूट जाते ; फिर नये दांत निकलते हैं। दो अथवा ढाई वर्षके वयःक्रममें सामनेके और दो दांत गिर पड़ते, साढ़े तीन वर्षमें फिर दो दांत गिरते ; बाको दो साढे चार वर्षमें गिर जाते हैं। अतएव पांच वर्षतक दांत देखकर बकरका वयःक्रम निश्चित किया जा सकता है। लोग कहते हैं, कि बकरा तेरह वर्ष जीता है। बकरेका वयःक्रम सात मास होनेसे सन्तानो- त्यादनको शक्ति उत्पन्न हो जाती है; बकरोका बयस एक बर्ष होनेसे गर्भधारणका काल उपस्थित होता है। किन्तु दोनोका वयःक्रम कुछ और परिपक्व होनेसे शावक खूब हृष्टपुष्ट और बलिष्ट हुआ करते हैं। छः महीने गर्भसे पीछे बकरीके सन्तान होती है और प्रायः दो, कहीं तीन-चार तक बच्चे हो जाते हैं। बकरीके दोसे अधिक सन्तान