पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२१७

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त्मक %3 1 अज्ञातशोल- २११ अज्ञातशील (सं० वि०) जिसकी चाल मालूम न | अज्य (वै० त्रि०) १ खेतका । २ मैदानवाला। हो, बेजाने चालचलनवाला। अज्विन् (स० वि०) तेज़, चालाक । अज्ञाति (सं० पु०) असम्बन्धीय पुरुष, बैरिश्ता अझर (हिं० वि०) न झरनेवाला, पतनशून्य, और नाता। न बरसनेवाला। अज्ञान (सं० त्रि०) नास्ति ज्ञानं यस्य । १ विना | अझोरो (हिं० स्त्री०) थैली, अधारी। ज्ञानका, बेवकू.फ। (क्लो०) न ज्ञानम् । २ ज्ञाना अञ्चक (सं० लो०) नेत्र, आंख । भाव, बेवकू.फो। ३ विरुद्ध ज्ञान, उलटी समझ । अञ्चति (स'० पु०-क्लो०) अनच्-अति । अत्रे : को वा । उप श्रीमद्भागवतके मतसे सृष्टिकालमें ब्रह्माने पांच ४।६१॥ १ वायु, हवा । (त्रि०)२ गतिशील, चलनेवाला। प्रकारके अज्ञानीको कल्पना की थी। यथा-तमः, अञ्चल (सं० पु०) अञ्च-अलच् । अांचल, प्रान्तभाग, मोह, महामोह, तामित्र और अन्धतामिश्र। वेदान्त दामन । कपड़ेको जिस ओर वेल बूटे और किनारीका मतसे सत् और असत् समझने के लिये जो त्रिगुणा अधिक सौन्दर्य रहता, उसे आंचल या अंचला कहते भावरूप ज्ञान है, उसके विरोधीको अज्ञान हैं। इस देशको स्त्रियों के वस्त्रों में ही आंचल होता कहते हैं। है। पुरुषों के वस्त्रोंका भी प्रान्तभाग है, परन्तु उसे अज्ञानकृत (सं० त्रि०) बेजाने किया गया। अांचल नहीं कहते। वृद्धा गृहिणी स्त्रियोंके अांचल अज्ञानतस्, अज्ञानात् (सं० अव्य०) बेजाने-समझ, लथरते-लधरते चलनेको बड़ा कुलक्षण समझती हैं। विना विचार। स्त्रियोंको ऐसा विश्वास है, कि भूतप्रेतादि कपड़े का अज्ञानता (सं० स्त्री०) बेवक फी, मूर्खता ; लाइल्यो, आंचल पकड़ शरीर में प्रवेश करते हैं हिमाकत, बेसमझी। अञ्चलका अपभ्रंश आंचल या अंचला है। प्रतिमाको अज्ञानपन (हिं० पु०) बेवकू.फौ, मूर्खता। सज्जित करते समय जो डङ्कका गहना देवीको अज्ञानवन्धन (सं• क्लो०) मूर्खताका बंधाव, छातीपर लटका दिया जाता, उसे भी आंचल कहते हिमाकतको जकड़। हैं। नया कपड़ा जब कितनी ही उड़िया, बङ्गाली और अज्ञानिन्, अज्ञानी (सं० वि० ) मुर्ख, बेवकू.फ। विहारी स्त्रियां पहनतीं, तब अांचलका एक कोना अज्ञास् (वै० पु० ) असम्बन्धीय पुरुष, जो रिश्तेदार हलदीसे रंग लेतीं और आंचलका कुछ सूत खोल न हो। और टुकड़े-टुकड़े कर कांटे, खोंचे, चोर और अग्नि अज्ञेय (सं० त्रि.) ज्ञानके अयोग्य, अल से बाहर। प्रभृतिको समर्पण करती हैं। इसका तात्पर्य यह है, कि अज्म (व० पु.) जङ्ग, युद्ध । कांटा प्रभृति समस्त शत्रुओंका अंश दिया गया, इस- अज्मन् (सं० स्त्री.) अजति गच्छति स्वर्ग दानेन लिये आगे कोई अनिष्ट न करेगा। जब भाग दे अनया, अज्-मनिन् करणे। जिसे दानकर लोग स्वर्ग दिया गया, तब कांटा उसे क्यों छेदेगा या अग्नि जाते हैं ; गो, गाय। ही उसे क्यों जलायेगी? कोई बात मनमें बनाई अज्यानि (वै० स्त्रो०) नष्ट न होनेवाली प्रकृति । रखने के लिये स्त्रियां अांचलके एक कोने में गांठ लगा अज्येष्ठ ( स० त्रि०) बड़ा या बुजुर्ग नहीं। देती हैं। बालकोंके माथेमें कपड़े का आंचल लगने- अज्येष्ठवृत्ति (स. त्रि०) जिसका स्वभाव बड़ोंकासा से अकल्याण होता है। इसलिये हठात् किसी न हो। शिशुके माथेमें आंचल छू जानेसे एकबार उसे मट्टीमें अज्यों-अजों देखो। लधरना पड़ता, जिससे सब दोष दूर हो जाता है। अज (वै पु० ) १ खेत। २ मैदान। (त्रि०) ३ तेज, विवाहमें कन्याका आचल और वरका दुपट्टा गांठ चालाक। देकर जोड़ दिया जाता है।