पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

3B २०८ अजितापौड़-अजीकव अजितापौड़ (स० पु०) नास्ति पौड़ा जयादिषु वाधा अजिनयोनि (सं० पु०) मृग, हरिण ; आहू । यस्य स अपीड़ः; अजितश्चासौ अपौड़श्चेति, कर्मधा० । अजिनवासिन् (सं० वि०) चमड़ेको पोशाक पहने काश्मीरके जनक राजा। इनके पिताका त्रिभुवनापोड़ वाला। और इनको माताका नाम जयादेवी था। जयादेवी अजिनसन्ध (सं० पु० ) चमड़ेको सञ्जाब बेचनेवाला। अक्षुर नगरके कल्पपालको कन्या थीं। उनके तुल्य अजिर (सं० क्लौ०) अज-किरच । अजिरशिशिरशिथिल- सुन्दरी रमणी उस समय कोई भी न रहीं। इससे स्थिरस्फिरस्थविरखदिराः। उण् १५४ । १ उठान, टोला। ललितापौड़ उन्हें हरण कर ले गये थे। त्रिभुवनापौड़ २ चत्वर, चौतरा। ३ प्राङ्गण, आंगन। ४ वात, हवा । "फिर इन रूपवती कामिनीको निकाल लाये । ५ विषय, ऐशो इशरत। ६ दर्दुर, मेंड़क। ७तनु, ललितापीड़के औरस और जयादेवीके गर्भसे बृहस्पति जिस्म। (त्रि०) ८ शौघगामी, जल्द चलनेवाला । नामक एक दूसरा पुत्र भी उत्पन्न हुआ था। वृहस्पति अजिरं प्राङ्गणे वाते विषये दर्दुरे तनो। ( मेदिनी) शैशवावस्था में काश्मीरके राजा हुए, इसलिये पद्म, उत्- अजिरवती (स० स्त्री०) एक नदी जिसपर श्रावस्ति पल, कल्याण, मर्म और धर्म नामक उनके पांच मातुल नगर अवस्थित था। कर्तृत्व करने चल समस्त अर्थ आत्मसात् करने अजिरशोचिस् (वै० पु० ) १ देदीप्यमान् वस्तु, चम लगे। राजा क्रमसे बड़े हुए, चारो ओर उनके चक्षु कौली चौज। २ अग्नौषोम। पड़ने लगे ; इसी कारणसे मातुलोंने देखा, कि तब अजिरादि-अजिर आदी येषाम्। जिनके आदिमें लाभको प्रत्याशा न थी। अन्तमें उन दुराचारियोंने अजिर हो, अजिर वगैरह। अजिरादि गणमें निम्न- मारणविद्या द्वारा भागिनेयके प्राण विनष्ट किये। लिखित शब्द पठित हैं,-अजिर, खदिर, पुलिन, हंस, इसके बाद दुर्मति सोचने लगे-अब कौन राजा कारण्डव और चक्रवाक । होगा? पांच लोगोंके पाँच मत थे। अन्तमें उत्पलने अजिराधिराज (वै० पु०) देवताओंका राजा, मृत्य। अजितापौड़को हो राजा बनाया। कुछ काल बाद | अजिरीय (सं० त्रि०) न्यायालय-सम्बन्धीय, अदालतके उत्पलके साथ मर्मका घोर विरोध उपस्थित हुआ मुतअल्लिक। और युद्ध होनेपर वितस्ता नदी मृतदेहोंसे परिपूर्ण अजिम (स त्रि०) न जिह्मः कुटिलः, नञ्-नत् । हो गई। अन्तमें यशोवर्मा नामक मर्मके पुत्रने जहातेः सन्वदालोपश्च । उण १।१४० । ऋजु, सरल, अवक्र; अजितापीड़को राज्यच्युत किया। सोधा, सादा, साधारण । अजितेन्द्रिय (सं० वि०) इन्द्रियोंके वशमें, विषयासक्त। अजिह्मग (स० पु०) अजिह्म सरलं गच्छति, अजिन (सं० लो०) अज-इनच् । अजेरज च । उण् २१४८ । अजिह्म-गम्-ड। १ वाण, तौर। २ आशुग, जल्द वीयते क्षिप्यते रज आदि अनेन इति । १ चम, चमड़ा। चलनेवाला। ३ खग, चिड़िया। ४ सरलगामी, २ मृगचर्म, मृगछाला। (त्रि०) ३ जिन भिन्न और सौधे जानेवाला। कुछ, चमड़ेको छोड़ कोई दूसरा। अजिह्मान (सं० त्रि.) सोधौ नोकवाला। अजिनपत्रा, अजिनपत्रिका, अजिनपत्री (स. स्त्री०) अजिव (सं० पु०) नास्ति जिह्वा यस्य, बहुव्री० । अजिनं चर्म तद्रूपे पवे पक्षी यस्याः सा (इति अमरटीकायां महेश्वरः)। शेवायजिताग्रौशानीवाः। उण १।१५४ । लिहन्ति बहुव्री० । चिमगादड़, खफ़ाश ; जिसके पक्ष चर्म- जिह्वा । दर्दुर, मेंड़क। वत् हों, चमड़े-जैसे परोंवाली चिड़िया। अजौ (हि. अव्य०) जौ, ओजौ ; अरे। अजिनफला (स० स्त्री०) अजिनमिव चर्मविकारत्वात् अजीकव (सं० पु.ली.) अजौ-क-वा-क । अज्या भस्त्रा इव फलं यस्याः। टिपारी, भस्त्राकार फल ; शरक्षेपणेन कं ब्रह्माणं वाति प्रोणाति (वाचं)। वह पौधा जिसका फल मशक जैसा होता है। हरधनु, महादेवका धनुष । अनया -