पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०३

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1 कर्मधा। १६४ अजगाव-अजपञ्चौदन इस शब्दके अजकव, अजकाव, अजीकव और अजगाव | अजदण्डो (स० स्त्री०) अज-दण्ड, गौरादित्वात् रूप भी होते हैं। डोष्। अजस्य ब्राह्मणो दण्डोऽस्याः । ब्रह्मदण्डौ अजगाव (सं० पु-क्लो०) अजग-अव-अण, अजगं वृक्ष, वह वृक्ष जिसका ब्राह्मण दण्ड बनाते थे विष्णु अवति रक्षति। उपपद-स०। हरधनु, अज़दहा (फापु०) अजगर, बड़े-बड़े पशुओंको. विष्णुको रक्षा करनेवाला महादेवका धनुष । लील जानेवाला साँप। अजगुत (हिं० पु.) अनहोनी, अनोखी बात। अजदेवता (सं० पु०) मध्यपदलोपि आश्चर्यका विषय। अजाधिष्ठाता देवता, अग्नि। वह देवता, जो बकरीका अजगैब (फा० पु.) गै बसे हुआ काम, अदृष्ट-सम्भूत अधिष्ठाता हो। विषय। अजन (सं० वि०) १ उत्पत्तिशून्य, जिसका जन्म अजगैबी (हिं० वि०) गै बसे हुआ। अनोखा, होता न हो। २ जहां कोई मनुष्य न हो, एकान्त । आश्चर्यका। अजननि (सं० स्त्री०) न-जन आक्रोशे अनि, नञ्- अजघन्य (सं० त्रि०) न जघन्यः, अधमः, नञ्-तत् । तत्। जन्माभाव, जन्मका न होना। जघनमिव जघन्यः, जघन-यत्। अनधम, भला ; श्रेष्ठ, अजनबी (फा० वि०) बेजान-पहचानका, विना बड़ा। जाना-बूझा ; अपरिचित, नया। अजघोष (सं० पु०) एक प्रकारका सन्निपात ज्वर, अजनामक (सं० पु० ) सोनामाखौ धातु । जिसमें रोगीका बोल बन्द हो जाता है अजनि (सं० स्त्री० ) वाहिका स्वर्गपन्था । अजनिवस् (स' त्रि०) न मारनेवाला। अजन्ता-अजिण्ठा देखो। अजजीव, अजजीविक (सं० त्रि०) अजम्छागः क्रय अजन्तुजग्ध (सं० त्रि०) जिसे कोडॉन न खाया हो, विक्रयादिना जीविका जीवनोपायो यस्य, बहुव्री। समूचा, पूरा। छाग मेषादिका व्यवसायी, भेड़-बकरीका सौदागर। अजन्म, अजन्मा, अजन्मन् (मं० पु. ) न-जन्-मनिन् । अजटा (सं• स्त्री०) नास्ति जटा जटाकारं मूलं नास्ति जन्म यस्य यत्र वा, बहुव्री । १ जन्मरहित, यस्याः, बहुव्री०। पनियाला, एक प्रकारका वृक्ष । जिसका जन्म न हो।२ मोक्ष । अजड़ (सं० त्रि०) जड़ नहीं ; चेतन, जानदार। अजन्य (सं० वि०) जन्-णिच्-यत्। न जायत, (पु.) वह वस्तु जो जड़ न हो; सजीव वस्तु, नञ्-तत्। शुभाशुभसूचक भूकम्पादि उत्पात विशेष । जानदार चौज। अजननीय। अजड़ा (स. स्त्री०) अजड़-णिच्-अच् ; अजड़यति अजप ( स० पु.) न-जप-अच् ; अस्पष्टं जपति, स्पर्शमात्रेण अङ्गमर्दनार्थ सञ्चालयति, उपपद-स० । निन्दार्थे नञ्। १ कुपाठक, जो भली भांति पाठ १ पनियाला, एक प्रकारका वृक्ष। (त्रि.) कर न सके। अजं पाति : पा-क, ६ तत्। २ जड़भिन्न, चेतन। २ जो छागरक्षा करे, छागपालक; बकरी पालन- अजड़ाफल ( सलो०) पनियालेका फल । वाला मनुष्य। अजण (हिं० पु.) १ अर्जुन। २ सहस्रार्जुन। अजपञ्चौदन (सं० पु०-क्लो०) पुरोहितको यजमान अजण्टा-अजिण्डा देखो। कर्तृक छागदान, बकरी बकरका दान। अथर्ववेदमें अजत्व, अजात्व (सं० लो०) बकरा होनेका भाव, अजदानका इसतरह फल लिखा है-अजदान करनेसे यजमान दृतीय आकाशके तृतीय स्वर्गवाले तृतीय ( स० स्त्री०) अज-थ्यन्। अजाविभ्यां च्यन् । पा० पृष्ठमें स्थान पाता है। (५।२३)। एक पतिके रहते ५।७।८। यूथि, स्वर्णयूथिका ; वसन्ती जूही या चमेली। स्त्री यदि अन्य पतिको ग्रहण करे, तो अजपञ्चौदन बकरापन। अजथ्था