पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२००

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अजगर-अजगव १६३ होता है। करनेसे वह केवल दो गलफर चला अपना मुख पहाड़ी अजगर और अन्यान्य सकल उरगोंका विस्तीर्ण कर सकता है। पहाड़ी अजगरके मस मलमूत्र एक ही पथसे निर्गत होता है। इसका कुरको हड्डौ जुड़ी हुई नहीं होती; एक-एक विष्ठा ठौक चूने जैसा रहता है। पहाड़ी अजगरोंके हड्डी पृथक्-पृथक् लगी रहती है। इसौसे यह पेटमें अत्यन्त कृमि उत्पन्न होते, जिससे कितने ही अनायासमें सकल ओर खेलते फिरता है। यह सांप मर जाते हैं। हमारे देशके हिमालय पर्वत इच्छा करनेसे समीपको ओर भी अपना मुंह फैला और दक्षिण-प्रान्तमें इस जातिके विस्तर अजगर सकता है और ऊपरको ओर भी। फिर, इच्छा विद्यमान हैं। कई वर्ष हुए, वीरभूम जिलेके करनेसे एक ओरको दाढ़ न चला अनायासमें दूसरी अन्तर्गत गणुटीयाको रेशमवालो कुटीके सम्मुख एक ओरकी दाढ़ खोल शिकारको निगल सकता है। बृहदाकार पहाड़ी अजगर नदीके जलमें बह आया। इसके ऊपरवाले मसकुरमें दो श्रेणी और नौचे चरवाहे उसी जगह गो-बछर और भेड़-बकरे चराते वाले में केवल एक श्रेणी दांत होते हैं। यह थे। अजगरने झाड़ीसे बाहर निकल एक भेड़को शिकारके ऊपर झपट पलभरमें उसे पूछसे जकड़ निगल डाला। कुटीके अध्यक्ष राइट साहबने यह लेता ओर पौछे मुंहको लारसे उसका सर्वाङ्ग भिगो संवाद पाकर उसे गोलोसे जा वध किया। हिमा- देता है। इससे जन्तुका शरीर चिकना हो जाता लय पर्वतमें मयाल नामक एक प्रकारका अजगर है। सुतरां निगलने में बड़ी सुविधा होती है। यह सचराचर १०१२ हाथ दीर्घ, कोई-कोई कहते हैं, कि शिकार उदरस्थ होनेपर | किन्तु तालवृक्षको अपेक्षा भी अधिक मोटा रहता यह अपने शरीरको उलट-सुलट ऐसा घुमाता है। पहाड़ो लोग इस सांपको पकड़ गृहस्थोंके है, कि बड़े बड़े पशुओंको हड्डियां भी चर घर-घर नचाते समय इसके मुखसे लाङ्गल पर्यन्त मराकर टूट जाती हैं। कभी-कभी शिकार पकड़ते एक-एक कर बेंतके मुंदर डाल देते और मोटो छड़ीसे ही यह निमेषमध्यमें उसका सर्वाङ्ग जकड़ कर आघात करते जाते हैं। उस समय सर्प क्रोधसे फूल बांध लेता है। उसी समय सब हड्डियां चूर-चूर उठता है। चारो ओर चार संपेरे खड़े रहते हैं। हो जाती हैं। इस कारणसे भी गो, महिषादि उनके शिरपर काठको टोपौ और टोपीमें बड़े-बड़े बड़े-बड़े पशु मुंहसे छूटकर भाग नहीं सकते। लोहे के काँटे चुभे होते हैं। सांप क्रोधमें मनुष्यको आहार कर चुकनेपर यह अनेक दिन पर्यन्त अपेक्षा भी अधिक उच्च हो और चारो ओर घूम- हिल-डुल नहीं सकता, निर्जीव जड़ पदार्थको फिरकर संपेरोंके शिरको दंशन करने दौड़ता है। तरह एक जगह पड़े सोया करता है। ऐसी इसोको मयाल सांपका नाच कहते हैं। अवस्थापर इसे सहजमें ही मार सकते हैं। अजगरी (हिं० वि०) अजगरका, अजगरवाला, बड़े-बड़े जन्तु निगलते समय छातीमें आहार अजगर-सम्बन्धोय। अटक जानेसे पौछे श्वासरोध हो सकता, तज्जन्य अजगल्लिका, अजग़ल्ली (सं० स्त्रो०) १ बर्बरीवृक्ष, विधाताने इसका खासयन्त्र आश्चर्यकौशलसे निर्माण बबइतुलसी। २ क्षुद्ररोगान्तर्गत बाल्यरोग विशेष, एक किया है। इसके फेफड़ेमें दो कोष होते हैं-एक प्रकारको कफबातसे उत्पन्न होनेवाली फुन्सी। इस छोटा और एक बड़ा। बड़े कोषके प्रान्तभागमें वायु रोगका लक्षण यह है- रहनेका एक स्थान बना है। बड़े-बड़े पश्खादि "निग्धाः खवर्णाः ग्रथिता नौरुजा मुझसन्निभाः । पिटिका: कफवाताभ्या बालानामजगल्लिका ॥” (वाभट उ० ३११०) निगलते समय उसी आधारस्थित वायुसे रक्त परि- ष्कृत होता है। इसके चक्षु क्षुद्र होते हैं और अजगव ( सं० लो०-पु. ) अजगं विष्णु वाति, अजग- सर्वाङ्ग कृष्ण और हरिद्रावर्णसे चित्रित रहता है। वा-क। पिनाक, शिवधनुः, महादेवका धनुष । ४८