पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१९७

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१६. अज यथा- छोटो, शरीरपर क्षुद्र-क्षद्र लोम, अधिक दूध बकरके शरीरसे लोम निकाल लेने पड़ते हैं। न देनेवाली होती ; किन्तु उसका मांस कोमल और कालमें उन्हें न निकालनेसे वह आप ही भर जाते सुस्वादु रहता है। बङ्गालमें रामबकरा अधिक नहीं हैं । खस्मोके लोम हो सर्वोत्कृष्ट होते, जिनके नीचे होता। युक्तप्रदेश, विशेषतः राजपूताने और बकरीके लोमका नम्बर है। किन्तु पाठेके लोम बुदेलखण्डकी गड़रिया जाति ही इन्हें अधिक पालती खस्सीके लोम जैसे अच्छे नहीं होते। एक-एक बकरेके है। रामबकरा दीर्घाकार होता और उसके लम्बे कान गर्दनके पास लटका करते हैं। उनमें अधिकांश सादे ही होते ; फिर भी, भूरे और काले रङ्गके राम- बकरे कहीं-कहीं देख पड़ते हैं। राम बकरियां सामाना गोकी भांति दूध देती हैं। गड़रिये उसी शरीरमें प्रायः डेढ़ सेरतक पशम निकलता है। अङ्गो- दुग्धसे घृत प्रस्तुत करते हैं। पश्चिमको कितनी ही रासे प्रति वर्ष २५००० मन पशम आता, जिसका मूल्प मिठाइयां बकरीके घोसे तय्यार होती हैं। राम न्य नाधिक बीस लाख रुपये होता है। रूम-राज- बकरीका मांस कठिन होता और खाने में भी अच्छा धानी कुस्तुनतुनियासे भी विस्तर बकरे प्रतिवत्सर नहीं लगता। केप्-कलोनीको प्रेरित किये जाते हैं। एक-एक अच्छे मालटावाले बकरके-लम्बे कान उसकी गर्दनके पास बकरका मूल्य प्रायः ढाई हजार रूपयेतक लगता है। लटका करते हैं। इसके लोम खेतवर्ण होते और फिर भी, सामान्य भांतिका बकरा पांच-छः सौ रूपयों- माथेमें सींग नहीं रहते। में बिकता है। सौरियाका बकरा-आजकल पृथिवीके अनेक स्थानों में काश्मीरके बकरों में अधिकांश हो हिमालयके उत्तर देख पड़ता है। फिर भी, मिश्रदेश, भारत-समुद्रके दिक्वाले तिव्वत प्रभृति स्थानोंसे लाये गये हैं। उपकूल और मादागास्कर द्वीपमें ही वह अधिक काश्मौरी बकरीका मुह छोटा और कान मिलता है। उसके लोम और कान बहुत लम्ब बड़े और कम लटकनेवाले ; सींग लम्ब और सौधे होते हैं। होते-जो कुछ वक्र हो एक दूसरेपर जाकर गिरते अशोराका बकर।-अनेकोंको विश्वास है, कि अनोरेके हैं। सर्वाङ्ग बड़े-बड़े लोमसे आवत रहता है। और कश्मीरके बकरमें कोई प्रभेद नहीं। वह दोनो ऊपरका लोम वाल जैसा कठिन और निम्नका लोम एक जातीय हैं, किन्तु वास्तविक रूपसे ऐसा नहीं कोमल और पशम जैसा चिकना रहता है। शरत्- है। अङ्गोरके सींग गर्दनकी ओरको वक्र, मुंह कालसे पशम जमने लगता ; वसन्तकालके आदितक भेड़कासा और शरीरमें बड़े-बड़े लोम होते हैं। भी अल्प-अल्प बढ़ा करता है। किन्तु इस समय ऊपरके लोम पातला, मुलायम और चिकने रहते, पशम काट लेना आवश्यक है। उसे काट न लेनेसे जिनसे पशम निकलता है। नीचे के लोम क्षुद्र और वह आप ही भरा जाता है। काश्मीरवाले एक-एक बाल जैसे कठिन होते हैं। वसन्त कालके आरम्भमें बकरके शरीरमें प्रायः आधसेर उत्कृष्ट पशम उत्पन्न ढालू,