पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०२

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कर्मणि अच् । अजपति -अज़माना १६५ दान करनेसे उनमें फिर विच्छेद नहीं होता। पर २६ होती है। इसीतरह वयःक्रम, शीतग्रोम (अथर्व हा५।२७)। और खाद्य सामग्रीके प्रभावसे श्वास-प्रश्वासको अजपति (सं० पु.) अज-पा-डति, ६-तत् । १ छाग संख्या घटते-बढ़ते रहती है। सुस्थ युवा व्यक्तिके श्रेष्ठ, बड़ा बकरा। २ मेषराशिका अधिपति, खास-प्रश्वासको संख्या औसतसे प्रति मिनट में २० बार मङ्गलग्रह। माननेपर समस्त दिवा-रात्रिमें २८८०० बार हो अजपथ (सं० पु.) अजस्य पन्थाः, ६-तत् ; अजेन जाती है। हमारे शास्त्रकारोंने २१६०० बार ब्रह्मणा निर्मितं पन्थाः, ३ .तत् । १ छागके पद हारा संख्यागणना की है, अतएव इन उभयके मध्य में जो पथ हो, जो राह बकरेके चलनेसे बन जाये। अधिक प्रभेद नहीं। २ प्रजापतिने जो पथ पृष्ट किया हो, ईश्वरको बनाई हं अर्थात् निखास खोंचनेमे अधिक समय नहीं राह; छायापथ। लगता। स अर्थात् निखास छोड़नेमें अपेक्षाकृत 'अजपथ्य (सं० त्रि०) अज-पथ, इवार्थे यत् ; अजपथ अधिक समय बीत जाता है। पुरुषके पक्षमें इन इव। १ देवपथ जैसा। २ सङ्कोण (पथ)। दोनो क्रियाओंका अनुपात १०:१२ और शिशु एवं ३ गगन सेतुतुल्य, आकाशके मार्ग समान । स्त्रीके पक्षमें १०:१४ है। प्राणायाम और निश्वास देखो। अजपद-अजपाद देखो। अजपाद (सं० पु.) अजस्य पाद इव पादो यस्य, अजपा (सं० स्त्री०) यत्नेन विना जप्या, न-जप- बहुव्रौ। १ रुद्रविशेष, रुद्रदेवता । २ पूर्वभाद्र- १ हंसमन्त्र। २ स्वाभाविक खास पद नक्षत्र। प्रश्वास । हम प्रत्यह जिस निखासको ग्रहण और अजपार्श्व-खेतकर्णके पुत्र। ( हरिवंश ) जिस प्रश्वासको त्याग करते, उसका कियदंश अजपाल (सं० त्रि०) अजान् छागान् पालयतीति, देवता भोगते हैं। विखादर्शमें लिखा है- अज-पा-णिच्-अण् । जो बकरा-बकरी पाले, गड़रिया । अजब (अ० वि०) अनोखा, अभूतपूर्व । कौतू- "अयुते हे सहस्रक षट्शतानि दिवानिशीः । भवन्ति हंसजप्यानि नियासोक्तासनामतः ॥ हलाकीर्ण । आश्चर्योत्पादक । षट्शतानि गणेशस्य षट सहस्र प्रजापतेः । अजबन्धु ( स० पु० ) अजः छागल: बुद्धिविषये बन्धुः गदापाणे. षट सहसं षट सहस' विलोचने ॥ सहचरः इव यस्य। जिसको बुद्धि बकरेको तरह स्थूल सहस' स्यादात्मनस्तु सहस्रन्तु गुरुइये। हो, मूर्ख ; गधा, बेवकूफ। परमात्मनि सहस्रस्वादिति सख्या निवेदयेत् ॥" अजबला (सं० स्त्री०) कालौतुलसी। रात्रि-दिनके मध्यमें मनुष्यक :निखास-प्रश्वासको अजमक्ष (सं० पु०) अज-भक्ष-घञ् कर्मणि ; अजैः संख्या २१६०० बार होती है इसका नाम हंसमन्त्र भक्ष्यते असो, ६-तत्। बबूल, बबरोवृक्ष । बकरियां है। इस जपके मध्यमें ६०० गणेश, ६००० प्रजापति, बबूलकी पत्तियां बड़े प्रेमसे खाती हैं, इसीसे इसका ६००० विष्णु, ६००० शिव, १००० गुरुद्दय और नाम अजमक्ष पड़ा है। १००० परमात्माके कहे गये हैं। अजमत (अ० पु.) १ बड़ाई, शान-शौकत, प्रताप । हम नहीं समझ सकते, कि निखास-प्रश्वासमें एक २ करामात, चमत्कार, सिद्धि। एक देवताके अधिकार होनेका क्या तात्पर्य है। ऊपर अजमल (सं० पु.) १ गोधूम, गेहूं। श्वास-प्रश्वासको जो संख्या लिखी गई है, आधुनिक मिंगनी। मतके साथ उसका विशेष अनैक्य नहीं। कोएटेनेटके अजमाइश, आज़माइश (फा० स्त्री०) परीक्षा, जांच। मतसे शिशु भूमिष्ट होनेपर प्रति मिनटमें उसके अजमाना, आजमाना (हिं. क्रि०) परीक्षा लेना, खास-प्रश्वासको संख्या ४४ और पांच वत्सर वयःक्रम जांचना।

२ लेंडी,