पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२३४

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२२८ अणीय -अणु सूक्ष्म हो इसौ शापसे धर्मराजने विदूर-रूपमें शूद्रयोनिसे करते-करते जब एक-एक अंश इतना जन्मग्रहण किया था। जाता, कि किसी फिर तरह उसका विभाग नहीं अणीय-अणीयस् देखो। होता, तब उस सूक्ष्म अंशको परमाणु कहा करते अणीयस् (सं० त्रि.) अणु-इयसुन्। अणीयस्क हैं। परमाणुतत्त्ववादी स्वीकार करते हैं, सकल अतिसूक्ष्म, अणुतर। निहायत बारोक, बहुत मोना। वस्तुओंके हो ऐसे सूक्ष्म कणा विद्यमान हैं, कि फिर अणु (स० वि०) अण-उण् । अणश्च । उण १।८। 'लवलेश- किसी क्रमसे उनका विभाग नहीं होता। किन्तु कणाणवः-इति उज्ज्वलदत्तः । १ सूक्ष्म, बारीक। २ क्षुद्र, यह मत अन्य सम्पदायसे विपरीत है। उन लोगोंका छोटा।३ लेश, थोड़ा। ४ अदृश्य । (पु०) ५ धान्य, कहना है, कि देखनेके लिये उपयुक्त यन्त्र रहने और धान। ६ कण, जरा। ७ सङ्गीतशास्त्रको मात्रा काटने या विभाग करनेके लिये सुतीक्षण यन्त्र होनेसे विशेष, अणुमाना। जगत्में ऐसी सूक्ष्म कोई वस्तु नहीं, जो देखी या सकल वस्तुओंको ही सूक्ष्म-सूक्ष्म अंशोंमें विभाग विभक्त की जा न सके। अतिसूक्ष्म परमाणुको भी किया जाता है। इन्हीं सूक्ष्म अंशोंको अणु कहते चिरकाल तक असंख्य भागोंमें विभक्त किया जा हैं। जिस सूक्ष्म अंशका किसी प्रकार फिर विभाग सकता है। सुतरां परमाणु कोई नित्य वस्तु नहीं। नहीं होता, उसका नाम परमाणु है। हमारे एक लोटेमें थोड़ी सी शक्कर डाल दो, समस्त जल देशक नैयायिक कहते हैं, कि परमाणु नित्य है, मीठा हो जायेगा। इस स्थल में शक्कर अत्यन्त सूक्ष्म- उसे ईश्वरने नहीं बनाया। कुम्भकार जैसे मृत्तिकासे सूक्ष्म अंशोंमें विभक्त हुआ करती है। फिर उसी घटको निर्माण करता, ईश्वरने वैसे ही परमाणुसे लोटेके जलको बड़े घड़ेके जलमें मिलानेसे समस्त जगत्के अद्भुत व्यापारको सृष्टि की है। यह मत जलमें शक्कर घुल जाती है। इसके बाद समुद्र-प्रमाण वेदान्तके विरुद्ध है। उपनिषत्में लिखा है, जलमें वह घड़े-भर जल डाल देनेसे अनुमान द्वारा "इदम् वा अग्रे नैव किञ्चिदासीत्। आसौदेकमेवाद्वितीयम् ।" यही सिद्ध होता, कि समस्त समुद्रके जलमें शक्करकी 'इस जगत्को सृष्टिसे पहले एकमात्र अद्वितीय मिठास मिश्रित हो सकती है। इसीसे कोई-कोई परब्रह्मके भिन्न और कुछ भी न था।' पण्डित कहते हैं,-सकल द्रव्य ही इच्छानुसार अतएव जो ईश्वरको सर्व स्रष्टा और सर्व नियन्ता सूक्ष्म-सूक्ष्म अंशोंमें विभक्त किये जा सकते हैं, बताना चाहते, उनके मतसे परमाणु नित्य हो नहीं इस विभागका कोई अन्त नहीं। इसलिये पदार्थक सकता। चार्वाक और बौद्धमतावलम्बी भौ पर- किसी अंशको परमाणु बताना विवेचनासङ्गत नहीं। माणुके अस्तित्वको स्वीकार करते हैं। किन्तु किन्तु परमाणुवादी इस बातको स्वीकार नहीं वैदान्तिक परमाणुको नित्य नहीं समझते। उन्हें करते। वह कहते हैं-किसी वस्तुको क्षुद्र अंशोंमें यही विश्वास है, कि कोई ज्ञानरूप पदार्थ विद्यमान विभाग करनेसे अन्तमें ऐसा सूक्ष्मांश आ जाता, कि पाशुपत-दर्शन-शास्त्रवेत्ता भी कहते हैं, कि फिर उसका विभाग नहीं होता। आजकलके परमाणु नित्य नहीं। समस्त सृष्टि महेखरको रची वैज्ञानिक पण्डितोंमें भी अनेकोंका यही मत है। है। परमाणुको नित्य और अजन्य माननेसे ईश्वरके नाना भांतिको वैज्ञानिक और रासायनिक परीक्षाओं कर्तृत्वमें दोष लगता है। द्वारा इसके सम्बन्ध में उन्होंने अनेक प्रमाणोंको संग्रह अब बात यह है, कि क्या सचमुच परमाणु विद्य किया है। इन समस्त प्रमाणोंसे जो सकल वैज्ञानिक मान है। बहुकालसे इस विषयका कितना हो सूत्र आविष्कृत हुए, उन्हें परमाणुतत्त्व ( Atomic विचार हो रहा है, किन्तु सन्देह नहीं मिटता। theory) कहते हैं। किन्तु इस नूतन शास्त्रका समस्त ही वस्तु विभक्त की जा सकती हैं। विभाग मूल परमाणु नहीं ; अणु ( molecule) ही इसका 1