पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०९

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अजादनी-अजामिल २०३ नाथ रीका दूध। बैमिल। जो बकरका गोश्त खाये। २ एक प्राचीन युद्धप्रिय । तोले ले और इसमें ३२ तोले यवक्षार डालकर जातिके पूर्वपुरुष, एक पुरानो लड़ाकू कौमके यथाविधि पकाये। यह घी यक्ष्मरोगको बुजुर्ग। करता है। अजादनी (सं० स्त्री०) अजैः छागैः अक्लेशेन अद्यते अजापय, अजापयस् (स'• क्लो०) छागदुग्ध, बक- असौ ; अज-अद-ल्युट् कर्मणि, ६-तत्। दुरालभा, बेर ; वह वृक्ष जिसे बकरे बड़े प्रेमसे खाते हैं। अजापालक (सं० त्रि०) १ बकरी पालनेवाला। अजादि (सं० पु०) अज इति शब्द आदौ येषां, २ बकरियोंका झुण्ड। बहुव्री। अज प्रभृति, बकरे वगैरह। अजाप्रिया (सं० स्त्री०) बदरोवृक्ष, बेरका पेड़। अजादुग्ध (सं० क्लो०) बकरीका दूध । अज़ाब (अ० पु०) १ पाप, गुनाह। २ दण्ड, सजा। अजान (हिं० वि०) १ बसमझ, भोला-भाला, ३ पौड़ा, तकलीफ। ४ प्रायश्चित्त । सीधा, न जाननेवाला। २ जो जाना हुआ न हो, अजामांस (सं० लो०) बकरीका मांस। यह लघु, विना पहचानका। (पु.)३ ना-समझी, अज्ञान । स्निग्ध, किञ्चिच्छीत, रुचिप्रद, मधुर, पुष्टिकर, बल्य ४ एक वृक्ष जिसके नीचे जानेसे लोग कहते हैं, कि और वात-पित्तघ्न होता है। मनुष्यको बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अजामि (वै. त्रि.) १ असम्बन्धीय, अजानपन (हिं० पु०) ज्ञानका अभाव, मूर्खता, २ असम्बद्ध, बेतरतीब। बेवकूफी, नादानी, नासमझी। अजामिता (वै० स्त्री०) १ सम्बन्धराहित्य, वैमेलो। अजानय (सं० पु०) उत्तमाश्व, बढ़िया घोड़ा। २ दुश्मनी, शत्रुता। अजानि (सं० पु०) नास्ति जाया यस्य, बहुव्री०। अजामिल-वह पापी ब्राह्मण जो अपने लड़के जााया निङ। पा ५।४।१३४ । जायाशून्य, वह पुरुष 'नारायण'का नाम लेनेसे मुक्त हुआ था। भागवतमें जिसके स्त्रो न हो। लिखा है,-अजामिल कान्यकुब्ज-देशीय एक ब्राह्मण अजानिक (सं० त्रि०) अज विक्रयादिना आनो थे। पहले यह शास्त्रविशारद और समस्त सगुण- जीवनं अस्ति अस्य, अजान-ठन् । छागव्यवसायो, सम्पन्न रहे। एक दिन यह पिताको आज्ञासे वनको बकर बेचनेवाला। चले। वहां एक शूद्रा वेश्याको मधुपानसे मत्त हो अजानेय (सं० पु.) अजेऽपि विक्षेपेऽपि आनेयः किसी शूद्रके साथ क्रोड़ा करते देख यह उसके प्रति प्रापणीयः येन ; अजा-नौ-यत् कर्मणि, ३-तत् । एकान्त अनुरक्त हो गये और उसे अपने घर ले उत्तम अश्व, बढ़िया घोड़ा। आये। इन्होंने उसको इच्छा पूरी करनेके लिये अजान्वी (सं० स्त्री०) अजस्य अन्वमिव अन्त्र समस्त पिटसम्पत्तिको व्यय कर डाला। धीरे-धौर अन्वाकारवतो कोठरमञ्जरी यस्याः । हिरनपट्टी, चौर्यादि असत्वृत्तिको अवलम्बन कर यह उस वेश्या- नौलबुला, नौलपुष्पा, अतिलोमशा। के साथ दिनपात करने लगे। अपनी परिणीता कटुरसा, कासघ्नी, वोयंदा और गर्भजननी होती है। और सत्कुलजाता ब्राह्मणीको इन्होंने परित्याग अजापक्क (स० क्लो०) पक्कघृतविशेष, न ब तपाया किया। कालक्रममें उस वेश्याक गर्भसे इनके दश पुत्र उत्पन्न हुए; सबसे छोटेका नाम 'नारायण' था। अजापञ्चक (सं० क्लो०) यक्ष्मरोगका घृत, क्षयो अजामिल छोटे पुत्रका बड़ा प्यार करते, सर्वदा रोगमें दिया जानेवाला आयुर्वेदिक घी,- उसके लालन-पालनमें लगे रहते और किसी भी समय बकरीका घी, बकरीको लेंडौका रस, बकरीका परलोकका विषय सोचते न थे। अट्ठासी वर्ष उस दूध, बकरीका दही, बकरीका मूत्र दो सौ छप्पन शूद्राके साथ बिताने बाद इनका आसन्नकाल आ यह ओषधि हुआ घी।